एक नए अध्ययन में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2023 तक भारत में 66.7 गीगावाट (जीडब्ल्यू) क्षमता के सौर ऊर्जा प्लांट लग चुके हैं और अभी लगभग 100 किलोटन (केटी) कचरा उत्पन्न हो रहा है। जो 2030 तक बढ़कर 340 किलोटन हो जाएगा। अनुमान है कि यह कचरा ओलंपिक आकार के 720 स्विमिंग पूल को भरने के बराबर है।
भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और स्वतंत्र थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के अध्ययन में कहा गया है कि इस कचरे का लगभग 67 प्रतिशत पांच राज्यों - राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से आएगा।
2030 में उत्पन्न होने वाले सोलर कचरे में लगभग 10 किलोटन सिलिकॉन, 12 से 18 टन चांदी और 16 टन कैडमियम और टेल्यूरियम शामिल होगा, जिनमें से अधिकांश भारत के लिए महत्वपूर्ण खनिज हैं।
सौर ऊर्जा का कचरा क्या है?
अध्ययन के मुताबिक, सौर ऊर्जा के कचरे से तात्पर्य सेल और मॉड्यूल निर्माण प्रक्रियाओं के दौरान छोड़े गए मॉड्यूल के साथ-साथ उत्पन्न स्क्रैप दोनों से है। मॉड्यूल को या तो तब त्याग दिया जा सकता है जब सौर पीवी मॉड्यूल अपने काम के अंतिम पड़ाव तक पहुंचते हैं या यातायात, हैंडलिंग और स्थापना जैसी गतिविधियों से टूट जाते हैं।
भारत में सौर कचरे का इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022 के अनुसार उचित तरीके से उपचार किया जाना चाहिए। कचरे से मूल्यवान खनिजों को दोबारा हासिल करने और पर्यावरण को सीसा और कैडमियम जैसे किसी भी जहरीले पदार्थ के रिसाव से बचाने के लिए सौर कचरे और लैंडफिलिंग के अनुचित प्रबंधन से बचना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया है कि इन सामग्रियों को फिर से हासिल करने के लिए सौर ऊर्जा के कचरे का रीसायकल करने से आयात निर्भरता कम होगी और भारत की खनिज सुरक्षा बढ़ेगी।
अध्ययन में पाया गया कि शेष 260 किलोटन कचरा नई क्षमता से आएगा जो इस दशक यानी 2024 से 2030 तक उपयोग किया जाएगा।
2050 तक सौर ऊर्जा का कचरा बढ़कर लगभग 19,000 किलोटन हो जाएगा। अध्ययन में कहा गया है कि इनमें से 77 प्रतिशत नई क्षमताओं से उत्पन्न होगा, यह भारत के लिए सौर उद्योग के लिए सर्कुलर इकोनॉमी के अग्रणी केंद्र के रूप में उभरने और लचीली सौर आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने का एक अवसर है।
भारत ने 2030 तक लगभग 292 गीगावाट सौर क्षमता हासिल करने की योजना बनाई है, जिससे सौर पीवी अपशिष्ट प्रबंधन पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक कारणों से महत्वपूर्ण हो जाएगा।
अध्ययन के मुताबिक, आंकड़ों के आधार पर अपशिष्ट प्रबंधन नीतियां बनाने के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है। भारत पहले से ही कचरे से निपटने के लिए कई उपाय लागू कर रहा है। पिछले साल, पर्यावरण मंत्रालय ने सौर फोटोवोल्टिक कोशिकाओं, पैनलों और मॉड्यूल को अपने दायरे में लाते हुए संशोधित ई-कचरा प्रबंधन नियम 2022 जारी किया।
ये नियम सौर सेल और मॉड्यूल के उत्पादकों को बढ़ते उत्पादक जिम्मेदारी (ईपीआर) ढांचे के तहत अपने कचरे का प्रबंधन करने के लिए बाध्य करते हैं।
अध्ययन में सौर कचरे से निपटने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) को अपशिष्ट उत्पादन केंद्रों की सटीक मैपिंग के लिए स्थापित सौर क्षमता (मॉड्यूल तकनीकी, निर्माता, कमीशनिंग तिथि आदि जैसे विवरण शामिल) का एक डेटाबेस बनाए रखना और समय-समय पर इसे अपडेट करना चाहिए।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सौर अपशिष्ट एकत्र करने और भंडारण के लिए दिशानिर्देश जारी करने चाहिए। इसके अलावा इसे जमा कचरे के सुरक्षित और कुशल प्रसंस्करण को भी बढ़ावा देना चाहिए।
सौर सेल और मॉड्यूल उत्पादकों को ई-कचरा प्रबंधन नियम 2022 में सौंपी गई जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए अपशिष्ट संग्रह और भंडारण केंद्र विकसित करना शुरू करना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया है कि यह सौर अपशिष्ट प्रबंधन में अवसर का पुख्ता सबूत प्रदान करता है। हालांकि, सौर रीसाइक्लिंग तकनीकों और उद्योग अभी भी शुरुआती चरण में हैं और उन्हें नीतिगत प्रोत्साहन और समर्थन की आवश्यकता है।