आईआईटी, दिल्ली ने बनाया 20 से 25 फीसदी अधिक ऊर्जा उत्पादन करने वाला सोलर पीवी टावर

गैर-यांत्रिक और यांत्रिक दोनों सौर टावर पारंपरिक तकनीक की तुलना में केवल 50 से 60 फीसदी छतों की जगह का उपयोग करते हुए 20 से 25 फीसदी अधिक अधिक बिजली उत्पन्न करने में सक्षम है
 फोटो : आईआईटी दिल्ली
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आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने बिजली उत्पादन के लिए उच्च दक्षता वाला एक ऐसा सौर पैनल बनाया है जिस पर छाया नहीं आती है। यह अपने आप घूमने वाला फोटोवोल्टिक अपने आपको सूर्य के सामने लाकर दिन भर बिजली उत्पादन कर सकता है। इस शोध की अगुवाई आईआईटी नई दिल्ली के भौतिक विज्ञान के प्रो.दलीप सिंह मेहता ने की है।

ये 'नॉन-मैकेनिकल' और 'मैकेनिकल' ट्रैकिंग सोलर पीवी टावर्स भारत के सभी मौसमों में काम कर सकता है। इसके अलावा, 'मैकेनिकल' ट्रैकिंग सोलर पीवी टावर बहुत छोटा है। पूरी यूनिट को एक साथ लगाया जा सकता है और इसे बिजली पैदा करने के लिए कहीं भी ले जाया जा सकता है।

आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित 3 किलोवाट और 5 किलोवाट क्षमता के जगह की बचत करने वाला 'नॉन-मैकेनिकल' और 'मैकेनिकल' ट्रैकिंग सोलर पीवी टावर्स, सोलर टॉवर में उच्च क्षमता के लिए भी बदलाव किया जा सकता हैं।

इसका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन के लिए किया जा सकता है। साथ ही इसे घरों, स्कूलों,अस्पतालों, दुकानों, टेलीफोन टावर्स और अन्य में ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

इस नई तकनीक को बिजली उत्पादन के लिए सोलर ट्रैकिंग के साथ वाहनों पर भी लगाया जा सकता है। सोलर टॉवर का उपयोग कृषि उद्देश्य (एग्री-फोटोवोल्टिक) जैसे सोलर वाटर पंपिंग, ट्रैक्टरों के लिए बैटरी चार्ज करने आदि के लिए किया जा सकता है। 

शोधकर्ताओं ने कहा इसे काफी गहन शोध के बाद बनाया गया है। उन्होंने बताया कि हमने सूर्य की गति के अनुसार उच्च परावर्तन दर्पणों का उपयोग किया है। साथ ही हम सौर पीवी टावरों पर हल्के वजन और कम लागत वाले डिजाइन तक पहुंचने में सफल रहे। प्रो. दलीप सिंह मेहता ने कहा कि गैर-यांत्रिक और यांत्रिक दोनों सौर टावर पारंपरिक तकनीक की तुलना में केवल 50 से 60 फीसदी छतों की जगह का उपयोग करते हुए 20 से 25 फीसदी अधिक अधिक बिजली उत्पन्न करने में सक्षम है। 

गैर-यांत्रिक ट्रैकिंग सौर टावर - उच्च परावर्तन दर्पणों के साथ सौर पैनल एक विशेष तरीके (स्थान/शहर के आधार पर) में लंबवत रूप से लगाए जाते हैं। वे सुबह, मध्य-दिन और शाम के घंटों के दौरान सूर्य के सामने आते हैं। इसलिए उच्च दक्षता वाले सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए बहुत सक्षम है। सोलर पैनल लगाने की पद्धति जब सूर्य की रोशनी कम तेज रहती है यह उन घंटों के दौरान यानी सुबह 9 बजे से 11 बजे और दोपहर 2 बजे तक अधिक बिजली उत्पन्न करने में मदद करता है।   

इसमें लगाए गए परावर्तक दर्पण पूरे दिन यानी सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक सौर पैनलों पर विकिरण को बढ़ाते हैं। सौर पैनलों पर सौर विकिरण की 50 फीसदी से अधिक वृद्धि होती है, इस प्रकार सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक 1000 वाट प्रति वर्ग मीटर बनाए रखता है। इसके कारण सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक सौर विकिरण में वृद्धि होती है। सौर पैनलों को पारंपरिक तरीको से लगाने की तुलना में यह 20 से 25 फीसदी बिजली अधिक पैदा करता है।

मैकेनिकल ट्रैकिंग सोलर टॉवर: रिफ्लेक्टर के साथ थिसोलर पीवी टॉवर में सोलर टॉवर को क्षैतिज रूप से घुमाने के लिए कम लागत वाला प्रोग्रामेबल इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम होता है। एकल या दोहरे टावर ऐसे मैकेनिज्म में लगे होते हैं जहां पैनल और रिफ्लेक्टर वाला पूरी पणाली सूर्य की दिशा के अनुसार अपने को मोड़ देता है। पैनल पूर्व दिशा की ओर मुख करके दिन की शुरुआत करते हैं और दिन का अंत पश्चिम दिशा में पहुंच जाते हैं। अगली सुबह तक, पैनल एक नया दिन शुरू करने के लिए अपने पूर्व अवस्था में वापस लौट आते हैं।

शोधकर्ताओं ने बताया कि आईआईटी दिल्ली द्वारा विकसित नई ट्रैकिंग सिस्टम तकनीक को किसी भी एलडीआर सेंसर की आवश्यकता नहीं है, केवल सिंगल एक्सिस ट्रैकिंग की आवश्यकता है और उससे सोलर टॉवर द्वारा अवशोषित की गई बहुत कम बिजली की खपत होती है।

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