घोड़ों और पर्यटकों के संदर्भ में कुफरी की वहन क्षमता का करें खुलासा: एनजीटी

आवेदक शैलेन्द्र कुमार यादव ने कुफरी में घोड़ों का उचित तरीके से प्रबंधन न करने का मुद्दा उठाया था। उनकी शिकायत थी कि घोड़ों के लगातार आवागमन से कुफरी के वन क्षेत्र को नुकसान हो रहा है
पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन के लिए घोड़ों का प्रयोग किया जाता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन के लिए घोड़ों का प्रयोग किया जाता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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शिमला में ठियोग के प्रभागीय वन अधिकारी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सूचित किया है कि घोड़े की लीद का सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जाए, इस पर एक विस्तृत योजना अदालत के सामने प्रस्तुत की जाएगी। साथ ही नफा-नुकसान का विश्लेषण किया जाएगा और एक रिपोर्ट दाखिल की जाएगी।

13 फरवरी, 2025 को एनजीटी ने ठियोग के डीएफओ को निर्देश दिया कि वे अपनी रिपोर्ट में घोड़ों और पर्यटकों के सन्दर्भ में कुफरी की वहन क्षमता को भी स्पष्ट रूप से खुलासा करें।

गौरतलब है कि अपने मूल आवेदन में आवेदक शैलेन्द्र कुमार यादव ने कुफरी में घोड़ों का उचित तरीके से प्रबंधन न करने का मुद्दा उठाया था। इसके साथ ही पर्यटन गतिविधियों को विनियमित करने की भी आवश्यकता आवेदन में जताई गई है। इनकी वजह से वनस्पति, स्थानीय पारिस्थितिकी और पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है।

5 नवंबर, 2024 को ट्रिब्यूनल ने हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीपीसीबी) के सुझावों और 8 फरवरी, 2024 के एक पत्र पर गौर किया था। इसमें घोडा मालिकों ने घोड़ों की संख्या को तत्काल 1,029 से घटाकर 700 करने पर सहमति जताई थी। हालांकि, इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं हुई।

ट्रिब्यूनल ने डीएफओ ठियोग द्वारा एक नवंबर, 2024 को सबमिट रिपोर्ट की भी समीक्षा की है। अदालत ने पाया है कि इस रिपोर्ट में विभिन्न स्थानों पर जमा कचरे की मात्रा और वनों को काटे जाने के बाद लगाए गए नए पेड़ों और उनके अस्तित्व का खुलासा नहीं किया है।

10 फरवरी, 2025 को डीएफओ, ठियोग ने एक और रिपोर्ट दायर की। इस रिपोर्ट में उन्होंने कुफरी में घोड़ों की लीद के प्रबंधन के लिए वन विभाग द्वारा की कार्रवाई का जिक्र किया है। रिपोर्ट के मुताबिक कुफरी ट्रैक पर लीद के निपटान के लिए दो संभावित विकल्प उपलब्ध हैं।

राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि घोड़े की लीद के निपटान के लिए जो दो विकल्प उपलब्ध हैं, उनमें खाद या ब्रिकेट बनाना शामिल हैं। हालांकि उनके मुताबिक खाद बनाना किफायती और बेहतर विकल्प है।

रिपोर्ट में विस्तृत योजना का है आभाव

हालांकि, अदालत का कहना है कि खाद बनाने के लिए किसी विस्तृत योजना की जानकारी नहीं दी गई है। इस योजना में घोड़े की लीद की कुल मात्रा, इसे कहां एकत्र किया जाएगा, कैसे ले जाया जाएगा, खाद कहां बनाई जाएगी, परिवहन का तरीका और इसकी लागत क्या होगी, इन सभी पर भी विचार किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में खाद बनाने के लिए उपलब्ध भूमि, खाद बनाए के लिए गड्ढे के डिजाइन, खाद तैयार होने में कितना समय लगेगा, प्रतिदिन पैदा हो रही घोड़े की लीद के आधार पर कितने गड्ढों की आवश्यकता होगी, तथा तैयार खाद का निपटान कैसे किया जाएगा, आदि का विवरण भी रिपोर्ट में शामिल होना चाहिए।

अदालत ने कहा कि रिपोर्ट में यह भी उल्लेख होना चाहिए कि खाद का उपयोग कौन करेगा या उसे कौन खरीदेगा, उन्हें कितनी खाद की आवश्यकता है, क्या सारी खाद का उपयोग किया जाएगा और परियोजना की कुल लागत कितनी होगी।

अदालत ने कहा है कि इस बारे में कोई लागत विश्लेषण नहीं किया गया है।

एनजीटी का आगे कहना है कि लागत विश्लेषण के बिना सस्ता विकल्प तय नहीं किया जा सकता। दोनों विकल्पों के लिए विस्तृत योजना की आवश्यकता है, जिसमें अल्पकालिक लागत और दीर्घकालिक लाभ दोनों को ध्यान में रखा जाए।

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