कृषि प्रणाली में बदलाव: फसल चयन से कार्बन संग्रह व उत्सर्जन पर लग सकती है लगाम

फसल बदलने से केवल उत्सर्जन नहीं, बल्कि मिट्टी में कार्बन संग्रह और पूरी कृषि प्रणाली पर लंबे समय तक असर पड़ता है।
जैविक खेती में कम उत्पादन होने से उत्सर्जन कम होता है, लेकिन कार्बन संग्रह और बायोमास भी सीमित रहता है।
जैविक खेती में कम उत्पादन होने से उत्सर्जन कम होता है, लेकिन कार्बन संग्रह और बायोमास भी सीमित रहता है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • सर्कुलर मॉडल दिखाता है कि एक फसल बदलने से केवल उत्सर्जन नहीं, बल्कि पूरे कृषि तंत्र पर असर पड़ता है।

  • क्लोवर और लूसर्न जैसी फसलें सीधे उत्सर्जन बढ़ाती हैं, लेकिन मिट्टी में कार्बन संग्रह से लंबे समय तक जलवायु लाभ मिलता है।

  • फाबा बीन्स उत्सर्जन तुरंत कम करती हैं, लेकिन कार्बन संग्रह और बायोगैस उत्पादन में योगदान सीमित रहता है।

  • जैविक खेती में कम उत्पादन होने से उत्सर्जन कम होता है, लेकिन कार्बन संग्रह और बायोमास भी सीमित रहता है।

  • नीति निर्धारकों के लिए यह मॉडल जरूरी है, ताकि ग्रीन पहलें पूरी प्रणाली का ध्यान रखते हुए लंबे समय से फायदा दें।

पश्चिमी जूटलैंड के खेतों में सर्दियों की धूप में सुनहरा गेहूं खड़ा होता है। यह दृश्य जितना सुंदर लगता है, उतना ही हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर हम खेती के तरीकों को बदल दें, तो उसके परिणाम क्या होंगे। हाल ही में आर्हस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह सवाल गहराई से जांचा कि एक खेत में सिर्फ एक फसल बदलने से पूरे कृषि तंत्र पर क्या असर पड़ता है।

शोध के लिए उन्होंने सर्कुलर मॉडल का उपयोग किया, जो कि एक ऐसा उपकरण है जो खेती में बदलाव के जलवायु और पर्यावरणीय प्रभावों की गणना करता है। इसका उद्देश्य नीति निर्माताओं को यह समझाने में मदद करना है कि “हरित” परिवर्तन के कदम उठाने से पहले उसके पूरे परिणाम क्या होंगे।

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अगर खेतों में सर्दियों का गेहूं हटाकर अधिक उत्पादन देने वाला क्लोवर घास लगाया जाए, तो यह देखने में पर्यावरण के अनुकूल लगता है। क्लोवर घास न केवल पौधों से प्रोटीन प्रदान करता है और आयातित सोया की आवश्यकता कम करता है, बल्कि बायोगैस उत्पादन के लिए भी फायदेमंद है। लेकिन वास्तविकता में, कृषि एक सरल और बंद तंत्र नहीं है। जब हम एक चीज बदलते हैं, तो इसके साथ कई बदलाव श्रृंखलाबद्ध रूप में होते हैं।

अनोखा परिणाम: अधिक उत्सर्जन, पर बेहतर जलवायु लाभ

सर्कुलर मॉडल ने पाया कि जब गेहूं की जगह उच्च उर्वरित क्लोवर घास उगाई जाती है, तो सीधे कृषि से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ जाता है। इसका कारण है कि हरी खाद और बायोगैस अवशेषों के उपयोग से अमोनिया और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है।

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लेकिन इसके साथ ही जमीन में कार्बन संग्रहण भी बढ़ता है। 20 वर्षों में जमा हुआ कार्बन अतिरिक्त उत्सर्जन से अधिक हो सकता है। इसका अर्थ है कि लंबे समय में कुल मिलाकर जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह स्थिति हमें यह सिखाती है कि हर “हरित” कदम का मतलब तुरंत उत्सर्जन में कमी नहीं होता।

एग्रीकल्चरल सिस्टम्स नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि जब हम उच्च उर्वरित क्लोवर घास लगाते हैं, तो यह तंत्र में वास्तव में एक तरह की तीव्रता पैदा करता है, न कि सरलता। यह सहज लग सकता है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है, लेकिन तथ्य अलग हैं।

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फसल चयन का महत्व

  • सर्कुलर मॉडल ने यह भी दिखाया कि कौन सी फसल चुनी जाती है, उसका जलवायु पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।

  • क्लोवर और अल्फाल्फा (लूसर्न): कार्बन संग्रहण में मदद करता है लेकिन सीधे उत्सर्जन को बढ़ाता है।

  • फाबा बीन्स: उत्सर्जन तुरंत कम करता है, लेकिन कार्बन संग्रह बहुत कम होता है और बायोगैस उत्पादन नहीं होता।

  • जैविक खेती: कम उत्पादन होने के कारण कम उत्सर्जन होता है, लेकिन कार्बन संग्रह भी सीमित होता है।

इससे स्पष्ट है कि सिर्फ उर्वरक कम करना या कोई एक फसल बदलना समाधान नहीं है। पूरी प्रणाली को समझना जरूरी है।

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नीति निर्माण में योगदान

सर्कुलर मॉडल सिर्फ एक शोध परियोजना नहीं है, बल्कि नीति निर्धारकों के लिए एक उपकरण है। यह मदद करता है कि किसान और सरकार ऐसे कदम उठाएं जो लंबे समय में पर्यावरण और जलवायु के लिए सही हों। यदि हम केवल छोटे हिस्सों पर ध्यान देंगे, तो संभव है कि हमारी योजनाएं “कागज पर हरी” दिखें, लेकिन वास्तविकता में नुकसानदायक हों।

शोध में कहा गया है कि पूरे चक्र को समझना जरूरी है। नई फसल या तकनीक अपनाने से यह असर पड़ता है कि चारा, बायोगैस उत्पादन, खल और उर्वरक की मात्रा, मीथेन उत्सर्जन और मिट्टी में कार्बन संग्रह सभी प्रभावित होते हैं। यही वह पूरी तस्वीर है जो नीति निर्माण में मायने रखती है।

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कृषि में हर बदलाव का असर केवल खेत तक सीमित नहीं होता। फसल का चुनाव, उर्वरक का इस्तेमाल और बायोगैस जैसी तकनीकें, सब मिलकर लंबी अवधि में जलवायु और पर्यावरण पर असर डालती हैं। सर्कुलर मॉडल हमें यह सिखाता है कि समग्र नजरिया अपनाना जरूरी है। केवल उत्सर्जन घटाने की दिशा में कदम उठाने से कभी-कभी परिणाम उल्टा भी हो सकता है।

इस प्रकार, गेहूं से क्लोवर तक का बदलाव हमें यह याद दिलाता है कि कृषि और जलवायु परिवर्तन में सोच-समझकर कदम उठाना ही स्थायी समाधान है।

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