भारत में रह रहे दुनिया के 28 फीसदी गरीब: मानव विकास सूचकांक 2019

यूूएनडीपी के वार्षिक मानव विकास सूचकांक के मुताबिक, भारत में 2005 से 2015 के दौरान लगभग 27.1 करोड़ लोग गरीब रेखा से बाहर निकल आए हैं, लेकिन अभी भी 28 फीसदी गरीब भारत में ही हैं
फोटो: विकास चौधरी
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हालांकि भारत में 2005 से 2015 के दौरान लगभग 27.1 करोड़ लोग गरीब रेखा से बाहर निकल आए हैं, बावजूद इसके अभी भी दुनिया के लगभग 28 फीसदी गरीब भारत में रह रहे हैं।

नौ दिसंबर 2019 को जारी वार्षिक मानव विकास सूचकांक 2019 में यह जानकारी दी गई है। सूचकांक में कहा गया है कि 189 देशों में भारत का नंबर 129वां है, जिसमें पिछले साल के मुकाबले 1 अंक का सुधार हुआ है।

रिपोर्ट बताती है कि भारत में अभी भी 36.4 करोड़ गरीब रह रहे हैं, जो कुल दुनिया के गरीबों की आबादी का 28 फीसदी है। दुनिया भर में गरीबों की संख्या 130 करोड़ है।

एशिया में 66.1 करोड़ गरीब रहते हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। दक्षिण एशिया में भारत सबसे बड़ा देश है। दुनिया भर के मुकाबले दक्षिण एशिया में लगभग 41 फीसदी गरीब रहते हैं।

1990 से 2018 के दौरान भारत में मानव विकास सूचकांक मूल्यों में लगभग 50 फीसदी की वृद्धि हुई है। पिछले तीन दशकों में भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में 11.6 वर्ष की वृद्धि हुई, जबकि स्कूली शिक्षा की औसत संख्या में 3.5 वर्ष की वृद्धि हुई और प्रति व्यक्ति आय 250 गुना बढ़ गई।

रिपोर्ट में पाया गया है कि प्रगति के बावजूद भारतीय उपमहाद्वीप में समूह आधारित असमानताएं बनी हुई हैं, जो खासकर महिलाओं और लड़कियों को प्रभावित कर रही हैं। हालांकि सिंगापुर में महिलाओं के खिलाफ अंतरंग साथियों द्वारा की जाने वाली हिंसक घटनाओं में कमी आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया की 31 प्रतिशत महिलाओं ने अंतरंग साथियों द्वारा हिंसक घटनाओं का सामना किया है।

लिंग विकास सूचकांक के मामले में भारत की स्थिति दक्षिण एशियाई औसत से केवल मामूली बेहतर है। 2018 में लिंग असमानता सूचकांक में भारत का नंबर 162 देशों की सूची में 122वां था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे गरीबी से बाहर आने वालों की संख्या बढ़ रही है, दुनिया दूसरी तरह की गरीबी की ओर बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार पुरानी असमानताएं स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुंच पर आधारित थीं जबकि गरीबी की अगली पीढ़ी प्रौद्योगिकी, शिक्षा और जलवायु पर आधारित है।

रिपोर्ट में गरीबी, जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में कमी का विश्लेषण करने के बाद देशों की रैंकिंग की गई।

भारत में दोनों तरह की गरीबी है। यहां तक ​​कि भारतीयों को स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुंच में कमी का सामना करना पड़ रहा है, कई अन्य नए मानदंडों के आधार पर गरीब होते जा रहे हैं।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत को कठिन प्रयास करने होंगे।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के प्रशासक अचिम स्टेनर ने एक बयान में कहा कि सबसे पहले असमानता की पहचान करनी होगी और सरकारों को उससे निपटने के इंतजाम करने होंगे। असमानता से आशय, धन और शक्ति के असमान वितरण के बारे में है जो आज लोगों को सड़कों पर ला रही है। और भविष्य में ऐसा तब तक होता रहेगा, जब तक इसमें बदलाव नहीं आता।

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