
केंद्रीय बजट 2025-26 को पेश करते हुए अपने भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2047 तक विकसित भारत के सपने को सच करने की योजनाएं साझा की। इनमें दो प्रमुख योजनाएं शामिल हैं: "पहला सभी के पास कौशल और बेहतर काम" और "दूसरा कार्यबल में 70 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी।"
तर्क है कि खासतौर पर महिलाओं के लिए रोजगार में वृद्धि भारत की अपनी बड़ी और बढ़ती आबादी का अधिकतम लाभ भुनाने की कुंजी है।
बेरोजगारी को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, जिसे बजट 2025-2026 में सुस्त खपत को पुनर्जीवित करने के लिए लक्षित किया जाना चाहिए था। बढ़ता फायदेमंद रोजगार और नौकरियां खपत में वृद्धि करेंगी, जो अर्थव्यवस्था की धुरी को आगे बढ़ाने में मददगार होगी।
यह स्पष्ट है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में नौकरीपेशा लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इससे आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसा क्यों है? इसका जवाब है कार्यबल में स्वरोजगार करने वालों की बढ़ती संख्या।
एक फरवरी को केंद्रीय बजट से ठीक एक दिन पहले जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में भारत में रोजगार बढ़ने और बेरोजगारी दर में गिरावट की गुलाबी तस्वीर पेश की गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि लोगों के स्वरोजगार अपनाने से बेरोजगारी दर को कम करने में मदद मिल रही है।
गौरतलब है कि किसी व्यक्ति को स्व-रोजगार में लगा तब माना जाता है जब वह अपना खुद का व्यवसाय चलाता है या अपने काम के लिए दूसरों को काम पर रखता है। स्व-रोजगार की यह परिभाषा बड़ी व्यापक है, इसमें चाय की दुकान से खेत पर काम करना, यहां तक की उनको भी शामिल किया गया है, जो डॉक्टर खुद का क्लिनिक चलाते हैं।
स्वरोजगार के तहत दो तरह के लोग आते हैं, पहले वे जो श्रमिक या नियोक्ता हैं, और दूसरे वे जो घरेलू कामकाज में हाथ बंटाते हैं। इसमें दूसरा समूह मुख्य रूप से अपने स्वयं के कार्यों में बिना मजदूरी के काम करता है।
सर्वेक्षण इस बदलाव का जश्न मनाता है, क्योंकि इससे पता चलता है कि अधिक लोग अपना स्वयं का काम-धंधा शुरू कर रहे हैं और लचीले कार्य व्यवस्था को प्राथमिकता दे रहे हैं।
2024-25 के लिए जारी आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2023-24 में 58.4 फीसदी लोग अपने खुद के काम धंधों में लगे थे। वहीं 2017-18 में यह आंकड़ा 52.2 फीसदी था। इस संख्या को उन लोगों के साथ देखा जाना चाहिए जिनके पास नियमित नौकरी है और वेतन मिलता है।
हालांकि ये नियमित नौकरियां, जो स्थिर और अच्छी तनख्वाह वाली हैं, उनमें गिरावट आई है। नियमित नौकरियों में लगे लोगों (पुरुष और महिला दोनों) की संख्या 2018 से 2024 के बीच 22.8 फीसदी से घटकर 21.7 फीसदी रह गई है।
सर्वेक्षण में स्वरोजगार की ओर बदलाव को आकस्मिक नौकरियों से बचने के तरीके के रूप में भी देखा गया है, जो अच्छी तनख्वाह वाली नहीं होती। मतलब कि ज्यादातर लोग अपने खुद का काम करना चाह रहे हैं, क्योंकि इन नौकरियों में अच्छा वेतन नहीं मिलता और छूटने का डर भी बना रहता है। 2017-18 में इन कैज़ुअल कर्मचारियों की संख्या 24.9 फीसदी से घटकर 2023-24 में 19.8 फीसदी रह गई है।
सर्वेक्षण में कहा गया है, "इससे पता चलता है कि अधिक लोग संगठित स्वरोजगार को चुन रहे हैं। यह बताता है कि कार्यबल बदल रहा है और लोग ऐसी नौकरियां चाहते हैं जो लचीली हों और उन्हें अपने हिसाब से काम करने की अनुमति दें, क्योंकि उद्योगों में बदलाव हो रहा है और लोगों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं।"
सीतारामन ने अपने भाषण में कहा कि भारत में हाल के वर्षों में कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ रही है। कार्यबल में अब पुरुषों की तुलना में स्वरोजगार करने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है। हालांकि, फिर भी नियमित वेतन वाली नौकरियों में महिलाओं की संख्या घटी है।
स्वरोजगार में लगे हैं दुनिया के अधिकांश गरीब
सर्वेक्षण के मुताबिक, "ग्रामीण भारत में नियमित वेतन वाली नौकरियों में महिलाओं का जो आंकड़ा 2017-18 में 10.5 फीसदी था, वो 2023-24 में घटकर 7.8 फीसदी पर आ गया है। वहीं साथ ही, पहले से कहीं ज्यादा महिलाएं स्व-रोजगार में लगी हैं या पारिवारिक व्यवसायों में मदद कर रही हैं। शहरों में भी नियमित वेतन वाली नौकरियों में भी महिलाओं की संख्या में कमी आई है।"
स्वरोजगार को अक्सर उद्यमिता के संकेत के रूप में देखा जाता है, लेकिन भारत या अन्य विकासशील देशों में ऐसा नहीं है। वास्तव में, वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है कि कमजोर और विकासशील देशों में स्वरोजगार अधिक है।
आमतौर पर, कम आय वाले देशों में स्वरोजगार करने वालों की संख्या अधिक होती है। वास्तव में, यह कहा जा सकता है कि दुनिया के अधिकांश गरीब स्वरोजगार करते हैं। ये वे लोग हैं जिनके पास औपचारिक नौकरी नहीं है। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो पारिवारिक व्यवसायों में बिना मजदूरी के काम कर रहे हैं।
स्व-रोजगार का यह उच्च स्तर दर्शाता है कि लोगों के पास अन्य विकल्प कम हैं, इसलिए वे ऐसी नौकरियों में लगे रहते हैं जिनमें अच्छा वेतन नहीं मिलता। भारत में, दिहाड़ी मजदूरी आमतौर पर स्व-रोजगार से ज्यादा कमाती है।
भारत में, कई अन्य देशों की तरह अक्सर स्वरोजगार छोटे सीमान्त किसानों के साथ-साथ भूमिहीनों को भी आकर्षित करता है। यह दर्शाता है कि देश में रोजगार की समस्या कितनी गंभीर है, हालांकि स्वरोजगार की उच्च दर बेरोजगारी की दर को कम करती है।
अर्थशास्त्री सीपी चंद्रशेखर और जयति घोष द्वारा 2023 में किए एक अध्ययन में पाया गया है कि अप्रैल-जून 2022 में शहरी स्वरोजगार श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी अप्रैल-जून 2019 की तुलना में अभी भी 11 फीसदी कम है।
सरल शब्दों में कहें तो, 2022 के मध्य में शहरी भारत में स्व-रोजगार करने वाले औसतन तीन साल पहले की तुलना में काफी कम कमा रहे थे। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्व-रोजगार से होने वाली आय शहरों की तुलना में काफी कम है, जिसमें करीब 40 फीसदी का अंतर है।