
दुनिया में ऊर्जा की भूख तेजी से बढ़ रही है। यह साफ है कि अक्षय ऊर्जा का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन ऊर्जा की कुल मांग उससे भी तेजी से बढ़ रही है। नतीजा ये है कि कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल भी रुकने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है।
एनर्जी इंस्टीट्यूट ने अपनी नई रिपोर्ट ‘2025 स्टैटिस्टिकल रिव्यु ऑफ वर्ल्ड एनर्जी’ में पुष्टि की है कि 2024 में ऊर्जा से जुड़ा कार्बन उत्सर्जन लगातार चौथे साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इस दौरान इसमें एक फीसदी का उछाल दर्ज किया गया।
देखा जाए तो दुनिया में बढ़ता तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है। हालात यह है कि वैश्विक औसत तापमान कई बार 1.5 डिग्री सेल्सियस की लक्ष्मण रेखा को पार कर चुका है। ऐसे में ऊर्जा क्षेत्र से बढ़ता उत्सर्जन एक बड़े खतरे की ओर इशारा है।
रिपोर्ट में जो आंकड़े जारी किए गए हैं उनके मुताबिक, 2024 में वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की मांग 2 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 592 एक्साजूल तक पहुंच गई, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इसके साथ ही सभी प्रमुख ऊर्जा स्रोतों कोयला, तेल, गैस, जलविद्युत, परमाणु और अक्षय ऊर्जा में इतिहास का सबसे ज्यादा उपयोग दर्ज किया गया।
हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक सौर और पवन ऊर्जा में भी 2024 में 16 फीसदी की रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है, जो ऊर्जा की कुल मांग से नौ गुणा तेज थी। इस बढ़त में सबसे बड़ा योगदान चीन का रहा। दुनिया में 2024 के दौरान सौर ऊर्जा में जो बढ़ोतरी हुई है, उसमें चीन की हिस्सेदारी करीब 57 फीसदी थी। पिछले दो वर्षों में देखें तो सौर ऊर्जा करीब-करीब दोगुनी हो गई है।
जीवाश्म ईंधन की पकड़ अब भी मजबूत
लेकिन चिंता की बात है कि यह तेज वृद्धि भी बाकी क्षेत्रों में बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए काफी नहीं है। नतीजा यह रहा कि जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में भी एक फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। यह दर्शाता है कि ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव तो आ रहा है, लेकिन यह बदलाव अभी भी संतुलित नहीं है।
साफ शब्दों में कहें तो दुनिया में अक्षय ऊर्जा में होती बढ़ोतरी भी दुनिया की तेजी से बढ़ती ऊर्जा की भूख को शांत करने के लिए काफी नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में अक्षय ऊर्जा के साथ-साथ तेल, गैस और कोयले का कुल इस्तेमाल भी एक फीसदी बढ़ा है। इस दौरान भारत में कोयले की मांग भी 4 फीसदी बढ़ी, जो अब उत्तरी अमेरिका, यूरोप, और दक्षिण अमेरिका जैसे क्षेत्रों की कुल मांग के बराबर है। वहीं चीन में कच्चे तेल की मांग में 1.2 फीसदी की गिरावट आई, जिससे संकेत मिलता है कि शायद 2023 में तेल की मांग ने चरम सीमा छू ली हो।
तेजी से बढ़ रही ऊर्जा की भूख
2024 में बिजली की वैश्विक मांग में 4 फीसदी की वृद्धि आई है, जो दर्शाता है कि अब हम 'ऊर्जा युग' में प्रवेश कर चुके हैं।
देखा जाए तो ये रुझान एक कड़वी सच्चाई को दिखाते हैं, जहां साफ ऊर्जा पहले से कहीं तेजी से बढ़ रही है, लेकिन दुनिया की ऊर्जा भूख उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। नतीजा यह है कि साफ ऊर्जा, पुराने ईंधनों को हटाने के बजाय, कुल ऊर्जा में जुड़ती जा रही है। साफ और पारंपरिक दोनों तरह की ऊर्जा का साथ-साथ बढ़ना दर्शाता है कि दुनिया को एकजुट और संतुलित ऊर्जा बदलाव की राह में कई बड़ी चुनौतियां हैं जैसे ढांचा, पैसे की कमी और देशों के बीच मतभेद। यह सभी मिलकर चिंता को बढ़ा रहे हैं।
एनर्जी इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष एंडी ब्राउन का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "इस साल के आंकड़े दर्शाते हैं कि दुनिया में ऊर्जा बदलाव की तस्वीर बेहद जटिल है। तेजी से बिजली की ओर बढ़ता झुकाव और अक्षय ऊर्जा की बढ़त उत्साहजनक है, लेकिन कुल मांग इतनी तेजी से बढ़ रही है कि 60 फीसदी नई ऊर्जा जरूरतें अभी भी जीवाश्म ईंधनों से पूरी हो रही हैं।"
विकासशील देशों में बिजली के साधनों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। उनके मुताबिक यह बदलाव एकरूप नहीं है बल्कि अव्यवस्थित है जहां स्वच्छ और पारंपरिक ऊर्जा साथ-साथ बढ़ रही हैं, जिससे उत्सर्जन में कटौती की राह मुश्किल हो गई है। इसी वजह से लगातार चौथे साल, कार्बन उत्सर्जन का नया रिकॉर्ड बना है। यह दिखाता है कि जलवायु लक्ष्यों के साथ ऊर्जा उपयोग को जोड़ना अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
केपीएमजी, यूके की ऊर्जा रणनीति प्रमुख वफा जाफरी का कहना है, कॉप28 में एक बड़ा लक्ष्य रखा गया था कि 2030 तक दुनिया में अक्षय ऊर्जा को तीन गुणा बढ़ाया जाए। लेकिन इस दिशा में अब तक जो प्रगति हुई है, वो बेहद असमान है। भले ही कई देशों में साफ ऊर्जा तेजी से बढ़ रही है, फिर भी यह उस गति से नहीं हो रही जो जरूरी है, क्योंकि ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।“
आंकड़े दिखाते हैं कि यूरोप जैसे देशों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी और आपूर्ति श्रृंखला की लागत ने अक्षय ऊर्जा की गति को धीमा कर दिया है। वहीं चीन, भारत जैसे देश अब भी बड़े पैमाने पर विकास की जद्दोजहद में लगे हैं। साफ दिख रहा है कि यह बदलाव एकसमान नहीं, बल्कि अव्यवस्थित है।
ऐसे में उनके मुताबिक आज के नेताओं को सिर्फ बड़ी घोषणाओं से आगे बढ़कर जमीनी काम, क्षेत्रीय अवसरों और ठोस रणनीतियों पर ध्यान देना होगा। उन्हें तीन बड़ी चुनौतियों सस्ती ऊर्जा, सुरक्षित आपूर्ति और कम उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना होगा।