पिघलते ग्लेशियर: बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हैं छोटी हिमनद झीलें

ग्लेशियरों के पिघलने से हिमनद झीलों के क्षेत्र में इजाफा हो रहा है, लेकिन साथ ही यह अस्थिर भी हो रहीं हैं, जिसकी वजह से पहाड़ी इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है
तेजी से पिघलते ग्लेशियर; फोटो: आईस्टॉक
तेजी से पिघलते ग्लेशियर; फोटो: आईस्टॉक
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वैश्विक तापमान में लगातार होती वृद्धि कई तरह के खतरे पैदा कर रही है, इनमें से एक है तेजी से पिघलते ग्लेशियर। इन ग्लेशियरों के पिघलने से जहां हिमनद झीलों के क्षेत्र में इजाफा हो रहा है, वहीं नई झीलें भी अस्तित्व में आ रहीं हैं। लेकिन साथ ही यह झीलें अस्थिर भी हो रहीं हैं, जिसकी वजह से पहाड़ी इलाकों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है। 

गौरतलब है कि अक्टूबर 2023 में ऐसी ही एक हिमनद झील के फटने से भारत में विनाशकारी बाढ़ आई थी। इस बाढ़ ने 55 जिंदगियों को लील लिया था। साथ ही तीस्ता III जलविद्युत परियोजना पर गहरा असर डाला था। इस दौरान दक्षिण ल्होनक हिमनद झील के किनारें टूट गए थे। इसी तरह जून 2013 में केदारनाथ में आए सैलाब ने हजारों जिंदगियों को छीन लिया था।

अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में छपे एक शोध से पता चला है कि दुनिया भर के ग्लेशियरों में जमा बर्फ पहले के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है। हिमालय के ग्लेशियर भी इनसे अलग नहीं है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इन ग्लेशियरों से पिघला कुछ पानी हिमनद झीलों में जमा हो जाता है, ऐसे में अगर झीलों के किनारे या बांध टूटते हैं, तो इसकी वजह से आने वाली बाढ़ निचले इलाकों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।

पॉट्सडैम विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन के मुताबिक कई पहाड़ी क्षेत्रों में छोटी हिमनद झीलें बाढ़ के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर वाटर में प्रकाशित हुए हैं।

अपने अध्ययन में पॉट्सडैम से जुड़े शोधकर्ताओं ने पाया है कि बाढ़ का यह जोखिम हिमनद झीलों की बढ़ती संख्या और आकार से कहीं ज्यादा पर निर्भर करता है। वैज्ञानिकों ने 1990 से 2023 के बीच 13 पहाड़ी क्षेत्रों में 1,686 हिमनद झीलों का अध्ययन किया है। इस दौरान उन्होंने झीलों में आई बाढ़ की उपग्रह से प्राप्त छवियों का विश्लेषण किया है।

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तेजी से पिघलते ग्लेशियर; फोटो: आईस्टॉक

विश्लेषण से पता चला है कि बर्फ से बनी झीलें सिकुड़ रही हैं, जबकि जिन झीलों के किनारे ग्लेशियरों द्वारा बहा कर लाए मलबे (मोरेन) से बने हैं, वे स्थिर बनी हुई हैं।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर जॉर्ज वेह ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, कुछ झीलों ने समय के साथ अपने आउटलेट को चौड़ा किया है। इसकी वजह से झीलों से निकलने वाली नदियां किनारों को तोड़े बिना बेहद कुशलता से ग्लेशियरों से पिघले पानी को बाहर निकाल सकती हैं।

अन्य झीलों, विशेष रूप से आल्प्स, पेरू और नॉर्वे में, बांधों को कृत्रिम रूप से मजबूत किया गया है ताकि उनका उपयोग जलविद्युत के किया जा सके। इन बदलावों का अर्थ है कि बाढ़ की ज्यादातर घटनाएं छोटी झीलों से जुड़ी है, जबकि दुनिया भर में हिमनद झीलों का क्षेत्र बढ़ रहा है।

शोध के मुताबिक हिमनद झीलों में आने वाली बाढ़ें एक तरह व्यवहार नहीं करती। इनमें से जिन झीलों के किनारे बर्फ से बने होते हैं वे अक्सर टूट जाते हैं, क्योंकि बर्फ तेजी से अस्थिर हो जाती है। हालांकि पानी की सीमित मात्रा के कारण इनमें आने वाले बाढ़ छोटी होती हैं। वहीं कुछ हिमनद झीलों के किनारे ग्लेशियरों द्वारा बहा कर लाए मलबे (मोरेन) से बने होते हैं।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि हिमालय, अलास्का और पैटागोनिया क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा बहा कर लाए मलबे (हिमोढ़) से बनी झीलों से निचले क्षेत्रों में समुदायों और बुनियादी ढांचे के लिए खतरा बढ़ रहा है। ऐसा ही कुछ अक्टूबर 2023 में भारत में देखने को मिला था। हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक इस तरह की घटनाएं दुर्लभ हैं।

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बेहद संवेदनशील है हिमालय

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों के पीछे हटने और प्राकृतिक आपदाओं के बीच मजबूत संबंध पर प्रकाश डाला है, साथ ही इनकी निरंतर निगरानी की आवश्यकता पर बल दिया है।

पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार हिमालय क्षेत्र की हजारों प्राकृतिक झीलों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए उन्होंने बढ़ते तापमान को जिम्मेदार माना है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसके चलते घाटियों में बहने वाली नदियों पर भी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।

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अध्ययन के अनुसार 2003 से 2010 के बीच सिक्किम हिमालय में 85 नयी झीलें सामने आयी थी। इन झीलों के किनारे प्राकृतिक तत्वों से बने होते हैं, जिन्हें हिमोढ़ या मोरेन कहा जाता है। यह किनारे ढीली चट्टानों ओर बर्फ से बने होते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते जैसे-जैसे यह बर्फ पिघलती है। किनारे की चट्टानें पानी के लिए रास्ता छोड़ देती हैं, जोकि बाढ़ का कारण बनता है।

विश्लेषण से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में करीब 5,000 झीलों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि उनके किनारे कमजोर और अस्थिर हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि जिन झीलों में ज्यादा पानी है, उनसे बाढ़ का खतरा भी उतना ज्यादा है।

वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि निकट भविष्य में पूर्वी हिमालय की हिमनद झीलों के कारण आने वाली बाढ़ का खतरा तीन गुना अधिक है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक अगले दशक में हिमालयी ग्लेशियरों का करीब दो-तिहाई हिस्सा पिघल सकता है। इसकी वजह से इस क्षेत्र में मौजूद झीलों में पानी की मात्रा बहुत अधिक बढ जाएगी, जोकि नदी घाटियों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है।

द इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के मुताबिक पर्वतीय ग्लेशियरों के पीछे हटने से ग्लेशियल झीलों का आकार और संख्या बढ़ गई है। वहीं 21वीं सदी के अंत तक पूरे हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियल झीलों के फटने से बाढ़ (जीएलओएफ) के जोखिम में तीन गुना वृद्धि का अंदेशा है। यह भी अनुमान है कि 2050 तक ‘जीएलओएफ से जुड़े जोखिम चरम’ पर पहुंच जाएंगे।

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