

स्वीडन की लिंशोपिंग यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया कि उत्सर्जन अनुमान से लगभग 2.5 गुना अधिक है।
शोधकर्ताओं ने ड्रोन और विशेष सेंसर का उपयोग कर मीथेन (सीएच4) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) का वास्तविक मापन किया।
सबसे अधिक उत्सर्जन कीचड़ के भंडारण चरण में पाया गया, जिसे पहले नजरअंदाज किया जाता था।
नाइट्रस ऑक्साइड, जिसका जलवायु प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक है, एक महत्वपूर्ण अनदेखा स्रोत निकला।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि अनुमान-आधारित रिपोर्टिंग की जगह वास्तविक मापन आधारित प्रणाली अपनाई जानी चाहिए।
एक नए स्वीडिश अध्ययन से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि गंदे पानी के शोधन संयंत्रों (वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स) से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा अब तक किए गए अनुमानों से दो गुनी से भी अधिक हो सकती है। यह अध्ययन स्वीडन की लिंशोपिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसमें उन्होंने ड्रोन की मदद से वास्तविक उत्सर्जन को मापा।
एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हमने पाया कि कुछ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन अब तक अज्ञात थे। अब जब हमें इनके बारे में अधिक जानकारी मिली है, तो इन्हें घटाने के बेहतर उपाय भी खोजे जा सकते हैं।
क्या कहते हैं पिछले अनुमान?
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, घरेलू और औद्योगिक गंदे पानी को साफ करने वाले संयंत्र दुनिया के कुल मानव-जनित मीथेन (सीएच 4) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2O) उत्सर्जन का लगभग पांच प्रतिशत हिस्सा हैं।
अब तक आईपीसीसी इन उत्सर्जनों की गणना उत्सर्जन गुणांक के आधार पर करता रहा है। ये अनुमान इस बात पर निर्भर करते हैं कि किसी संयंत्र से कितने घर जुड़े हैं, न कि वहां से वास्तविक रूप से कितनी गैसें निकल रही हैं। यही कारण है कि यदि कोई नगर निगम उत्सर्जन घटाने के उपाय भी करे, तो भी रिपोर्ट में संख्या वही रहती है।
ड्रोन से हुआ सटीक मापन
शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से तैयार किए गए सेंसरों से लैस ड्रोन का उपयोग किया। इन ड्रोन से उन्होंने स्वीडन के 12 शोधन संयंत्रों में मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का मापन किया।
परिणाम चौंकाने वाले थे, वास्तविक उत्सर्जन आईपीसीसी के अनुमानों से लगभग 2.5 गुना अधिक पाया गया।
अधिकांश उत्सर्जन पाचन प्रक्रिया के बाद, यानी जब कीचड़ को संग्रहीत किया जाता है, उस समय हुआ। यह कीचड़ बाद में उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अध्ययन से पता चला कि इस भंडारण अवधि में मीथेन का रिसाव बहुत अधिक होता है, और इसके साथ-साथ नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी महत्वपूर्ण मात्रा में होता है।
नाइट्रस ऑक्साइड का खतरा
नाइट्रस ऑक्साइड एक बेहद शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, इसका जलवायु पर प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में लगभग 300 गुना अधिक होता है।
अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि कीचड़ भंडारण से निकलने वाली नाइट्रस ऑक्साइड का जलवायु प्रभाव मीथेन के बराबर है, जबकि पहले इसे बहुत कम माना जाता था।
आगे का रास्ता
शोधकर्ताओं का कहना है कि अब समय आ गया है कि अंदाजों की जगह वास्तविक माप को अपनाया जाए। इससे नगरपालिकाओं और संयंत्र संचालकों को यह दिखाने में मदद मिलेगी कि उन्होंने उत्सर्जन घटाने में कितना सुधार किया है। इसके अलावा माप आधारित प्रणाली से नीतियों और निवेश निर्णयों को भी अधिक सटीक बनाया जा सकेगा।
यह अध्ययन न केवल जलवायु परिवर्तन की समझ को गहरा करता है, बल्कि यह भी बताता है कि छोटे-छोटे स्रोतों से होने वाले अनदेखे उत्सर्जन वैश्विक गर्मी बढ़ाने में कितनी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।