

उत्तराखंड के गंगोत्री हाइवे के चौड़ीकरण के लिए 6,800 पेड़ों की कटाई का विरोध हो रहा है।
वन विभाग ने 4366 पेड़ों को ट्रांसलोकेट करने और 2,456 पेड़ों को काटने का प्रस्ताव दिया है।
बीआरओ का कहना है कि केवल 1,400 पेड़ काटे जाएंगे।
इस विवाद ने पर्यावरणीय चिंताओं को बढ़ा दिया है।
जबकि स्थानीय लोग विकास की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।
एक ओर जहां उत्तराखंड के गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का चौड़ीकरण के लिए 6,800 पेड़ों को काटने का विरोध मुखर हो रहा है, वहीं वन विभाग का एक नया प्रस्ताव सामने आया है। इसमें 4,366 पेड़ों को ट्रांसलोकेट और 2,456 पेड़ों को काटे जाने की बात कही गई है। इससे इतर सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने यह कहकर इस पूरी योजना पर और संशय बढ़ा दिया है कि केवल 1,400 पेड़ काटे जाने की योजना है।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ), उत्तरकाशी के कमांडेंट इंजीनियर राज किशोर ने डाउन टू अर्थ से कहा, "राजमार्ग को 11 मीटर चौड़ा किया जाएगा। हम ऐसे कॉरीडोर को चिन्हित कर रहे हैं, जहां पर हाइवे को नदी की ओर बढ़ाया जाए और पहाड़ को कम से कम काटना पड़े। इस योजना की जद में 1,400 पेड़ आ रहे हैं, जिसमें देवदार के साथ बाकी प्रजातियों के पेड़ भी हैं। पहले योजना में दो बाईपास थे जिनकी चौड़ाई ज्यादा हो रही थी, इसे भी कम किया गया है।"
वहीं इससे पहले 12 नवंबर 2025 को तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक समीर सिन्हा ने वन सचिव को भेजे एक प्रस्ताव में बताया था कि झाला से भैरोंघाटी के बीच लगभग 20 किलोमीटर क्षेत्र में 41.9240 हेक्टेयर वन भूमि को गैर वानिकी कार्य के लिए बीआरओ को देने की सिफारिश की गई है। इस योजना में कुल 6,822 पेड़ प्रभावित हो रहे हैं।
इनमें से 4,366 पेड़ों को ट्रांसलोकेट करने की बात कही गई है, यानी इन्हें उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाएगा। इनमें 0 से 20 व्यास वर्ग के 3,262 पेड़ और 20 से 30 व्यास वर्ग के 1103 पेड़ शामिल हैं। इस प्रक्रिया पर 323.44 लाख रुपएए खर्च होने का अनुमान है। शेष 2,456 पेड़ों को काटे जाने का प्रस्ताव है। इस क्षति की भरपाई के लिए नौगांव, बड़कोट, यमुनोत्री रेंज और मुगरसंती रेंज में कुल 76.924 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिपूरक वनीकरण किए जाने की बात कही गई है।
डाउन टू अर्थ के पास इस प्रस्ताव की प्रति उपलब्ध है। अब सवाल यह उठ रहा है कि इस प्रोजेक्ट के पीछे की हकीकत क्या है? दरअसल पांच अगस्त 2025 की धराली आपदा के बाद से ही इस योजना पर सवाल उठ रहे हैं। यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में भी उठा था। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार के महत्वाकांक्षी ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा है। जिस पर पहले से ही कई बार विवाद हो चुका है।
गंगोत्री से उत्तरकाशी तक सड़क चौड़ीकरण प्रोजेक्ट को पांच हिस्सों में बांटा गया है। पहला गंगोत्री से लेकर झाला, दूसरा झाला से सुक्कीटॉप को बाइपास करके सामने वाले पहाड़ से गंगनानी तक आना, क्योंकि सुक्कीटॉप खुद ही एक सिंकिंग एरिया है, तीसरा हिस्सा गंगनानी से हिना तक का है, चौथा हिना से तेकला तक है। इसमें नेताला स्लाइड या सिंकिंग एरिया को बाइपास करके तेकला तक जाना है, और पांचवां है तेकला से बड़ेथी चुंगी तक।
ताजा विवाद सुक्की से भैरोघाटी के 20 किलोमीटर के ईको सेंसटिव जोन को लेकर है। पहले इस क्षेत्र में गंगोत्री से धरासू के बीच पहले हाइवे को 24 मीटर तक चौड़ा करने का प्रस्ताव था। लेकिन वैज्ञानिक अध्ययनों व विरोध के मद्देनजर 12 मीटर (11 मीटर की सड़क) कर दिया गया। फिर भी लगभग 6822 पेड़ों को कटाने के लिए चिन्हित किया गया था।
छह दिसंबर 2025 को इन पेड़ों पर स्थानीय लोगों ने रक्षा सूत्र बांधकर विरोध जताया। इस अभियान को पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राजदूत कर्ण सिंह सहित कई वैज्ञानिकों व पर्यावरण संगठनों का खुला समर्थन मिला। छत्तीसगढ़ की सांसद रंजीत रंजन ने यह विषय संसद में उठाकर इसे और गर्मा दिया।
चार धाम परियोजना की हाई पावर कमेटी के सदस्य और गंगोत्री घाटी में देवदार के पेड़ों को काटने के खिलाफ पर्यावरणकार्यकर्ता हेमंत ध्यानी ने रक्षासूत्र अभियान चलाया। ध्यानी कहते हैं कि उत्तराखंड में 900 किलोमीटर की ऑल-वेदर रोड परियोजना के तहत लगभग 800 किलोमीटर तक पहाड़ कट चुके हैं और इससे उत्तराखंड और यहां के पर्यावरण को बहुत नुकसान हुआ है। उत्तराखंड के पहाड़ों में लगातार नए भूस्खलन जोन बन रहे हैं।
2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 200 नए लैंडस्लाइड प्रोन एरिया डेवलप हो चुके हैं। हाल ही में चार धाम मार्ग पर देवप्रयाग से ठीक पहले मौजूद तोता घाटी के पहाड़ों का चटकना बड़ी चिंता बन गया है। हल्की बारिशों में भी यह ऑल वेदर रोड टूट रही है। अब उत्तरकाशी से हर्षिल तक के बचे हुए लगभग 100 किलोमीटर इलाके में भी कटान हुआ तो यह इको-सेंसिटिव इलाके के लिए विनाशकारी साबित होगा।
विशेषज्ञों का क्या है तर्क?
इस योजना का वैकल्पिक प्रस्ताव देने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल के अनुसार यह मामला इंटरमीडिएट रोड विड्थ का है, जो इंडियन रोड कांग्रेस की परिभाषा के अनुसार 5.5 मीटर की काली सतह (ब्लैक टॉप) होती है। इस चौड़ाई वाली सड़क के लिए लगभग 12 मीटर और कुछ जगहों पर 20 मीटर से अधिक तक कटिंग की जरूरत पड़ सकती है।
जुयाल कहते हैं, असल में तुलना दो-लेन सड़क से है, जिसमें पेव्ड शोल्डर शामिल होता है। इसकी कुल चौड़ाई लगभग 12 मीटर होती है, जिसमें 7 मीटर कैरिजवे (ब्लैक टॉप) और दोनों तरफ 2.5–2.5 मीटर पेव्ड शोल्डर शामिल है। यदि दो-लेन सड़क पेव्ड शोल्डर के साथ बनाई जाती है, तो लगभग 6,000 पेड़ प्रभावित होंगे।
झाला और जांगला के बीच करीब 20 किलोमीटर हिस्से में बीआरओ ने सड़क की चौड़ाई 12 मीटर से घटाकर 11 मीटर कर दी है। इससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ने वाला। जबकि हमारी सलाह इंटरमीडिएट रोड विड्थ यानी 5.5 मीटर की है। यह इतनी चौड़ी सड़क होगी कि इस पर बड़े वाहन आसानी से गुजर सकेंगे।
हर्षिल घाटी के लोग क्या चाहते हैं?
धराली में रक्षा सूत्र कार्यक्रम का कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया। चाम महीने पूर्व ही प्राकृतिक आपदा झेलने वाले धराली गांव के प्रधान अजय नेगी कहते हैं कि हमारे पूर्वज ने सैकड़ों सालों से अपने इलाके के पर्यावरण व पेड़ों की चिंता की है। देवदार हमारे लिए देववृक्ष हैं, पर समय की जरूरत विकास भी है।
नेगी के मुताबिक बीआरओ ने पहले 12 मीटर चौड़ी सड़क का प्रस्ताव किया था, जिसका पूरी घाटी में विरोध हुआ। हम भी नहीं चाहते कि यहां पर फोरलेन का हाईवे बनाा जाए। हम बस इतना चाहते हैं कि सड़क इतनी चौड़ी की जाए, जिससे कि पर्यटकों और लोगों को सहूलितय हो और ट्रैफिक जाम की समस्या खत्म हो जाए। वैज्ञानिकों की संस्तुति क्या है इस बारे में हमें जानकारी नहीं, पर बीआरओ के अनुसार वो यहां पर 8 मीटर तक चौड़ी सड़क बना रहा है। हमने रक्षा सूत्र कार्यक्रम का विरोध किया, क्योंंकि वह लोग पूरी तरह से सड़क के विरोध में है। हमने डीएम उत्तरकाशी के समक्ष विरोध जताया है।
यह भी हो सकता है एक समधान
भू-विज्ञानी एसपी सती के अनुसार अच्छी सड़क बनाना जरूरी है इस बात पर सभी सहमत हैं, पर हमें सुरक्षित सड़कें भी चाहिए जो आवाजाही को आसान बनाएं। वैज्ञानिकों ने पहले ही इस विषय पर एक कम नुकसान वाली डीपीआर सब्मिट की है। जिसमें पर्यावरण की चिंताओं के साथ सड़क सुरक्षा को भी फोकस में रखा गया था। इसलिए वैज्ञानिक संस्तुति को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए।
सती कहते हैं कि हमें ये समझना होगा कि हर्षिल घाटी तकनीकी तौर पर एक बेहद नाजुक हिमालयी ज़ोन है। यहां ढलान ढीले ग्लेशियल मलबे पर टिके हैं, जो थोड़े दबाव या बारिश में खिसक सकते हैं। बड़े पैमाने पर कटिंग या ब्लास्टिंग ढलान की पकड़ कमजोर करती है और भूस्खलन का जोखिम बढ़ाती है।
सती के मुताबिक देवदार जैसे पुराने पेड़ मिट्टी को बांधकर रखते हैं, इसलिए उनकी ज्यादा कटाई स्लोप स्टेबलिटी को सीधा प्रभावित करती है। सड़क चौड़ी करने से मशीनरी, कंपन, और अतिरिक्त मिट्टी हटाने का दबाव बढ़ेगा, जिसे वैज्ञानिक ढंग से संभाला न जाए तो नदी, जलधाराओं और भूजल पर असर पड़ता है, इसलिए तकनीकी रूप से आवश्यक है कि रास्ता सीमित चौड़ाई में रखा जाए, मलबा वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधित हो और ढलान सुरक्षा के लिए एंकरिंग, बायो-इंजनियरिंग और ड्रेनेज की व्यवस्था की जाए। टिकाऊ निर्णय के लिए वैज्ञानिक मूल्यांकन और दीर्घकालिक निगरानी सख्त अनिवार्य है।