बदलती जलवायु व वायु प्रदूषण से भारत के सौर ऊर्जा उत्पादन में गिरावट

आईआईटी दिल्ली के अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण सौर विकिरण को सौर पैनलों तक पहुंचने से रोकता है, जिसके कारण बिजली का कम उत्पादन होता है
भारत में साल में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।
भारत में साल में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन भारत में सौर पैनल के प्रदर्शन को बिगाड़ कर रख देंगे।

शोध पत्र के मुताबिक, भारत दुनिया भर में पांचवां सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक है। देश ने 2030 तक अपनी 50 फीसदी बिजली बिना जीवाश्म ईंधन वाले स्रोतों से उत्पादित करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की योजना बनाई है। इस क्षमता का पांचवां हिस्सा सौर ऊर्जा के रूप में पैदा होने की उम्मीद जताई गई है।

भारत की इस योजना के तहत अधिक सौर पार्क विकसित करना और छतों पर सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना भी है।

जलवायु में बदलाव सौर ऊर्जा पर कैसे लगा रहा है लगाम?

अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तरह, सौर फोटोवोल्टिक ऊर्जा भी मौसम और जलवायु की कृपा पर निर्भर है। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि भविष्य के नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों, विशेष रूप से भारत में सौर ऊर्जा का सटीक आकलन करना, जहां सौर ऊर्जा को तेजी से स्थापित किया जा रहा है, एक टिकाऊ और लचीला ऊर्जा भविष्य सुनिश्चित करने के लिए अहम है।

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भारत में साल में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध इस बात की जांच करने वाला पहला शोध है कि जलवायु परिवर्तन भारत में सौर-सेल दक्षता पर कैसे असर डाल सकता है। इस तरह के अध्ययन व्यवहार्य ऊर्जा विकल्पों की खोज और सबसे महत्वपूर्ण रूप से फोटोवोल्टिक सेल डिजाइन में सुधार के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की दिशा में नए पन को बढ़ावा देते हैं।

भारत में साल में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। पृथ्वी की सतह पर सौर विकिरण समय के साथ स्थिर नहीं रहता है, बल्कि इसमें लंबे समय से भारी बदलाव होते जा रहे हैं, जिन्हें वैश्विक मंदता और चमक कहा जाता है।

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भारत में साल में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

यह अंतर वायुमंडलीय बादलों, एरोसोल या पार्टिकुलेट मैटर, जल वाष्प और विकिरण सक्रिय गैस अणुओं जैसे ओजोन पर निर्भर करती है। बादल परावर्तित करते हैं और एरोसोल सतह तक पहुंचने वाले, आने वाले सौर विकिरण को या तो बिखेर देते हैं या अवशोषित कर लेते हैं। इसलिए, बादल या धुंधले दिन पर, पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण के कारण, कम सौर विकिरण सौर पैनल पर पड़ेगा और सौर ऊर्जा का उत्पादन कम होगा।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने दो परिदृश्यों का अध्ययन किया। पहले में वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए मध्यम स्तर के प्रयास शामिल थे। दूसरे में जलवायु परिवर्तन के लिए कमजोर प्रयास थे लेकिन वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय मजबूत थे।

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वायु प्रदूषण सौर विकिरण को सौर पैनलों तक पहुंचने से रोकता है, जिसके कारण बिजली का उत्पादन कम होता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से सौर सेल की दक्षता भी कम हो जाती है।

मॉडल ने पाया कि सदी के मध्य तक, भारत में सौर पैनलों की दक्षता दूसरे परिदृश्य में 2.3 फीसदी कम हो जाएगी, लेकिन पहले परिदृश्य में यह अधिक मात्रा में घटेगी। वर्तमान सौर ऊर्जा उत्पादन स्तरों के आधार पर, हर साल कम से कम 840 गीगावाट-घंटे बिजली का नुकसान होता है।

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भारत में साल में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण उनकी गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

दूसरे परिदृश्य में तापमान से होने वाले नुकसान अधिक थे, जो कि कमजोर जलवायु कार्रवाई के कारण होना अपेक्षित था।

यह शोध वैश्विक जलवायु मॉडल से विकिरण आंकड़ों पर आधारित फोटोवोल्टिक दक्षता पर बढ़ते वायु प्रदूषण के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अहम जानकारी प्रदान करता है। सौर सेल तेज धूप में सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हैं। उन्हें ठंडा करने के लिए कम परिवेश के तापमान और उनके ऊपर हवा के प्रवाह की भी आवश्यकता होती है। इन कारणों में किसी भी तरह की गड़बड़ी सौर सेल के प्रदर्शन को कम करता है।

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शोध में पाया गया कि सौर विकिरण सौर-सेल दक्षता को प्रभावित करने वाला मुख्य कारण था। तापमान इसके बाद आता है, उसके बाद परिवेशी हवा की गति, हालांकि यह बहुत कम प्रभावशाली थी।

शोध पत्र में यह भी बताया गया है कि उच्च परिवेशी तापमान के कारण सदी के मध्य तक सौर सेलों का तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने के आसार हैं। परिवेशी वायु तापमान और सेल तापमान के बीच अंतर करना जरूरी है, क्योंकि सौर सेल सूर्य के संपर्क के कारण आसपास के वायु के तापमान से काफी अधिक गर्म हो सकते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से यह भी बताया गया है कि भारत के पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों के साथ-साथ केरल में भी समय के साथ सौर ऊर्जा की अधिक संभावनाएं विकसित होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन क्षेत्रों में बादलों की मात्रा के कम होने का अनुमान है।

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