वैज्ञानिकों ने स्टैलैग्माइट से जलवायु परिवर्तन और सभ्यता की शुरुआत का लगाया पता

कुर्दिस्तान की गुफा से मिले जलवायु संकेत बताते हैं कि बदलते मौसम ने उर्वर अर्धचंद्र में कृषि और शुरुआती मानव बसावट को कैसे आकार दिया।
कुर्दिस्तान की गुफा में मिली स्टैलेग्माइट ने 18,000 से 7,500 साल पुरानी जलवायु का पूरा रिकॉर्ड दिया।
कुर्दिस्तान की गुफा में मिली स्टैलेग्माइट ने 18,000 से 7,500 साल पुरानी जलवायु का पूरा रिकॉर्ड दिया।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • कुर्दिस्तान की गुफा में मिली स्टैलेग्माइट ने 18,000 से 7,500 साल पुरानी जलवायु का पूरा रिकॉर्ड दिया।

  • आइसोटोप और सूक्ष्म तत्वों के विश्लेषण से बारिश, तापमान, सूखे और धूल भरी आंधियों की जानकारी मिली।

  • यंगर ड्रायस अवधि में पूर्वी उर्वर अर्धचंद्र में भारी सूखा और पर्यावरणीय अस्थिरता देखी गई।

  • कठिन मौसम के कारण यहाँ के लोग लंबे समय तक घुमंतू शिकारी-संग्रहकर्ता बने रहे।

  • लगातार बदलते संसाधनों से निपटने की क्षमता ने इन समुदायों को अत्यंत लचीला और अनुकूलनीय बनाया, जिसने आगे सभ्यता के विकास में मदद की।

मानव इतिहास में उर्वर अर्धचंद्र (फर्टाइल क्रिसेंट) को सभ्यता का पालना कहा जाता है। यह मध्य पूर्व का एक बूमरैंग आकार का क्षेत्र है, जहां हजारों साल पहले इंसानों ने पहली बार खेती शुरू की। लेकिन लंबे समय तक वैज्ञानिक इस बात को पूरी तरह नहीं समझ पाए कि उस समय के जलवायु परिवर्तन ने शुरुआती समाजों को कैसे प्रभावित किया। अब कुर्दिस्तान की एक गुफा में मिली एक प्राचीन स्टैलेग्माइट ने इस रहस्य को समझने में नई रोशनी डाली है।

स्टैलेग्माइट: पत्थर में छिपी जलवायु की डायरी

स्टैलेग्माइट एक ऐसा प्राकृतिक स्तंभ होता है जो गुफा की जमीन से धीरे-धीरे ऊपर की ओर बनता है। बारिश का पानी मिट्टी और चूना पत्थर से होकर रिसता है और गुफा में टपकता है। हर बूंद थोड़ा-थोड़ा कैल्साइट जमा करती है, जिससे परतें बनती जाती हैं। इन परतों में उस समय की तापमान, बारिश और पर्यावरण की रासायनिक जानकारी सुरक्षित रहती है।

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कुर्दिस्तान की गुफा में मिली स्टैलेग्माइट ने 18,000 से 7,500 साल पुरानी जलवायु का पूरा रिकॉर्ड दिया।

कुर्दिस्तान की गुफा में मिली इस स्टैलेग्माइट का अध्ययन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लगभग 18,000 से 7,500 साल पहले तक लगातार बनती रही। यह समय आखिरी हिमयुग के अंत और आधुनिक गर्म युग (होलोसीन) की शुरुआत का था, वही समय जब इंसानों की जीवनशैली शिकार से खेती की ओर बदल रही थी।

कैसे किया गया अध्ययन?

वैज्ञानिकों ने स्टैलेग्माइट की परतों में मौजूद ऑक्सीजन और कार्बन के आइसोटोप, तथा मैग्नीशियम और बैरियम जैसे सूक्ष्म तत्वों का विश्लेषण किया। ऑक्सीजन-18 आइसोटोप बताते हैं कि उस समय कितनी बारिश होती थी। कम मूल्य का मतलब अधिक बारिश से है। कार्बन आइसोटोप पौधों और मिट्टी की स्थिति बताते हैं।

अधिक हरियाली का मतलब गर्म और नम जलवायु से है। सूक्ष्म तत्व सूखे की तीव्रता और धूल भरी आंधियों की आवृत्ति के संकेत देते हैं। इन सभी जानकारियों को जोड़कर वैज्ञानिकों ने पूर्वी उर्वर अर्धचंद्र के प्राचीन पर्यावरण की पूरी तस्वीर बनाई।

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कठोर मौसम और मानव जीवन पर असर

विश्लेषण से पता चला कि इस क्षेत्र के बारिश का पैटर्न विश्वव्यापी तापमान में बदलावों से मेल खाता था, जिसे ग्रीनलैंड की बर्फ में जमी परतों से जाना जाता है। उस समय एक बहुत महत्वपूर्ण ठंडा दौर आया था जिसे यंगर ड्रायस कहा जाता है। इसका असर कुर्दिस्तान क्षेत्र पर बहुत गहरा पड़ा -

  • बारिश बहुत कम हुई

  • भयानक सूखे पड़े

  • तेज धूल भरी आंधियां चलीं

  • पौधों की वृद्धि पर भारी असर हुआ

ऐसे माहौल में लोगों के लिए स्थायी रूप से बसना मुश्किल था। यही कारण है कि पूर्वी क्षेत्र की आबादी पश्चिमी क्षेत्रों की तुलना में देर से स्थायी किसान समाज में बदली। पूर्व में रहने वाले लोग लंबे समय तक शिकार और भोजन-संग्रह करने वाले घुमंतू जीवन पर निर्भर रहे।

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कठिन परिस्थितियों ने दी अनोखी क्षमता

हालांकि पर्यावरण कठिन था, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी चुनौती ने वहां के लोगों को अधिक लचीला, अनुकूलनीय और संसाधनों को पहचानने में कुशल बनाया। बॉलिंग-आलरॉड नामक गर्म अवधि के दौरान मौसम बहुत बदलता रहता था। इसी बदलाव के कारण लोग छोटी-छोटी जगहों पर उपलब्ध संसाधनों को पहचानने और उन पर निर्भर रहने में माहिर हो गए।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इन समुदायों ने वर्षों तक बदलते संसाधनों से निपटना सीखा। इसका फायदा उन्हें बाद में तब मिला, जब परिस्थितियां स्थिर हुईं और उन्होंने धीरे-धीरे खेती और स्थायी बसावट की दिशा में कदम बढ़ाया।

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प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि सभ्यता का जन्म केवल बीज उगाने की कला सीखने भर का परिणाम नहीं था।

जलवायु परिवर्तन, सूखे, तेज हवाएं और अप्रत्याशित मौसम ने इंसानों को अपने परिवेश के साथ लगातार तालमेल बिठाने के लिए मजबूर किया। इसी संघर्ष ने उन्हें और अधिक चतुर, संगठित और नवाचारी बनाया अंततः यही कौशल आगे चलकर गांवों और फिर शहरों के निर्माण की नींव बने।

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