2025 में धरती ने झेला तीसरा सबसे गर्म सितंबर, सामान्य से 1.47 डिग्री सेल्सियस ऊपर रहा तापमान

सितम्बर में धरती की सतह का औसत तापमान तापमान 16.11 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में 1.47 डिग्री सेल्सियस अधिक है
सितंबर 2025 ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि धरती में बढ़ता तापमान अब गर्मी के एक नए युग में प्रवेश कर चुका है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
सितंबर 2025 ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि धरती में बढ़ता तापमान अब गर्मी के एक नए युग में प्रवेश कर चुका है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • सितंबर 2025 में धरती ने तीसरे सबसे गर्म सितंबर का सामना किया, जिसमें औसत तापमान 16.11 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

  • यह औद्योगिक क्रांति से पहले के तापमान से 1.47 डिग्री अधिक है।

  • यूरोप और अन्य क्षेत्रों में भी तापमान सामान्य से अधिक रहा, जिससे जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेत मिलते हैं।

  • 2023 में जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म सितम्बर का महीना दर्ज किया गया था। हालांकि इस साल सितम्बर में तापमान रिकॉर्ड स्तर से महज 0.27 डिग्री सेल्सियस कम रहा।

  • यदि पिछले 12 महीनों (अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025) के औसत तापमान को देखें तो वो भी औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.51 डिग्री सेल्सियस अधिक है।

  • सितंबर 2025 में समुद्र की सतह का वैश्विक औसत तापमान (एसएसटी) 20.72 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो अब तक के रिकॉर्ड में तीसरा सबसे अधिक है। यह 2023 के रिकॉर्ड तापमान से महज 0.20 डिग्री सेल्सियस कम रहा।

  • पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, मध्य एशिया, अफ्रीका के कुछ हिस्सों, दक्षिणी अरब प्रायद्वीप और पूर्वी चीन में भी भारी बारिश दर्ज की गई। कई क्षेत्रों में तो भारी बारिश और चक्रवात के चलते बाढ़ जैसी स्थितियां बन गई।

दुनिया में बढ़ता तापमान नित नए रिकॉर्ड बना रहा है। ऐसा ही कुछ सितम्बर में भी दर्ज किया गया। यूरोपीय एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने अपनी नई रिपोर्ट में पुष्टि की है कि इस साल दुनिया ने अपने तीसरे सबसे गर्म सितम्बर का सामना किया।

इस दौरान धरती की सतह का औसत तापमान तापमान 16.11 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो औद्योगिक क्रांति से पहले (1850-1900) की तुलना में 1.47 डिग्री सेल्सियस अधिक है। मतलब कि एक बार फिर बढ़ता तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा रेखा के करीब तक पहुंच गया। वहीं यदि 1991 से 2020 के बीच सितम्बर में दर्ज औसत से तापमान से तुलना करें तो पिछले महीने तापमान 0.66 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

आंकड़ों पर नजर डालें तो 2023 में जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म सितम्बर का महीना दर्ज किया गया था। हालांकि इस साल सितम्बर में तापमान रिकॉर्ड स्तर से महज 0.27 डिग्री सेल्सियस कम रहा। वहीं यदि 2024 की तुलना में देखें तो तापमान महज 0.07 डिग्री सेल्सियस कम है।

रिपोर्ट के मुताबिक यदि पिछले 12 महीनों (अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025) के औसत तापमान को देखें तो वो भी औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.51 डिग्री सेल्सियस अधिक है। मतलब की पिछले 12 महीने औसतन डेढ़ डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म रहें हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक “धरती की सतह और समुद्र का लगातार बढ़ता तापमान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि ग्रीनहाउस गैसों का स्तर लगातार बढ़ रहा है, और जलवायु परिवर्तन का असर खुलकर सामने आने लगा है।

देखा जाए तो इस साल दुनिया ने अपने तीसरे सबसे गर्म अगस्त का भी सामना किया था, जब तापमान सामान्य से 1.29 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था।

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कैसा रहा यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में हाल

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पिछले महीन यूरोप का औसत तापमान 15.95 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य (1991 से 2020 के औसत) से 1.23 डिग्री सेल्सियस अधिक है। इस तरह यूरोप ने पिछले महीने अब तक के अपने पांचवें सबसे गर्म सितंबर का सामना किया। इस दौरान सबसे ज्यादा गर्मी फिनलैंड, नॉर्वे और पूर्वी यूरोप में दर्ज की गई।

वहीं पश्चिमी यूरोप के कुछ हिस्से थोड़ा ठंडे रहे, लेकिन इनका अंतर एक डिग्री से भी कम था। यूरोप के बाहर, कनाडा, ग्रीनलैंड, साइबेरिया और अंटार्कटिका के कुछ हिस्से सामान्य से काफी ज्यादा गर्म रहे। केवल उत्तरी साइबेरिया, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अंटार्कटिका ही ऐसे क्षेत्र थे, जहां तापमान औसत से नीचे रहा।

धरती ही नहीं तप रहे हैं समुद्र

सितंबर 2025 में समुद्र की सतह का वैश्विक औसत तापमान (एसएसटी) 20.72 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो अब तक के रिकॉर्ड में तीसरा सबसे अधिक है। यह 2023 के रिकॉर्ड तापमान से महज 0.20 डिग्री सेल्सियस कम रहा।

इस दौरान उत्तरी प्रशांत महासागर के अधिकांश हिस्से अत्यधिक गर्म रहे, जबकि मध्य और पूर्वी प्रशांत में तापमान सामान्य या थोड़ा कम रहा, जो एल नीनो की न्यूट्रल स्थिति को दर्शाता है। यूरोप के आसपास के समुद्र खासकर नॉर्वे सागर, कारा सागर और भूमध्य सागर सामान्य से कहीं ज्यादा गर्म पाए गए।

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तेजी से पिघल रही ध्रुवों पर जमा बर्फ

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि आर्कटिक क्षेत्र में सितंबर 2025 के दौरान समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 12 फीसदी कम रहा। हालांकि यह 2012 के रिकॉर्ड न्यूनतम (-32%) से अभी भी ऊपर है, लेकिन फिर भी यह स्थिति चिंताजनक है। आर्कटिक क्षेत्र में इस दौरान बर्फ का विस्तार उपग्रह रिकॉर्ड में अब तक का 14वां सबसे कम रहा।

इस दौरान अंटार्कटिका में भी हालात बेहतर नहीं रहे। यहां समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से करीब पांच फीसदी कम था, जो अब तक का चौथा सबसे कम स्तर है। हालांकि यह 2023 (-9 फीसदी) और 2024 (-7 फीसदी) के स्तर से थोड़ा बेहतर जरूर है, लेकिन अभी भी सामान्य से काफी नीचे है।

यूरोपियन एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है कि सितम्बर में दुनिया के कई हिस्सों में बारिश का पैटर्न बेहद असमान रहा।

इस दौरान उत्तर-पश्चिम, मध्य यूरोप, फिनलैंड, काला सागर के पूर्वी तट, इटली के कुछ हिस्सों, क्रोएशिया और पूर्वी स्पेन में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई। कई जगहों पर भारी वर्षा के चलते बाढ़ की स्थिति बन गई और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।

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इसके विपरीत, स्पेन का बड़ा हिस्सा, नॉर्वे का तटीय इलाका, इटली का प्रायद्वीपीय भाग, बाल्कन देश, यूक्रेन और पश्चिमी रूस सूखे से जूझते रहे। यूरोप से बाहर, अमेरिका, अलास्का, उत्तर-पश्चिम मैक्सिको, ब्राजील, अर्जेंटीना और चिली के कुछ हिस्सों में सामान्य से अधिक बारिश हुई।

इसके साथ ही पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, मध्य एशिया, अफ्रीका के कुछ हिस्सों, दक्षिणी अरब प्रायद्वीप और पूर्वी चीन में भी भारी बारिश दर्ज की गई। कई क्षेत्रों में तो भारी बारिश और चक्रवात के चलते बाढ़ जैसी स्थितियां बन गई।

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दूसरी तरफ कनाडा, पूर्वी अमेरिका, उत्तर-पूर्वी मैक्सिको, रूस के उत्तरी और पूर्वी छोर, उत्तर भारत के कुछ इलाकों, उरुग्वे और ब्राजील के कुछ हिस्सों में बारिश सामान्य से काफी कम रही।

सितंबर 2025 ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि धरती में बढ़ता तापमान अब गर्मी के एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। चाहे जमीन हो या समुद्र, तापमान लगातार बढ़ रहा है और बर्फ घट रही है। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य का खतरा नहीं, बल्कि मौजूदा समय की हकीकत बन चुका है।

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