

वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग में बदलाव के कारण सदी के अंत तक अमेजन के 38 फीसदी जंगल खत्म हो सकते हैं।
इसमें 25 फीसदी नुकसान भूमि उपयोग में आ रहे बदलाव से जबकि 13 फीसदी बढ़ते तापमान की वजह से होगा। देखा जाए तो यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है, क्योंकि पहले के अध्ययनों में चेतावनी दी जा चुकी है कि 20 से 25 फीसदी जंगल के खत्म होते ही अमेजन टिपिंग पॉइंट को पार कर सकता है।
यह पृथ्वी की जलवायु के लिए बड़ा खतरा है। अमेजन के जंगलों का नष्ट होना पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए बदल सकता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अमेजन के पेड़ों और मिट्टी में धरती के कुल जमीनी कार्बन का करीब 10 फीसदी जमा है।
अमेजन सिर्फ जंगल नहीं, पृथ्वी के फेफड़े भी हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने चेताया है कि दुनिया के ये सबसे बड़े वर्षावन सदी के अंत तक अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी जंग लड़ सकते हैं।
जर्मनी की लुडविग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग में बदलाव के चलते सदी के अंत तक अमेजन के 38 फीसदी जंगल खत्म हो सकते हैं। यह एक ऐसा नुकसान है जो पूरी पृथ्वी की जलवायु को हिला सकता है।
करीब 55 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला अमेजन केवल पेड़ों का जंगल नहीं। यह जैव विविधता का वैश्विक केंद्र भी है, जो लाखों वनवासी समुदायों का घर है और पृथ्वी की जलवायु को संतुलित रखने की सबसे बड़ी प्राकृतिक ढालों में से एक है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, अमेजन के पेड़ों और मिट्टी में धरती के कुल जमीनी कार्बन का करीब 10 फीसदी जमा है।
जंगल जो खुद को रखता है जिंदा
अमेजन की सबसे अनोखी खासियत उसकी ‘खुद को जीवित रखने की क्षमता है। यह जंगल समुद्र से नमी खींचकर देश के अंदरूनी हिस्सों तक ले जाता है। यहां बारिश होती है, पानी वाष्प बनता है और फिर दोबारा बरसता है। इस प्राकृतिक चक्र के सहारे अमेजन हजारों वर्षों से फलता-फूलता आया है। लेकिन यह संतुलन अब टूटने की कगार पर है।
कृषि और पशुपालन के लिए जिस तरह जंगलों को काटा जा रहा है, उसके साथ ही बढ़ता वैश्विक तापमान अमेजन को सूखे और भीषण गर्मी की ओर धकेल रहे हैं।
भूमि उपयोग में बदलाव और जलवायु परिवर्तन ये दोनों पहले ही अमेजन को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं था कि ये दोनों मिलकर एक-दूसरे को कैसे प्रभावित कर रहे हैं और भविष्य में जंगलों का क्या हाल होगा।
‘टिपिंग पॉइंट’ का खतरा
वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चिंता है जंगलों का अचानक से खत्म होना, जब घना जंगल धीरे-धीर नहीं बल्कि तेजी से सवाना जैसी खुली भूमि में बदल जाए। अगर ऐसा बड़े पैमाने पर हुआ, तो अमेजन एक ऐसे ‘टिपिंग पॉइंट’ पर पहुंच सकता है, जहां से उसकी वापसी असंभव हो जाएगी और यह पारिस्थितिकी तंत्र हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
लुडविग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख की भूगोलविद सेल्मा बुल्टन के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन ने पहली बार भूमि उपयोग में आ रहे बदलावों और जलवायु परिवर्तन दोनों के संयुक्त प्रभाव का व्यवस्थित विश्लेषण किया गया है।
इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पीएनएएस) में प्रकाशित हुए हैं।
भविष्य की भयावह तस्वीर
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अर्थ सिस्टम मॉडलों की मदद से 1950 से 2014 तक अमेजन में काटे गए वनों का अध्ययन किया है और दो अलग-अलग जलवायु परिदृश्यों के आधार पर भविष्य का अनुमान लगाया है। इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वे दर्शाते हैं कि 1950 में मौजूद अमेजन के जंगल का 38 फीसदी हिस्सा सदी के अंत तक नष्ट हो सकता है।
इसमें 25 फीसदी नुकसान भूमि उपयोग में आ रहे बदलाव से जबकि 13 फीसदी बढ़ते तापमान की वजह से होगा। देखा जाए तो यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है, क्योंकि पहले के अध्ययनों में चेतावनी दी जा चुकी है कि 20 से 25 फीसदी जंगल के खत्म होते ही अमेजन टिपिंग पॉइंट को पार कर सकता है।
अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि अगर वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 2.3 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाती है, तो जंगल के अचानक और बड़े पैमाने पर खत्म होने का खतरा तेजी से बढ़ जाएगा।
वहीं यदि मौजूदा नीतियों और देशों द्वारा की गई घोषणाओं को देखें तो वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया तापमान में कम से कम 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की ओर बढ़ रही है।
शोधकर्ताओं मानते हैं कि बेलेम जलवायु सम्मेलन में वर्षावनों की सुरक्षा को लेकर जो कदम उठाए गए हैं, वे उम्मीद तो जगाते हैं, लेकिन काफी नहीं हैं। अब जलवायु कार्रवाई की रफ्तार बढ़ाना और जंगलों की सुरक्षा को कहीं ज्यादा मजबूत करना जरूरी नहीं, बल्कि अनिवार्य हो चुका है।
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अमेजन की कीमत इतनी बड़ी है कि मानवता उसके अस्तित्व को दांव पर लगाने का जोखिम नहीं उठा सकती।