क्या आप जानते हैं कि दुनिया में करीब 2.76 करोड़ लोग हर दिन जबरन मजदूरी करने को मजबूर हैं। मतलब कि प्रति हजार लोगों पर 3.5 लोग वो हैं जो आधुनिक दासता के इस दलदल में फंसे हैं। यह जानकारी अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट 'प्रोफिट्स एंड पावर्टी: द इकोनॉमिक्स ऑफ फोर्स्ड लेबर' में सामने आई है।
आंकड़ों के मुताबिक जबरन मजदूरी के हर 10 में से नौ यानी करीब 86 फीसदी मामलों में निजी क्षेत्र की भूमिका है। वहीं राज्यों की हिस्सेदारी करीब 14 फीसदी है। हालांकि आईएलओ ने अपनी इस रिपोर्ट में सरकारी क्षेत्रों द्वारा जबरन श्रम से किए जा रहे अवैध मुनाफे को शामिल नहीं किया है।
आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि निजी क्षेत्र में जबरन मजदूरी में लगे 37 फीसदी यानी 63 लाख श्रमिक औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े थे। वहीं 32 फीसदी यानी 55 लाख के साथ सेवा क्षेत्र दूसरे स्थान पर था। इसी तरह कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 12 फीसदी थी। मतलब की 21 लाख मजदूर कृषि क्षेत्र से जुड़े थे। वहीं घरेलु कार्यों के क्षेत्र में यह आंकड़ा 14 लाख वहीं अन्य क्षेत्रों में 19 लाख (11 फीसदी) दर्ज किया गया है।
वहीं यदि 2016 से 2021 के आंकड़ों पर गौर करें तो इस दौरान जबरन मजदूरी करने को मजबूर लोगों की संख्या में 27 लाख का इजाफा हुआ है। आईएलओ के मुताबिक जबरन मजदूरी या जबरन कराया जा रहा श्रम अपराध होने के साथ-साथ इंसानों के मौलिक अधिकारों का भी गंभीर रूप से किया जा रहा हनन है।
इसका असर न केवल पीड़ित पर पड़ता है बल्कि सारे समाज को इसकी आर्थिक और सामाजिक कीमत चुकानी पड़ती है। रिपोर्ट के मुताबिक निजी क्षेत्र को इस जबरन मजदूरी के चलते सालाना करीब 19.6 लाख करोड़ रुपए (23,600 करोड़ डॉलर) का अवैध मुनाफा हो रहा है। वहीं यदि 2014 के बाद से, देखें तो इस मुनाफे में 37 फीसदी का इजाफा हुआ है, जो करीब 6,400 करोड़ डॉलर है।
रिपोर्ट की मानें तो मुनाफे में हुई यह वृद्धि, जबरन श्रम में लगे पीड़ितों की संख्या में हुए इजाफे और अधिक मुनाफे के चलते हुई है। इस जबरन मजदूरी से सबसे अधिक होने वाले कुल वार्षिक मुनाफे को देखें तो इस मामले में यूरोप और मध्य एशिया क्षेत्र अव्वल है, जहां हर साल इससे 8,400 करोड़ डॉलर का मुनाफा हो रहा है। वहीं एशिया प्रशांत क्षेत्र 6,200 करोड़ डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर है। वहीं अमेरिका में 5,200 करोड़ डॉलर, अफ्रीका में 2,000 करोड़ डॉलर और अरब देशों में 1800 करोड़ डॉलर का मुनाफा हो रहा है।
रिपोर्ट में जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि मौजूदा समय में तस्कर और अपराधी अब हर पीड़ित से औसतन करीब 10,000 डॉलर कमा रहे हैं, यह कमाई एक दशक पहले 8,269 डॉलर से कहीं अधिक है। वहीं यदि प्रति पीड़ित के लिहाज से देखें तो यूरोप और मध्य एशिया में सालाना सबसे ज्यादा मुनाफा होता है। इसके अरब देशों, अमेरिका, अफ्रीका और एशिया प्रशांत क्षेत्र का स्थान आता है।
आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में जबरन श्रम से मुनाफे में हुई वृद्धि से यौन तस्कर प्रत्येक पीड़ित से औसतन 27 हजार डॉलर तक कमा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में यौन शोषण जबरन श्रम के सबसे आकर्षक रूप में उभरा है। वैश्विक स्तर पर देखें तो जितने लोग जबरन श्रम का शिकार हैं उसमें से 27 फीसदी यौन शोषण के शिकार हैं। हालांकि वो जबरन मजदूरी से होने वाले कुल अवैध मुनाफे का 73 फीसदी से अधिक इन्हीं से कमाया जा रहा है।
शोषण करने वालों की झोली में जा रहा मजदूरों का मुनाफा
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि यौन शोषण के बाद औद्योगिक श्रम के लिए मजबूर किए गए पीड़ितों से शोषक सालाना 3,500 करोड़ डॉलर का अवैध मुनाफा कमा रहा है। इसके बाद सेवा क्षेत्र जबरन मजबूरी के चलते 2,080 करोड़ डॉलर, जबकि कृषि क्षेत्र में यह शोषक वर्ग 500 करोड़ डॉलर (41,514 करोड़ रुपए) की चांदी काट रहा है। वहीं घरेलू कार्य के क्षेत्र में इन जबरन मजदूरों से सालाना 260 करोड़ डॉलर का फायदा लिया जा रहा है।
देखा जाए तो यह वो मुनाफा है जो सही मायनों में मजदूरों को मिलना चाहिए लेकिन जबरन श्रम के दांव-पेंचों के चलते यह मुनाफा शोषण करने वालों की झोली में जा रहा है।
रिपोर्ट अवैध मुनाफे पर अंकुश लगाने और अपराधियों को इसका दंड मिल सके इसे सुनिश्चित करने के लिए निवेश पर जोर देती है ताकि स्थिति में बदलाव लाया जा सके। इसके साथ ही रिपोर्ट में कानूनी ढांचे को मजबूत करने की बात भी कही गई है।
इसी तरह जिन क्षेत्रों में इस तरह का जोखिम बहुत ज्यादा है वहां श्रम क्षेत्र के निरीक्षण का विस्तार करने पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में कानूनों को भी मजबूत करने की सिफारिश की गई है। श्रम और आपराधिक कानून प्रवर्तन के बीच बेहतर समन्वय का भी सुझाव रिपोर्ट में दिया गया है।
रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि केवल कानूनों की मदद से जबरन मजदूरी को समाप्त नहीं किया जा सकता, इसके लिए कहीं ज्यादा करने की आवश्यकता है। यही वजह है कि आईएलओ ने एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया है जो इसके मूल कारणों को संबोधित करने के साथ-साथ पीड़ितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
इस बारे में आईएलओ के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ हॉन्गबो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, “जबरन श्रम में लगे लोगों से कई तरह से जबरदस्ती की जाती है। इनमें जानबूझकर व्यवस्थित रूप से वेतन रोकना सबसे आम है।“
उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा है कि जबरन श्रम गरीबी और शोषण के चक्र को कायम रखता है और मानव गरिमा पर आघात करता है। दुर्भाग्य से, यह स्थिति पहले से और खराब हो गई है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस अन्याय को समाप्त करने के लिए एकजुट होने की जरूरत है, ताकि श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और सभी के लिए निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों को कायम रखा जा सके।
एक डॉलर = 83.03 भारतीय रुपए