
तेजी से हो रहे शहरीकरण, औद्योगिक गतिविधियों और दवाओं के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण पानी में बढ़ता प्रदूषण मौजूदा समय में एक बड़ा संकट बन गया है। इसी चुनौती से निपटने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने एक अनोखा नैनोसेंसर विकसित किया है, जो पानी में मौजूद पारे और एंटीबायोटिक टेट्रासाइक्लिन जैसी हानिकारक चीजों की जल्द से जल्द बेहद आसानी से पहचान कर सकता है।
बता दें कि टेट्रासाइक्लिन एक तरह की एंटीबायोटिक दवा है, जिसका उपयोग आमतौर पर निमोनिया और सांस संबंधी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। हालांकि यदि इसका उचित तरीके से निपटान न किया जाए, तो यह आसानी से पर्यावरण में प्रवेश कर सकता है और पानी को दूषित कर सकता है। इतना ही नहीं इसकी वजह से एंटीबायोटिक प्रतिरोध और स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
इसी तरह, पारा (मर्करी) अपने जैविक रूप में कैंसर, नसों की बीमारियां, हृदय रोग जैसी जानलेवा स्थितियां पैदा कर सकता है। ऐसे में इन प्रदूषकों की जल्द से जल्द सटीक पहचान न केवल जल गुणवत्ता बल्कि आम लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी है।
यह अध्ययन आईआईटी गुवाहाटी के केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर लाल मोहन कुंडू और उनके दल द्वारा किया गया है, जिसमें शोधार्थी पल्लवी पॉल और अनुष्का चक्रवर्ती शामिल थी। इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल माइक्रोकेमिका एक्टा में प्रकाशित हुए हैं।
क्यों खास है यह सेंसर
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दूध में मौजूद प्रोटीन और थायमिन से यह सेंसर तैयार किया है। इसमें कार्बन डॉट्स का इस्तेमाल किया गया है, जो पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) रोशनी में चमकते हैं। गौरतलब है कि जब दूषित पानी इनसे टकराता है तो उनकी चमक मंद पड़ जाती है और तुरंत प्रदूषण का संकेत मिल जाता है।
अपनी खोज पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर कुंडू ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा, “पारा बेहद कैंसरकारी होता है और एंटीबायोटिक्स की अधिकता भी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसे में हमारा सेंसर इन प्रदूषकों की बेहद कम मात्रा का भी पता लगा सकता है। साथ ही इसका उपयोग जैविक तरल पदार्थों में भी कर सकते हैं।"
इस पर किए परीक्षण में पाया गया है कि यह सेंसर 10 सेकंड से भी कम समय में पारे और एंटीबायोटिक प्रदूषण की पहचान कर सकता है। इसकी संवेदनशीलता इतनी ज्यादा है कि यह पारे की 1.7 भाग प्रति बिलियन जैसी बहुत कम मात्रा को भी पकड़ सकता है। यह मात्रा अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा तय मानक से भी नीचे है।
टीम ने इस सेंसर को और आसान बनाने के लिए इसे पेपर स्ट्रिप्स पर भी कोट किया है, ताकि सामान्य अल्ट्रावॉयलेट लैम्प से कहीं भी पानी की जांच की जा सके। इसे नल और नदी जल के अलावा दूध, यूरीन और सीरम जैसे नमूनों पर भी सफलतापूर्वक परखा गया है। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह शोध अभी प्रयोगशाला स्तर पर है और निष्कर्षों का आगे सत्यापन किया जाना बाकी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सेंसर न केवल सस्ता और सटीक विकल्प है, बल्कि भविष्य में जैव-चिकित्सा के क्षेत्र में भी बेहद उपयोगी साबित हो सकता है।