
एक नए अध्ययन के अनुसार, पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास दुनिया की बर्फ की चादरों को बचाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
यूके के डरहम विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि ध्रुवीय बर्फ की चादरों से होने वाले भारी नुकसान से बचने और समुद्र के स्तर में और वृद्धि को रोकने के लिए लक्ष्य को एक डिग्री सेल्सियस के करीब होना चाहिए।
शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य का ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच-पड़ताल की, जहां दोनों मिलाकर इतनी बर्फ जमा कर लेते हैं कि दुनिया भर में समुद्र का स्तर लगभग 65 मीटर बढ़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक से इन बर्फ की चादरों से गायब बर्फ का द्रव्यमान चार गुना बढ़ गया है और वर्तमान में वे हर साल लगभग 370 अरब मीट्रिक टन बर्फ का नुकसान झेल रहे हैं, वर्तमान तापमान स्तर पूर्व-औद्योगिक तापमान से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
शोधकर्ताओं का तर्क है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक और अधिक तापमान बढ़ने से आने वाली शताब्दियों में समुद्र का स्तर कई मीटर बढ़ सकता है, क्योंकि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरें गर्म हवा और समुद्र के तापमान दोनों के कारण पिघलती हैं।
इससे बढ़ते समुद्री स्तर के अनुसार ढलना बहुत कठिन और कहीं अधिक महंगा हो जाएगा, जिससे तटीय और द्वीपीय आबादी को भारी नुकसान होगा तथा करोड़ों लोगों को बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना पड़ेगा।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि नीति निर्माताओं और सरकारों को तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से बर्फ की चादरों और समुद्र के स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है। वर्तमान में लगभग 23 करोड़ लोग समुद्र तल से एक मीटर के भीतर रहते हैं और पिघलती बर्फ उन समुदायों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा करती है, जिनमें कई निचले देश भी शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में तेजी से वृद्धि से बचने के लिए "सुरक्षित" तापमान लक्ष्य को अधिक सटीक रूप से निर्धारित करने के लिए और अधिक काम करने की तत्काल जरूरत है।
शोध में कहा गया है कि इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ की चादरों के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बहुत अधिक है। अगले कुछ दशकों या सदियों में समुद्र के स्तर में भारी वृद्धि हो सकती है, लेकिन बर्फ की चादरों के नुकसान के हालिया अवलोकन वर्तमान जलवायु परिस्थितियों में भी चिंताजनक हैं।
1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान वृद्धि को सीमित करना एक बड़ी उपलब्धि होगी और इस पर पूरी तरह ध्यान देना चाहिए। भले ही यह लक्ष्य पूरा हो जाए या केवल अस्थायी रूप से पार हो जाए, लोगों को इस बात का पता होना चाहिए कि समुद्र का स्तर बढ़ने की दर इतनी बढ़ सकती है कि उसके अनुकूल होना बहुत मुश्किल है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह नहीं हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सब कुछ खत्म हो जाएगा, लेकिन एक डिग्री का हर अंश वास्तव में बर्फ की चादरों के लिए मायने रखता है। जितनी जल्दी तापमान वृद्धि को रोका जा सकता है उतना ही बेहतर होगा, क्योंकि इससे आगे चलकर सुरक्षित स्तरों पर वापस लौटना कहीं अधिक आसान हो जाता है।
दुनिया का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल से लगभग एक डिग्री सेल्सियस अधिक था और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 350 भाग प्रति मिलियन थी, जिसे अन्य लोगों ने ग्रह पृथ्वी के लिए अधिक सुरक्षित सीमा बताया है। कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा वर्तमान में लगभग 424 भाग प्रति मिलियन है जो बढ़ती जा रही है।
शोधकर्ताओं ने पिछले गर्म अवधियों से साक्ष्यों को जोड़ा जो वर्तमान की तुलना में समान या थोड़े गर्म थे और वर्तमान स्तर पर बढ़ते तापमान के तहत कितनी बर्फ का नुकसान हो रहा है, इसके मापों के साथ-साथ अगली कुछ शताब्दियों में तापमान के अलग-अलग स्तरों पर कितनी बर्फ गायब हो जाएगी, इसका अनुमान भी लगाया।
पिछली गर्म अवधियों से प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि जब दुनिया का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो जाता है, तो समुद्र के स्तर में कई मीटर या उससे अधिक की वृद्धि की आशंका जताई जा सकती है। इसके अलावा यह साक्ष्य यह भी बताता है कि जितने लंबे समय तक गर्म तापमान बना रहेगा, बर्फ पिघलने के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि पर उतना ही अधिक प्रभाव पड़ेगा।
जर्नल कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि बर्फ की चादर के द्रव्यमान में कमी के बारे में हाल ही में उपग्रह आधारित अवलोकन, समुद्र के स्तर में वृद्धि और उसके प्रभावों पर काम करने वाले पूरे वैज्ञानिक और नीति समुदाय के लिए एक बड़ी चेतावनी है। मॉडलों ने अभी उस तरह की प्रतिक्रियाएं नहीं दिखाई हैं, जो हमने पिछले तीन दशकों में अवलोकनों में देखी हैं।
भले ही पृथ्वी अपने पूर्व-औद्योगिक तापमान पर वापस आ जाए, फिर भी बर्फ की चादरों को ठीक होने में सैकड़ों से लेकर हजारों साल लग जाएंगे। यदि बहुत ज्यादा बर्फ पिघल जाती है, तो इन बर्फ की चादरों के कुछ हिस्से तब तक ठीक नहीं हो पाएंगे जब तक कि पृथ्वी अगले हिमयुग में प्रवेश न कर जाए।
बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण भूमि बहुत लंबे समय तक डूब जाएगी। इसलिए सबसे पहले तापमान को सीमित करना बहुत जरूरी है।