अवैध और अनधिकृत निर्माणों को नहीं किया जा सकता नजरअंदाज: गुजरात हाईकोर्ट

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि कोई भी व्यक्ति अवैध निर्माण को नियमित करने की मांग नहीं कर सकता, क्योंकि यह कानून के खिलाफ है
नोएडा में सरकार द्वारा हटाया जा रहा अवैध निर्माण; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
नोएडा में सरकार द्वारा हटाया जा रहा अवैध निर्माण; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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गुजरात उच्च न्यायालय ने चंदोला झील के पास अवैध निर्माण के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। 6 मई, 2025 को अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति अवैध निर्माण को नियमित करने की मांग नहीं कर सकता, क्योंकि यह कानून के खिलाफ है। अवैध निर्माण को गिराया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने यह आदेश चंदोला झील के आस-पास अवैध कब्जे और निर्माण के खिलाफ सुनाया है।

आवेदकों के निर्माण को सही ठहराने वाला कोई दस्तावेज न होने पर, आवेदकों ने मांग की थी कि जब तक उनका पुनर्वास नहीं हो जाता तब तक विध्वंस को रोक दिया जाए। हाई कोर्ट ने उनकी इस मांग को असंगत बताते हुए खारिज कर दिया है।

उच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड पर मौजूद दलीलों और दस्तावेजों की जांच के बाद कहा कि आवेदकों की मुख्य मांग यह थी कि जब तक राज्य सरकार या निगम की पुनर्वास योजना के तहत उन्हें वैकल्पिक आवास नहीं दिया जाता, तब तक उनके घरों का तोड़ने से रोक दिया जाए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संविधान के तहत उन्हें आश्रय और आजीविका का अधिकार है, इसलिए इससे समझौता नहीं किया जा सकता।

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याचिकाकर्ताओं ने आश्रय और जीविका के अधिकार का दिया हवाला

हाई कोर्ट ने स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंध रखता हैं, लेकिन झील या सरकारी जमीन पर उनके अवैध निर्माण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि आश्रय और आजीविका के अधिकार के तहत, याचिकाकर्ता चाहें तो जरूरी दस्तावेजों के साथ संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से आवेदन दे सकते हैं।

गौरतलब है कि अहमदाबाद की चंदोला झील के पास रहने वाले 58 लोगों ने याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने झील के किनारे झुग्गियां बनाई हैं। चंदोला झील के आसपास के क्षेत्र में करीब 6,500 झुग्गियां मौजूद हैं।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चंदोला झील के पास चल रहे तोड़फोड़ अभियान के कारण उनकी झुग्गियों को हटाया जा रहा है।

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उन्होंने मांग की कि उनके घरों को तोड़ने से पहले गुजरात सरकार की पुनर्वास योजना के तहत उन्हें वैकल्पिक आवास दिए जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार और नगर निगम की यह जिम्मेवारी है कि वे झुग्गीवासियों के रहने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करें, क्योंकि उनके घर हटाए जा रहे हैं।

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