जलवायु जोखिम पर आंखें मूंदें हैं, भारत की प्रमुख एसेट मैनेजमेंट कंपनियां

रिपोर्ट के मुताबिक आधे से भी कम एसेट मैनेजमेंट कंपनियों ने जलवायु मुद्दों के प्रबंधन के लिए टीमें बनाई हैं। हालांकि दो-तिहाई ने पर्यावरण अनुकूल निवेश पर केंद्रित म्यूचुअल फंड पेश किए हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
Published on

थिंकटैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स ने अपनी नई रिपोर्ट ‘रिसकिंग अल्फा’ में खुलासा किया है कि भारत की सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (एएमसी) अपने पोर्टफोलियो में जलवायु से जुड़े जोखिमों की अनदेखी कर रही हैं।

यह अपनी तरह का पहला विश्लेषण है जिसमें क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स से जुड़े शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की है कि देश के प्रमुख 12 एसेट मैनेजमेंट कंपनियां बढ़ते जलवायु जोखिम को लेकर कितनी अच्छी तरह तैयार हैं।

निवेश के नजरिए से यह कंपनियां कितनी महत्वपूर्ण हैं, यह अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2023-24 में इन कंपनियों ने म्यूचुअल फंड में करीब 533,000 करोड़ डॉलर का प्रबंधन किया था।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर सके इसमें मदद के लिए म्यूचुअल फंड उद्योग को भी सूझबूझ से निवेश करने की जररूत है। यह निवेश ऐसा होना चाहिए जो नेट जीरो भविष्य का समर्थन करता हो। इसका मतलब है कि पर्यावरण अनुकूल भविष्य पर निवेश करने में इन कंपनियों की बड़ी भूमिका है।

बता दें कि म्यूचुअल फंड्स के पोर्टफोलियो का प्रबंधन करने की जिम्मेवारी इन्हीं एसेट मैनेजमेंट कंपनियों की होती है।

यह भी पढ़ें
क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025: जलवायु आपदाओं में तीन दशक में मारे गए 8 लाख लोग, भारत के 80 हजार से ज्यादा शामिल
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

इस अध्ययन में दस मानदंडों के आधार पर इन एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) का मूल्यांकन किया गया है। इनमें जिम्मेदार निवेश, बोर्ड द्वारा निगरानी, ​​कोयला सम्बन्धी नीति, ईएसजी इंटीग्रेशन और नेट जीरो लक्ष्य शामिल हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, भारत की एसेट मैनेजमेंट कंपनियां अब भी देश को कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली अर्थव्यवस्था के ढर्रे पर लाने में मदद करने के लिए सार्थक भूमिका नहीं निभा रही हैं।

इनमें से अधिकांश कंपनियां अभी भी कोयला क्षेत्र में निवेश कर रही हैं, साथ ही इनके पास कोयले पर निवेश से दूरी बनाने को लेकर नीतियां नहीं हैं। इसके साथ ही यह कम्पनियां इस बात का भी खुलासा नहीं कर रही हैं कि वे सीधे तौर पर कितने कार्बन उत्सर्जन को फाइनेंस कर रही हैं।

यह भी पता चला है कि केवल कोटक महिंद्रा ही ऐसी कंपनी है जिसने कोयले को अपनी ईएसजी योजनाओं से बाहर रखा है। इसी तरह केवल निप्पॉन लाइफ इंडिया एकमात्र ऐसी कंपनी है, जिसका लक्ष्य कम उत्सर्जन वाले निवेशों की ओर रुख करना है।

मतलब की यह एकलौती कंपनी है जिसने कम उत्सर्जन वाले पोर्टफोलियो में बदलाव के लक्ष्य को अपनाया है। वहीं किसी भी कंपनी ने यह जांच नहीं की है कि जलवायु से जुड़े जोखिम उनके पोर्टफोलियो को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें
जलवायु लक्ष्य व जस्ट ट्रांजिशन के लिए घातक साबित हो रहे हैं गुजरात के पेट्रोकेमिकल उद्योग
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

दो-तिहाई एएमसी ने पेश किए हैं पर्यावरण अनुकूल निवेश पर केंद्रित म्यूचुअल फंड

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ एएमसी, उत्सर्जन रिपोर्टिंग के माध्यम से जलवायु जोखिमों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर रही हैं, लेकिन अभी भी इनमे से अधिकांश "सक्रिय स्वामित्व" दृष्टिकोण का पालन कर रही हैं। इसका अर्थ है कि वे उन कंपनियों के साथ पर्यावरण-अनुकूल और जिम्मेदार (ईएसजी) होने के बारे में बात करती हैं, जिनमें ये एएमसी निवेश कर रही होती हैं।

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि आधे से भी कम एसेट मैनेजमेंट कंपनियों ने जलवायु मुद्दों के प्रबंधन के लिए टीमें बनाई हैं। वहीं दो-तिहाई ने पर्यावरण अनुकूल निवेश पर केंद्रित म्यूचुअल फंड पेश किए हैं। इतना ही नहीं इन 12 कंपनियों में से अधिकांश ने जिम्मेदार निवेश के लिए संयुक्त राष्ट्र सिद्धांतों (यूएन पीआरआई) पर हस्ताक्षर किए हैं।

इन शुरुआती कदमों के बावजूद, अधिकांश कंपनियां केवल उन्हीं मानदंडों पर काम कर रही हैं जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा अनिवार्य किए गए हैं। साथ ही इन्होने अपने ईएसजी फंड में केवल जलवायु प्रयासों पर ही ध्यान केंद्रित किया है।

ऐसे में रिपोर्ट से जुड़े शोधकर्ता सागर असपुर ने प्रेस में कहा, “एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को जलवायु संबंधी जोखिम को एक बड़ी वित्तीय चुनौती के रूप में देखना चाहिए और बोर्ड की निगरानी, ​​तनाव परीक्षण और पारदर्शिता में सुधार करना चाहिए। इस अंतर को पाटने के लिए पर्यावरण अनुकूल निवेश पर जोर देने की आवश्यकता है।“

यह भी पढ़ें
उत्पादन में वृद्धि के बावजूद वैश्विक एल्युमीनियम उद्योग ने उत्सर्जन में दर्ज की गिरावट
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

उनके मुताबिक हमें कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल फंडों की आवश्यकता है, क्योंकि ये पर्याप्त नहीं हैं। निवेशक अब भी इसमें बहुत ज्यादा रूचि नहीं ले रहे हैं। उनका आगे कहना है कि “एएमसी के लिए स्पष्ट नियम और मजबूत नियमन से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और बाजार को पर्यावरण अनुकूल भविष्य की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी।“

रिपोर्ट से जुड़े अन्य शोधकर्ता रितज कलास्कर के मुताबिक खुदरा निवेशक इक्विटी योजनाओं के माध्यम से जलवायु जोखिमों के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं। परिवहन और निर्माण जैसे क्षेत्रों को चरम मौसमी आपदाओं से खतरा है, जबकि ऑटो और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश को बदलती नीतियों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।"

एएमसी के जलवायु कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करने के लिए कुछ कदम के तत्काल उठाए जाने की भी सिफारिश रिपोर्ट में की गई है।

सेबी को ऐसे स्पष्ट मानक बनाने चाहिए, जिससे एएमसी के लिए जलवायु प्रभाव से जुड़ी जानकारी साझा करना अनिवार्य हो। साथ ही, उनके निवेश से होने वाले उत्सर्जन पर नजर रखने और जलवायु जोखिमों का आकलन करने के लिए भी सख्त नियम होने चाहिए।

इसी तरह सेबी को 2024-25 की बजट योजना में बताए जलवायु वित्त वर्गीकरण के अनुरूप अपने उद्योगों के वर्गीकरण को अपडेट करना चाहिए तथा स्वच्छ ऊर्जा और सार्वजनिक परिवहन जैसे पर्यावरण अनुकूल क्षेत्रों को समर्थन देना चाहिए।

सेबी को एएमसी के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए तथा उनसे यह कहने को कहा जाना चाहिए कि वे जिन कंपनियों में निवेश करते हैं, उनके साथ वे किस प्रकार काम करते हैं, इसके वास्तविक उदाहरणों के साथ विस्तृत रिपोर्ट साझा करें।

यह भी पढ़ें
क्या बढ़ते तापमान और भीषण गर्मी का सामना करने के लिए तैयार हैं दिल्ली, फरीदाबाद, बंगलूरू जैसे शहर?
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को जलवायु और ईएसजी मुद्दों को बेहतर ढंग से संभालने के लिए अपने कौशल और प्रणालियों में सुधार करना चाहिए।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in