
आज भी दुनिया के 5.4 करोड़ बच्चे ऐसे खतरनाक कामों में उलझे हैं, जो उनकी जिंदगी, सेहत और भविष्य तीनों को निगल रहे हैं। वहीं कुल मिलाकर 13.8 करोड़ बच्चे आज भी बाल मजदूरी का शिकार हैं, जिनमें से करोड़ों ऐसे हैं जो रोजाना अपनी जान जोखिम में डाल खेतों, कारखानों, खदानों, या फिर सड़कों पर कर काम कर रहे हैं।
यह जानकारी विश्व बाल श्रम निषेध और अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और यूनिसेफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट "बाल श्रम: वैश्विक अनुमान 2024, प्रवृत्तियां और आगे की राह" नामक रिपोर्ट में सामने आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक भले ही पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में सुधार हुआ है। लेकिन 2025 तक बाल मजदूरी को खत्म करने का सपना बस सपना बन कर रह गया है।
नए आंकड़ों के अनुसार, 2020 के बाद से बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की संख्या में 2.2 करोड़ की गिरावट आई है। यह गिरावट 2016 से 2020 के बीच हुए खतरनाक इजाफे को कुछ हद तक रोकने में मददगार रही है। लेकिन अभी भी वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने की मंजिल काफी दूर है।
गौरतलब है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने 2025 तक बाल श्रम के उन्मूलन का लक्ष्य स्थापित किया था, और मौजूदा आंकड़ों से स्पष्ट है कि फिलहाल यह लक्ष्य पहुंच से बाहर है। हालांकि बाल मजदूरों का जो आंकड़ा साल 2000 में 24.6 करोड़ था, वो अब घटकर 13.8 करोड़ रह गया है।
मतलब की भले ही पहले से स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, पर आज भी करोड़ों बच्चों को पढ़ने, खेलने और बचपन जीने का अधिकार नहीं मिल पा रहा। यह उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और विकास के लिए गंभीर खतरा है।
आईएलओ के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ हॉन्गबो का इस बारे में कहना है, “यह रिपोर्ट बदलाव की उम्मीद तो देती है, लेकिन रास्ता अभी लंबा है। बच्चों की जगह स्कूल में है, काम पर नहीं। लेकिन जब तक माता-पिता को सम्मानजनक रोजगार और सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलेगी, तब तक वे मजबूरी में बच्चों से मजदूरी करवाते रहेंगे। उन्हें ऐसा काम मिले जिससे वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें, ना कि उन्हें बाजार में सामान बेचने या खेतों में मजदूरी करने भेजें।”
उनका आगे कहना है मंजिल अभी दूर है, "बाल श्रम को पूरी तरह खत्म करने के लिए हमें और मेहनत करनी होगी।"
कृषि में सबसे ज्यादा बाल मजदूर
इनमें से कुछ बच्चे तपती धूप में खेतों में काम करते हैं, तो कुछ किसी अजनबी के घर की सफाई या दुकानों, ढाबों में हाथ बंटाते हैं, कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें खदानों में पत्थर पत्थर तोड़ने पड़ते हैं या फिर अपनी जीविका के लिए कचरे के ढेर खंगालने पड़ रहे हैं।
बाल मजदूरी में लगे 14 करोड़ बच्चों में से करीब 61 फीसदी कृषि कार्यों में हाथ बंटा रहे हैं। वहीं 27 फीसदी को सेवा क्षेत्र जैसे घरेलू कामकाज या बाजार में सामान बेचना पड़ रहा है। वहीं 13 फीसदी खनन व निर्माण जैसे उद्योगों में काम कर रहे हैं।
कहां कितनी आई कमी?
रिपोर्ट के मुताबिक इस दिशा में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा सुधार देखने को मिला है। वहां बाल श्रम दर 5.6 फीसदी से घटकर 3.1 फीसदी रह गई है। यानी 2020 में बाल मजदूरों की जो संख्या 4.9 करोड़ थी वो घटकर 2.8 करोड़ रह गई है।
इसी तरह लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में भी बाल श्रम की दर में आठ फीसदी का सुधार हुआ है। वहीं बाल मजदूरों की गिनती में 11 फीसदी की गिरावट आई है।
वहीं उप-सहारा अफ्रीका अब भी सबसे खराब स्थिति में है, जहां करीब 8.7 करोड़ बच्चे बाल श्रम में लगे हैं, जो पूरी दुनिया के दो-तिहाई से ज्यादा हैं। हालांकि वहां बाल श्रम दर 23.9 फीसदी से घटकर 21.5 फीसदी तक पहुंची है, मगर संख्या में कोई बदलाव नहीं आया है, और जनसंख्या वृद्धि के कारण यह प्रगति कमजोर हुई है।
यूनिसेफ प्रमुख कैथरीन रसेल का कहना है, “बाल मजदूरी रोकने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू करना, सामाजिक सुरक्षा बढ़ाना, मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में निवेश, और वयस्कों को सम्मानजनक काम देना बेहद जरूरी है।“ हालांकि उन्होंने चेताया है कि अगर वैश्विक फंडिंग में कटौती हुई तो अब तक की मेहनत पर पानी फिर सकता है और अब तक दर्ज की गई प्रगति की दिशा उलट सकती है।”
रिपोर्ट में यह भी चेताया गया है कि शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और आजीविका में निवेश घटने से गरीब परिवार और कमजोर हो सकते हैं। ऐसे में यदि शिक्षा के लिए बजट छोटा होता है और सामाजिक सुरक्षा के उपाय कमजोर होते हैं तो अधिक संख्या में परिवार अपने बच्चों को स्कूलों के बजाय काम पर भेजने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
देखा जाए तो हर आंकड़े के पीछे, आर्थिक परेशानियों की एक व्यथा छिपी है। बहुत से माता-पिता के लिए अपने बच्चों को काम पर भेजना मजबूरी है, उनके पास कोई विकल्प नहीं। बेहतर रोजगार, सामाजिक सुरक्षा उपायों के बिना, परिवारों के लिए गुजर-बसर कर पाना कठिन है और ऐसे में उनके लिए नन्हें हाथों की मदद भी मायने रखती है।
रिपोर्ट कहती है कि आमतौर पर लड़के बाल श्रम में ज्यादा दिखते हैं, लेकिन अगर सप्ताह में 21 घंटे से अधिक बिना मजदूरी वाले घरेलू काम को भी शामिल किया जाए, तो लड़कियों पर बोझ ज्यादा हो जाता है।
क्या है समाधान
अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनिसेफ ने सरकारों से अपील की है कि वे बाल श्रम खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएं। इसके तहत कमजोर परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा और बच्चों के लिए यूनिवर्सल बेनिफिट्स बढ़ाने की जरूरत है, ताकि परिवार अपने बच्चों को काम पर भेजने के लिए मजबूर न हों। साथ ही, बाल सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया जाए, जिससे खतरनाक कामों में लगे बच्चों की पहचान कर उन्हें बचाया जा सके।
हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण और मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए, खासकर ग्रामीण और संकटग्रस्त इलाकों में यह बेहद जरूरी है।
बड़ों और युवाओं को सम्मानजनक रोजगार और संगठन बनाने की आजादी दी जाए, ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें। इसके अलावा, कानूनों और कंपनियों की जवाबदेही तय करते हुए सप्लाई चेन में हो रहे बच्चों के शोषण पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए।