उत्सर्जन में कमी से भविष्य में 60 सेमी तक समुद्र स्तर की वृद्धि रोकी जा सकती है

आज लिए गए निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए यह तय करेंगे कि कौन-से तटीय क्षेत्र बचे रहेंगे और कौन-से सदा के लिए गायब हो जाएंगे।
कम ऊंचाई पर स्थित तटीय क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा खतरा: प्रशांत द्वीपों और तटीय शहरों में औसत से अधिक वृद्धि होगी।
कम ऊंचाई पर स्थित तटीय क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा खतरा: प्रशांत द्वीपों और तटीय शहरों में औसत से अधिक वृद्धि होगी।प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • समुद्र-स्तर वृद्धि न बदले जा सकने वाली है: एक बार बढ़ना शुरू होने पर यह मानव समय-सीमा में वापस नहीं घट सकता।

  • आज के उत्सर्जन का असर सदियों तक रहेगा: 2020–2050 के उत्सर्जन से ही 2300 तक लगभग 30 सेमी समुद्र-स्तर बढ़ना तय है।

  • पेरिस समझौते के अनुरूप कार्रवाई से राहत संभव: अभी निर्णायक कदम उठाने से लगभग 60 सेमी वृद्धि को रोका जा सकता है।

  • कम ऊंचाई पर स्थित तटीय क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा खतरा: प्रशांत द्वीपों और तटीय शहरों में औसत से अधिक वृद्धि होगी।

  • लंबे समय की अनुकूलन योजना जरूरी: तटीय सुरक्षा और विकास योजनाओं को 2100 नहीं, बल्कि 2300 तक के प्रभावों को ध्यान में रखकर बनाना होगा।

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कई गंभीर प्रभाव दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इनमें सबसे स्थायी और खतरनाक प्रभावों में से एक है समुद्र के स्तर में वृद्धि होना है। वैज्ञानिक मानते हैं कि एक बार समुद्र का स्तर बढ़ना शुरू हो जाए, तो उसे मानव समय-सीमा में वापस नहीं घटाया जा सकता। यानी, आज जो भी उत्सर्जन हम करते हैं, उसका असर आने वाली कई पीढ़ियों तक बना रहेगा।

हाल ही में नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित एक नए अंतरराष्ट्रीय शोध ने इस विषय पर नई और चिंताजनक खुलासा किया है। यह अध्ययन इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) के शोधकर्ताओं द्वारा ब्रिटेन, बेल्जियम, नीदरलैंड और जर्मनी के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया है। इस शोध में यह बताया गया है कि आने वाले कुछ दशकों में हमारी नीतियां और उत्सर्जन यह तय करेंगे कि साल 2300 तक समुद्र का स्तर कितनी ऊंचाई तक बढ़ेगा।

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शोध का मुख्य उद्देश्य

अधिकतर शोध समुद्र-स्तर वृद्धि के पूर्वानुमान केवल साल 2100 तक लगाते हैं। लेकिन यह अध्ययन इससे कहीं आगे गया है। वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने की कोशिश की कि इस सदी में किए गए उत्सर्जन (2020 से 2090) भविष्य में समुद्र के स्तर को कितनी हद तक “स्थायी रूप से बढ़ा देंगे।” दूसरे शब्दों में, यह अध्ययन यह मापने का प्रयास करता है कि आज के निर्णयों से आने वाली सदियों के लिए कितनी समुद्र-स्तर वृद्धि देख सकते हैं।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अधिकतर अध्ययन केवल 2100 तक की स्थिति दिखाते हैं, लेकिन महासागर और हिमचादरें सैकड़ों वर्षों तक प्रतिक्रिया देती रहती हैं। इसलिए हमें 2100 के आगे की सोचनी होगी।

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अगर दुनिया मौजूदा नीतियों पर चलती रहती है, तो 2020 से 2050 के बीच किए गए उत्सर्जन ही साल 2300 तक समुद्र के स्तर में लगभग 30 सेंटीमीटर की अतिरिक्त वृद्धि होगी। अगर यही रुझान 2090 तक जारी रहा, तो यह बढ़कर 80 सेंटीमीटर तक पहुंच जाएगा।

लेकिन यदि अभी से पेरिस समझौते के अनुरूप उत्सर्जन घटाने की कार्रवाई की जाए, तो लगभग 60 सेंटीमीटर तक समुद्र-स्तर वृद्धि को रोका जा सकता है।

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वैश्विक और क्षेत्रीय असर

30 या 80 सेमी की वृद्धि सुनने में बहुत ज्यादा नहीं लगती, लेकिन इसके लंबे समय के परिणाम बहुत गहरे हैं। इतनी वृद्धि से तटीय शहरों में बाढ़ और तटीय कटाव बढ़ेगा, भूजल में खारेपन की समस्या बढ़ेगी और कई कम ऊंचाई पर स्थित द्वीप राष्ट्र, विशेष रूप से प्रशांत महासागर के छोटे द्वीप, रहने योग्य नहीं रह पाएंगे।

शोध में कहा गया है कि कुछ क्षेत्रों, जैसे प्रशांत द्वीपों, में समुद्र का स्तर औसत वैश्विक स्तर से भी अधिक बढ़ेगा। इसलिए स्थानीय और क्षेत्रीय अध्ययन और योजनाएं बेहद जरूरी हैं।

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क्यों है यह वृद्धि "न बदले जा सकने वाली"?

समुद्र का स्तर मुख्य रूप से दो कारणों से बढ़ता है, पहला ग्लेशयरों और बर्फ की चादरों के पिघलने से, दूसरा महासागर के गर्म होने से पानी का फैलाव से।

ये दोनों प्रक्रियाएं बेहद धीमी हैं और सदियों तक चलती रहती हैं। इसलिए, भले ही दुनिया तुरंत उत्सर्जन रोक दे, महासागर और बर्फ अब भी प्रतिक्रिया करते रहेंगे। यही कारण है कि वैज्ञानिक कहते हैं कि समुद्र का बढ़ना मानव काल-सीमा में न बदले जा सकने वाला है।

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अनुकूलन और भविष्य की योजना

शोध में यह भी बताया गया है कि आने वाले सदियों के लिए अनुकूलन की योजना बनाना बहुत जरूरी है। आज जो भी तटीय सुरक्षा उपाय, बांध या बाढ़ नियंत्रण संरचनाएं बन रही हैं, उन्हें केवल 2100 तक नहीं, बल्कि 2300 तक के संभावित समुद्र-स्तर को ध्यान में रखकर डिजाइन करना होगा।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि आज के निर्णय यह तय करेंगे कि भविष्य में कितने तटीय क्षेत्र बचाए जा सकेंगे और कहां अनुकूलन की सीमाएं पार हो जाएंगी।

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आने वाली पीढ़ियों के लिए सबक

यह शोध हमें एक बहुत अहम सबक देता है, जलवायु परिवर्तन केवल तापमान बढ़ने की कहानी नहीं है, यह हमारे तटों, शहरों और जीवन के स्वरूप को सैकड़ों वर्षों के लिए बदलने वाली प्रक्रिया है।

आज लिए गए निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए यह तय करेंगे कि कौन-से तटीय क्षेत्र बचे रहेंगे और कौन-से सदा के लिए गायब हो जाएंगे। अगर दुनिया अभी से निर्णायक कार्रवाई करे- स्वच्छ ऊर्जा अपनाएं, उत्सर्जन घटाए और टिकाऊ नीतियां बनाए तो हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए 60 सेमी तक समुद्र वृद्धि को रोका जा सकता है।

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यह केवल “सेंटीमीटर” या “मीटर” का फर्क नहीं है, यह फर्क तय करेगा कि कितने शहर, कितनी जमीनें और कितनी जिंदगियां समुद्र में समा जाएंगी या सुरक्षित रह पाएंगी।

समुद्र का बढ़ता स्तर हमें यह याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन कोई भविष्य की समस्या नहीं, बल्कि आज की वास्तविकता है। हमारे पास अब भी समय है, पर बहुत सीमित। अगर मानवता अभी निर्णायक कदम उठाती है, तो हम न केवल पृथ्वी के तापमान को सीमित कर सकते हैं, बल्कि अपने तटों और द्वीपों को आने वाली सदियों तक बचा सकते हैं।

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