सतत विकास के 17 लक्ष्य एक बेहतर दुनिया की आस हैं, जिनपर दुनिया के 810 करोड़ लोगों का भविष्य टिका है। इनका उद्देश्य दुनिया से गरीबी, भुखमरी, अज्ञान, अशिक्षा जैसी समस्याओं को दूर करना और सबके लिए साफ पानी, स्वच्छता, बेहतर स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, आर्थिक विकास, बेहतर काम, सस्ती, सुलभ और स्वच्छ ऊर्जा के साथ-साथ बेहतर शिक्षा मुहैया कराना है।
इतना ही नहीं अपने पर्यावरण, जलवायु और जैवविविधता को बचाए रखने के साथ विज्ञान और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है। इसके साथ ही दुनिया में व्याप्त असमानता जैसे मुद्दों को हल करना है। इन लक्ष्यों को एक बेहतर दुनिया साकार करने का ब्लू प्रिन्ट माना जाता है। लेकिन जिस तरह से इस दिशा में प्रगति हो रही है उसको लेकर दुनिया भर में चिताएं बढ़ गई है।
इनके बारे में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट "द सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स रिपोर्ट 2024" में खुलासा किया है कि इनमें से महज 17 फीसदी लक्ष्य ऐसे हैं, जिनकी दिशा में दुनिया सही राह पर है। वहीं 83 फीसदी मामलों में कहीं न कहीं गाड़ी पटरी से उतर चुकी है। देखा जाए तो कहीं न कहीं यह इस बात का भी प्रतीक हैं कि हमारी सरकारें अपनी परीक्षा में विफल रही हैं।
सतत विकास के इन लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के लिए 2030 तक की समय सीमा तय की गई थी, जिसके अब महज छह वर्ष शेष बचे हैं। बता दें कि एक बेहतर दुनिया की आस में साल 2015 में दुनिया भर के नेताओं द्वारा सतत विकास से जुड़े 17 लक्ष्यों को अपनाया गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक इन 17 में से क़रीब आधे लक्ष्यों के सम्बन्ध में बेहद कम या मामूली प्रगति हुई है। वहीं एक तिहाई लक्ष्य ऐसे हैं जिनकी दिशा में हो रही प्रगति या तो ठप्प हो चुकी है या फिर पलट चुकी है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक प्रेस वार्ता में रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि, "रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया अपनी परीक्षा में फेल हो रही है।" उनका कहना है कि, “शान्ति को हासिल करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और अन्तरराष्ट्रीय वित्त पोषण को मजबूती देने में हमारी विफलता से विकास की राह कमजोर हो रही है।”
उनके मुताबिक हमें सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए त्वरित कार्रवाई करनी होगी, हमारे पास खोने के लिए एक क्षण भी नहीं बचा है।
यह रिपोर्ट न्यूयॉर्क में आठ से 17 जुलाई 2024 के बीच सतत विकास पर होने वाली उच्च स्तरीय राजनैतिक फोरम से ठीक पहले जारी की गई है। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद के तत्वाधीन यह फोरम कई लक्ष्यों की दिशा में हो रही वैश्विक प्रगति की समीक्षा करेगी, जिसमें गरीबी को जड़ से समाप्त करना (लक्ष्य 1), भूखमरी को दूर करना (लक्ष्य 2), जलवायु कार्रवाई (लक्ष्य 13), शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देना (लक्ष्य 16), और कार्यान्वयन के साधन सुनिश्चित करना (लक्ष्य 17) शामिल हैं।
इसके साथ ही सितंबर में होने वाला शिखर सम्मेलन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयासों को फिर से संगठित करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। शिखर सम्मेलन का उद्देश्य कई विकासशील देशों को प्रभावित करने वाले ऋण संकट और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में तत्काल सुधार की आवश्यकता को संबोधित करना है।
संघर्ष, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे दुनिया पर हैं हावी
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया कोविड-19 के प्रभावों से अब तक पूरी तरह नहीं उबरी है। एक तरफ जहां हिंसक टकरावों में तेजी आई है और भू-राजनैतिक तनाव बढ़े हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर स्थिति बद से बदतर हो रही है। इन सभी ने सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में हो रही प्रगति पर असर डाला है।
रिपोर्ट में जारी अनुमान के मुताबिक 2019 की तुलना में 2022 के दौरान और 2.3 करोड़ लोग बेहद गरीबी के दलदल में धंस गए हैं। इसी तरह पहले से 10 करोड़ अधिक लोग ऐसे हैं जो भरपेट खाने के लिए जूझ रहे हैं।
पिछले साल सशस्त्र टकरावों में अपनी जान गंवाने वाले आम लोगों की संख्या में भी तेजी से उछाल आया है। जलवायु के मामले में भी स्थिति पहले से बदतर हुई है, जहां 2023 अब तक का सबसे गर्म साल साबित हुआ है, जब तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा के करीब पहुंच गया है। इसी तरह 2024 के भी पहले पांच महीने रिकॉर्ड गर्म रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार करीब 60 फीसद देशों को खाद्य पदार्थों की असामान्य रूप से ऊंची कीमतों का सामना करना पड़ा, नतीजन भुखमरी और खाद्य असुरक्षा की स्थिति और गहरी हुई है।इस रिपोर्ट में दुनिया में व्याप्तआर्थिक चुनौतियों को भी उजागर किया गया है, इसकी एक झलक सुस्त जीडीपी में भी देखी जा सकती है।
आंकड़ों के मुताबिक इस सदी में पहली बार सबसे कमजोर 50 फीसदी देशों में प्रति व्यक्ति जीडीपी की वृद्धि दर, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सुस्त रही है।
लैंगिक समानता की राह में भी चुनौतियां गंभीर हैं। उदाहरण के लिए सर्वे किए गए 120 में से करीब 55 फीसदी देशों में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर रोक लगाने के लिए कानून नहीं हैं। बच्चों की शिक्षा भी एक बड़ी चुनौती है, आंकड़ों के मुताबिक केवल 58 फीसदी बच्चे ही प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद पढ़ने में न्यूनतम दक्षता हासिल कर पाते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 2023 में वैश्विक बेरोजगारी दर पांच फीसदी के अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई, हालांकि इसके बावजूद अभी भी सबके लिए योग्य रोजगार पाने की राह में कई में बाधाए हैं।
विकासशील देशों में बढ़ता विदेश कर्ज भी एक बड़ी समस्या है जो अभूतपूर्व रूप से उच्च स्तर पर बना हुआ है। करीब 60 फीसदी कमजोर देश में इसको लेकर स्थिति पहले से खराब हुई है और जोखिम बेहद बढ़ गया है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए कहा है कि, "हमें गरीबी को जड़ से खत्म करने, ग्रह को बचाने और किसी को भी पीछे न छोड़ने के अपने वादे से पीछे नहीं हटना चाहिए।"
विकासशील देशों में सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए निवेश का अंतर अब भी 400,000 करोड़ डॉलर प्रति वर्ष है। इन्हें कहीं ज्यादा वित्त की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा है कि वित्तीय संसाधनों में तेजी से बढ़ोतरी करनी होगी और मौजूदा वैश्विक वित्तीय प्रणाली में भी सुधार लाए जाने की दरकार है, ताकि हर किसी के जीवन को बेहतर बनाया जा सके।
मई 2024 तक जबरन विस्थापितों की संख्या करीब 12 करोड़ तक पहुंच गई। बढ़ती हिंसा के कारण 2022 से 2023 के बीच हताहत नागरिक की संख्या में भी 72 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो शांति स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। ऐसे में संवाद और कूटनीति की मदद से जारी संघर्षों को हल करना आवश्यक है।
रिपोर्ट में खाद्य, ऊर्जा, सामाजिक संरक्षण और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बदलाव लाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश और प्रभावी साझेदारी पर बल दिया गया है।संयुक्त राष्ट्र ने रिपोर्ट में समुद्र के तापमान में आती रिकॉर्ड वृद्धि को लेकर भी चिंता जताई है, जिसने चौथी वैश्विक कोरल ब्लीचिंग की घटना को जन्म दिया है।
दूसरी तरफ कई ऐसे क्षेत्र भी हैं जिनका प्रदर्शन पहले से बेहतर हुआ है। गौरतलब है कि जहां अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आए हैं। यही वजह है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में आठ फीसदी से ज्यादा की रफ्तार से प्रगति हुई है। टैक्नॉलॉजी के क्षेत्र में भी दुनिया के कदम आगे बढ़े हैं। इसका एक उदाहरण मोबाइल ब्रॉडबैंड की सुलभता के रूप में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए जहां 2015 में 78 फीसदी लोगों की मोबाइल ब्रॉडबैंड तक पहुंच थी, वहीं अब यह पहुंच 95 फीसदी तक पहुंच गई है।
अधिकांश क्षेत्रों में, अब स्कूली शिक्षा हासिल करने में लड़कों से पीछे नहीं हैं। आठ वर्षों में इंटरनेट की पहुंच में हुई 70 फीसदी की वृद्धि दर्शाती है कि तेज, बड़े बदलाव संभव हैं। इसी तरह एचआईवी/एड्स के खिलाफ हुई प्रगति दर्शाती है कि कैसे दुनिया यदि मिल जाए तो अन्य महामारियों पर काबू पा सकती है।उपचार तक बढ़ती पहुंच की मदद से पिछले तीन दशकों में एड्स से संबंधित 2.08 करोड़ मौतों को टाला जा सका है।
भारत में भी कई मुद्दों पर है प्रगति की दरकार
सतत विकास से जुड़े लक्ष्यों के मामले में भारत का रिपोर्ट कार्ड कैसा है, इसके बारे में 'एशिया एंड द पैसिफिक एसडीजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2024' से पता चला है कि देश में एसडीजी से जुड़े 85 मापदंडों पर भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है, जबकि 27 में प्रगति करीब करीब थम सी गई है। बता दें कि यह रिपोर्ट इस साल संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (यूएनईएससीएपी) द्वारा जारी की गई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक 36 मामलों में प्रगति खराब हुई है। आंकड़ों की कमी को उजागर करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी 99 संकेतक ऐसे हैं, जिनकी प्रगति को मापने के लिए हमारे पास पर्याप्त जानकारी नहीं है।
देश में बुनियादी पेयजल सेवाओं का उपयोग करने वाली आबादी में भी इजाफा दर्ज किया गया है। 2015 में जहां 89.2 फीसदी आबादी पानी के लिए बुनियादी सेवाओं का उपयोग कर रही है वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 93.3 फीसदी दर्ज किया गया।
आज देश की शत-प्रतिशत आबादी तक बिजली पहुंच चुकी है। बता दें कि जहां 2015 में देश की 30.4 फीसदी आबादी खुले में शौच जाती थी अब 2022 में यह आंकड़ा घटकर 11 फीसदी रह गया है। ऐसे ही जहां 2015 में 61.8 फीसदी लोगों के घर पर हाथ धोने की बुनियादी सुविधा उपलब्ध थी अब 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 76.3 फीसदी पर पहुंच गया है।
आंकड़ों की मानें तो देश ने स्वास्थ्य क्षेत्र में भी प्रगति की है। इसका उदाहरण है कि जहां 2015 में देश के 37.9 फीसदी पांच या उससे कम वर्ष के बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने थे। वहीं 2020 में यह आंकड़ा घटकर 35.5 फीसदी रह गया है। इसी तरह जहां 2015 में इसी आयु वर्ग के 20.8 फीसदी बच्चे वेस्टिंग का शिकार थे वहीं 2020 में पतले बच्चों का यह आंकड़ा 18.7 फीसदी रह गया।
वहीं सतत विकास से जुड़े 36 संकेतक ऐसे हैं, जिनकी दिशा में हो रही प्रगति पहले से पिछड़ी है। उदाहरण के लिए देश में कुपोषण की स्थिति पहले से बदतर हुई है। जहां 2015 में देश की 14 फीसदी आबादी अल्पपोषण का शिकार थी, वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 16.6 फीसदी पर पहुंच गया।
इसी तरह देश में आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा भी बढ़ा है। वहीं घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के मामले में भी प्रगति पिछड़ी है। बता दें कि जहां 2020 में घरों से निकलने वाला 26.6 फीसदी दूषित जल साफ किया जा रहा था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 20 फीसदी रह गया।
देश में संसाधनों पर दबाव बढ़ा है, जहां 2015 में भारत का प्रति व्यक्ति मैटेरियल फुटप्रिंट 4.8 टन था, वो 2019 में बढ़कर 5.2 टन पर पहुंच गया। देश में बेरोजगारी दर 2018 में 7.7 फीसदी से बढ़कर 2020 में 7.9 पर पहुंच गई। सतत पर्यटन के मुद्दे पर भी प्रगति में गिरावट हुई है।
भले ही देश-दुनिया में कई लक्ष्यों की दिशा में प्रगति हुई है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी हम कई मामलों में काफी पीछे है और ऐसे में यदि इन लक्ष्यों के करीब पहुंचना है तो हमें अपने प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है।