
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने आगाह किया है कि सतत विकास के लक्ष्य अपनी राह से भटक गए हैं। सालाना चार ट्रिलियन डॉलर की वित्तीय कमी से स्थिति और गंभीर हो रही है। कड़वी सच्चाई यह है कि डोनर्स सहायता प्रतिबद्धताओं को कम कर रहे हैं, व्यापारिक अवरोध तेजी से बढ़ रहे हैं। विकासशील देश कर्ज के बोझ तले दबे हैं और दुनिया में वैश्विक सहयोग पर से भरोसा दरक रहा है।
उन्होंने यह बयान 28 अप्रैल को न्यूयॉर्क में आर्थिक और सामाजिक परिषद (ईसीओएसओसी) के वार्षिक मंच पर दिया है। गौरतलब है कि बैठक में सतत विकास, व्यापारिक तनाव और विकासशील देशों पर बढ़ते कर्ज का मुद्दा मुख्य रूप से चर्चा में रहा।
“संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा, "इस वर्ष आर्थिक और सामाजिक परिषद की यह फोरम बेहद निर्णायक समय पर आयोजित हो रही है, जब वैश्विक सहयोग खतरे में है। दुनिया एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। सतत विकास के लिए जरूरी वित्तीय सहायता तेजी से घट रही है, व्यापार में दीवारें खड़ी हो रही हैं और गरीब देश कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं।“
उन्होंने कहा कि सतत विकास के लक्ष्य (एसडीजी) पटरी से उतर चुके हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए करीब चार ट्रिलियन डॉलर का फंडिंग गैप है। विकासशील देश कर्ज के बोझ तले दबे हैं और उसे भरने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कड़वी सच्चाई यह है कि कर्ज के बोझ तले दबी सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, बुनियादी ढांचे और ऊर्जा बदलाव जैसे जरूरी क्षेत्रों में निवेश नहीं कर पा रही हैं।
विकासशील देशों के लिए कर्ज चुकाने की यह सालाना लागत 1.4 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गई है। चिंता की बात है कि 50 से ज्यादा देशों में सरकार की 10 फीसदी से अधिक आमदनी कर्ज चुकाने में जा रही है, जबकि 17 देशों में यह आंकड़ा 20 फीसदी से भी अधिक है—जो गंभीर संकट का संकेत है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि दुनिया में वैश्विक सहयोग पर से भरोसा दरक रहा है। व्यापारिक युद्ध इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।
व्यापारिक सहयोग से सभी को फायदा होता है, लेकिन जिस तरह से व्यापारिक बाधाएं बढ़ रही हैं, वो वैश्विक अर्थव्यवस्था और सतत विकास के लिए खतरा बन गई हैं। हाल ही में आईएमएफ, यूएनसीटीएडी, डब्ल्यूटीओ और कई अन्य संस्थाओं द्वारा जारी कमजोर आर्थिक अनुमान भी इस ओर इशारा करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास संगठन (यूएनसीटीएडी) ने अपनी नई रिपोर्ट 'ट्रेड एंड डेवलपमेंट फोरसाइट्स 2025- अंडर प्रेशर' में चेताया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की राह पर निकल पड़ी है। इसके लिए कहीं हद तक व्यापारिक तनातनी और बढ़ती आर्थिक अनिश्चितता जिम्मेवार है।
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक विकास दर 2025 में फिसलकर 2.3 फीसदी पर पहुंच सकती है। यह इस बात को उजागर करता है कि दुनिया मंदी की ओर बढ़ रही है। आशंका है कि व्यापारिक नीतियों में लगते झटके, वित्तीय अस्थिरता, अनिश्चितता और भरोसे की कमी जैसी चुनौतियां वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार सकती हैं।
बढ़ते व्यापारिक तनाव का असर वैश्विक व्यापार पर साफ तौर पर दिख रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ते टैरिफ और व्यापारिक नीतियों में बदलाव से आपूर्ति श्रृंखलाएं बिखर रही हैं। इसकी वजह से व्यापारिक स्थिरता पर असर पड़ रहा है।
कमजोर देशों पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख का कहना है कि "व्यापारिक युद्ध में सबको नुकसान होता है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा कमजोर देशों और समुदायों को भुगतना पड़ता है। ऐसे संकटपूर्ण समय में विकास के लिए वित्त जुटाने की हमारी कोशिशें कमजोर नहीं पड़नी चाहिए।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अब सिर्फ पांच साल बचे हैं। अब हमें तेजी से काम करना होगा और वादों को पूरा करना होगा।"
इसके लिए उन्होंने तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्रवाई की मांग की है। इसमें पहला बढ़ते कर्ज से निपटना है। उनके मुताबिक कर्ज को विकास का दुश्मन नहीं, सहयोगी बनाना होगा। इसके लिए सस्ते कर्ज, बेहतर पुनर्गठन और संकट के समय मदद के लिए एक वैश्विक तंत्र की आवश्यकता है।
हालात यह हैं कि कई विकासशील देशों में, कर्ज के भारी भरकम बोझ ने विकास को कमजोर कर दिया है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश कम हो रहा है। यह स्थिति और बिगड़ रही है।
उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की पूरी क्षमता का उपयोग करना होगा। अगर वित्त विकास का ईंधन है, तो बहुपक्षीय विकास बैंक इसका इंजन हैं। ऐसे में उन्होंने मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों की कर्ज देने की क्षमता को तीन गुना करने का आह्वान किया, ताकि ये संस्थाएं गरीब देशों को कम लागत पर जरूरी मदद दे सकें।
इसके लिए बैंकों की पूंजी को बढ़ाना, उनकी क्षमता में सुधार लाना और विकासशील देशों के लिए सस्ते वित्त जुटाना शामिल है। उनके मुताबिक हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सस्ती वित्त सहायता सही जगह पर पहुंचे और विकासशील देशों को इन संस्थाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिले।
तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी वित्तीय स्रोतों को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने माना कि, यह कठिन समय है, लेकिन मुश्किल वक्त में जिम्मेदार और स्थिर निवेश की जरूरत और भी बढ़ जाती है।
राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों को घरेलू संसाधनों को और मजबूत करना होगा और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसी महत्वपूर्ण प्रणालियों में लगाना होगा। साथ ही टैक्स में सुधार, भ्रष्टाचार पर लगाम और निजी निवेश को बढ़ावा देना जरूरी है।
समय कम है, हौसला बड़ा होना चाहिए
वैश्विक स्तर पर, एक समावेशी और प्रभावी कर व्यवस्था बनानी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि अंतरराष्ट्रीय कर नियम सही और समान तरीके से लागू हों। डोनर्स को अपनी विकास सहायता के वादे पूरे करने होंगे, ताकि ये महत्वपूर्ण संसाधन विकासशील देशों तक पहुंचे।"
गुटेरेस ने सितंबर 2024 में हुई "पैक्ट फॉर द फ्यूचर" की प्रतिबद्धताओं को याद दिलाते हुए कहा कि अगले पांच साल में हमें सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दोगुनी रफ्तार से काम करना होगा। उनके यह भी कहना है कि जुलाई में होने वाला सेविले सम्मेलन एक सुनहरा मौका है, जहां वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को गरीब देशों के लिए अधिक न्यायसंगत और सहायक बनाया जा सकता है।
उनका कहना है कि "विकास के लिए धन जुटाना केवल आर्थिक जरूरत नहीं, बल्कि हमारे साझा वैश्विक भविष्य की बुनियाद है। यह दर्शाता है कि हम गरीबी, भूख और जलवायु संकट जैसे साझा संकटों का समाधान मिलजुल कर ढूंढ सकते हैं।