कम ऑक्सीजन, ज्यादा जहर: गर्म होते समुद्रों में बढ़ा रहा मर्करी का खतरा

स्टडी से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ समुद्र में ऑक्सीजन घटने से मिथाइलमर्करी का उत्पादन बढ़ रहा है, जो मछली और समुद्री भोजन को इंसानों के लिए जहरीला बना सकता है
फोटो: आईस्टॉक
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सारांश
  • शोधकर्ताओं ने पाया कि समुद्रों में ऑक्सीजन की कमी से मर्करी का मिथाइलमर्करी में परिवर्तन हो सकता है, जो एक खतरनाक न्यूरोटॉक्सिन है।

  • यह समुद्री खाद्य श्रृंखला में बढ़ता है और अंततः मानव प्लेट तक पहुंच सकता है।

  • अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से तटीय क्षेत्रों में ऑक्सीजन-रहित क्षेत्र बढ़ रहे हैं, जो इस प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं।

एक नई स्टडी से पता चला है कि बढ़ते तापमान से समुद्रों में न्यूरोटॉक्सिन का खतरा बढ़ सकता है।

अपने इस अध्ययन में स्वीडन की उमेआ यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं ने काला सागर (ब्लैक सी  के प्राचीन तलछटों में डीएनए का अध्ययन किया और पाया कि 9,000 से 5,500 साल पहले जब पानी में ऑक्सीजन का स्तर गिरा, तो कुछ विशेष सूक्ष्मजीवों (माइक्रोब्स) ने मर्करी को मिथाइलमर्करी में बदल दिया।

मिथाइलमर्करी एक ऐसा न्यूरोटॉक्सिन है जो समुद्री खाद्य श्रृंखला में ऊपर बढ़ता हुआ अंततः हमारी प्लेट तक पहुंच सकता है। यह तब बनता है जब यह विशेष सूक्ष्मजीव कम ऑक्सीजन वाले पानी में अजैविक मर्करी को मिथाइलमर्करी में बदल देते हैं।

माइक्रोब्स ने मर्करी को बनाया घातक

मिथाइलमर्करी इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि यह समुद्री खाद्य श्रृंखला में बढ़ता है। प्लैंकटन इसे अवशोषित करते हैं, छोटे मछलियां इन प्लैंकटन को खाती हैं, यह छोटी मछलियां बड़ी मछलियों की शिकार बन जाती हैं।

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हर चरण में इस जहरीले तत्व की मात्रा बढ़ती जाती है। यह प्रक्रिया तब होती है जब समुद्र में ऑक्सीजन कम होती है और विशेष माइक्रोब्स मर्करी को “मेथिलेट” कर देते हैं।

आज जलवायु परिवर्तन के कारण तटीय समुद्री क्षेत्रों, जैसे बाल्टिक सी के कुछ हिस्सों में, ऐसे ऑक्सीजन-रहित क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं। गर्म और स्थिर पानी कम मिश्रण करता है, और बढ़ते शैवाल गहरे पानी में ऑक्सीजन को और घटा देते हैं, जिससे इन सूक्ष्मजीवों के लिए आदर्श स्थिति बनती है।

प्राचीन डीएनए में छुपी नए जमाने के लिए चेतावनी

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ब्लैक सी की तलछट से 13,500 साल पुराने डीएनए का विश्लेषण किया है। इसमें उन्हें एचजीसीए नामक जीन मिले हैं, जो मिथाइलमर्करी बनाने वाले सूक्ष्मजीवों से जुड़े हैं। इनकी सबसे अधिक मात्रा 9,000 से 5,500 साल पहले गर्म और आर्द्र जलवायु के दौरान पाई गई, जब पानी में ऑक्सीजन का स्तर काफी गिरा गया था।

वैज्ञानिकों के मुताबिक कहीं न कहीं यह स्थिति आज के समुद्रों और तटीय क्षेत्रों में देखी जा रही प्रवृत्ति से मेल खाती है।

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यूमेआ यूनिवर्सिटी के इकोलॉजी और एनवायरमेंटल साइंस विभाग के सह-प्राध्यापक और अध्ययन के प्रमुख लेखक एरिक कैपो का कहना है, "निष्कर्ष दर्शाते हैं कि केवल जलवायु परिवर्तन से बढ़ती गर्मी और ऑक्सीजन की कमी औद्योगिक मर्करी प्रदूषण के बिना भी मिथाइलमर्करी उत्पादन के हॉटस्पॉट बना सकती है।”

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि बढ़ते ऑक्सीजन-रहित क्षेत्र समुद्री भोजन के माध्यम से इंसानों को इस न्यूरोटॉक्सिन के संपर्क में ला सकते हैं।

आज मर्करी उत्सर्जन और पोषक तत्वों का हो रहा प्रदूषण तय करते हैं कि मिथाइलमर्करी कहां और कितनी बनेगी। लेकिन हजारों साल पहले सिर्फ गर्मी और परतों की स्थिरता ने ऑक्सीजन की मात्रा को घटा दिया और मिथाइलमर्करी के उत्पादन को बढ़ावा दिया।

खाद्य श्रृंखला में जहरीले मर्करी का सफर

स्टडी के मुताबिक समुद्र में ऑक्सीजन-रहित परतें सूरज की रोशनी वाली सतह के नीचे फंस जाती हैं। जब कभी हवाएं या धाराएं पानी को मिलाती हैं, तो पोषक तत्व और मिथाइलमर्करी ऊपर आती हैं। यह प्लैंकटन में घुलती है, फिर छोटी से बड़ी मछलियों तक पहुंच जाती है।

इसके हर चरण में यह पहले से कहीं ज्यादा जहरीली होती जाती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्लैक सी ही नहीं, ईस्टर्न ट्रॉपिकल पैसिफिक, अरेबियन सी और बाल्टिक सी जैसे समुद्र भी इस तरह के खतरे से जूझ रहे हैं।

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विशेषज्ञ कहते हैं इससे बचाव का पहला कदम मर्करी उत्सर्जन कम करना है। दूसरा, ऐसे हालात में बदलाव लाना है जो मिथाइलमर्करी को बनने और टिकने में योगदान देते हैं। इसके लिए तटीय क्षेत्रों में पोषक तत्वों के बहाव को रोकना और प्रवाह को बहाल करना है। इसके साथ ही प्राचीन डीएनए और आधुनिक निगरानी तंत्र मिलकर भविष्य के पूर्वानुमान को बेहतर बना सकते हैं।

यह मॉडल दिखाते हैं कि कैसे जलवायु, ऑक्सीजन में आती गिरावट, माइक्रोबियल गतिविधियां  और जहरीले तत्व आपस में जुड़े हैं।

ब्लैक सी का प्राचीन रिकॉर्ड बताता है कि जब समुद्र 'सांस रोकता' है, तो मिथाइलमर्करी बनाने वाला माइक्रोबियल सिस्टम सक्रिय हो जाता है। यदि भविष्य में ऑक्सीजन-रहित क्षेत्र बढ़ते रहे, तो यह प्रक्रिया और अधिक बार सक्रिय होगी। ऐसे में इस दिशा में जल्द से जल्द कार्रवाई करने से सिर्फ मछलियों की ही नहीं, बल्कि उन पर निर्भर लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर वाटर में प्रकाशित हुए हैं।

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