शुष्क मौसम में पौधों से गैस उत्सर्जन: तेजी से बदलते मौसम का नया रहस्य

तेजी से बदलते मौसम में पौधों से गैस उत्सर्जन पर नई खोज: सूखा, तापमान नहीं, बदलाव की दर मायने रखती है
ऐसे अध्ययन भविष्य में प्रकृति और जलवायु के बीच जटिल संबंधों को समझने के नए रास्ते खोलते हैं।
ऐसे अध्ययन भविष्य में प्रकृति और जलवायु के बीच जटिल संबंधों को समझने के नए रास्ते खोलते हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • मुख्य खोज: पौधों से गैस उत्सर्जन पर तापमान या नमी नहीं, बल्कि मौसम बदलने की गति का असर पड़ता है।

  • बीओवीओसी उत्सर्जन: तेजी से मौसमी बदलाव पर पौधे तुरंत बीओवीओसी (जैविक वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) उत्सर्जित करते हैं।

  • प्रदूषण प्रभाव: ये गैसें सीधे प्रदूषक नहीं हैं, लेकिन ओजोन और फाइन पार्टिकल्स बनाने के लिए जिम्मेवार हैं।

  • सटीक भविष्यवाणी: सापेक्ष नमी में बदलाव की दर सबसे भरोसेमंद संकेतक है।

  • वैश्विक महत्व: अध्ययन वायु गुणवत्ता और जलवायु मॉडल को तेजी से बदलते मौसम के प्रभाव को शामिल करके सुधारने में मदद करेगा।

हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह दिखाया है कि सूखे के समय पौधों से निकलने वाली गैसें केवल तापमान या नमी पर निर्भर नहीं करतीं। असली कारण यह है कि मौसम कितनी तेजी से बदल रहा है। यह खोज पौधों, सूखे और वायु प्रदूषण के बीच संबंध को समझने के तरीके को पूरी तरह बदल देती है।

यह शोध इजरायल के हिब्रू विश्वविद्यालय के कृषि, खाद्य और पर्यावरण विभाग के पर्यावरण विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं के द्वारा किया गया। शोध में सामने आया कि जब मौसम अचानक बदलता है, जैसे नमी में तेज वृद्धि या तापमान में अचानक गिरावट आती है तो पौधे तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं और जैविक वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (बीओवीओसी) के उत्सर्जन की दर बदल जाती है।

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बीओवीओसी, यानी जैविक उत्पन्न वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, अपने आप में प्रदूषक नहीं होते, लेकिन ये ट्रोपास्फेरिक ओजोन और फाइन पार्टिकल्स के निर्माण में भाग लेते हैं। ये दोनों ही वायु गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन पर असर डालते हैं।

शोध में नया क्या है?

पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि पौधों से उत्सर्जन की मात्रा मुख्य रूप से तापमान या नमी के स्तर पर निर्भर करती है। लेकिन इस नए अध्ययन में, जो उत्तरी इजरायल में किया गया, पहली बार यह पता चला कि सापेक्ष नमी में बदलाव की दर ही पौधों से बीओवीओसी उत्सर्जन की सबसे सटीक पूर्वानुमान लगा सकती है।

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सरल शब्दों में कहें तो, यह जरूरी नहीं है कि मौसम कितना गर्म या सूखा है, बल्कि यह मायने रखता है कि यह कितनी तेजी से बदल रहा है। उदाहरण के लिए, यदि नमी में अचानक वृद्धि होती है, तो पौधे फॉर्मिक और एसिटिक एसिड जैसे पानी में घुलनशील कार्बनिक यौगिक अधिक उत्सर्जित करते हैं।

साइंस ऑफ दि टोटल एनवायरमेंट पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि जंगल तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं। सूखा केवल मिट्टी को नहीं सुखाता, बल्कि हवा के रसायन को भी बदल देता है। शोध निष्कर्ष मौसम और वायु प्रदूषण के बीच फीडबैक को सही ढंग से समझने का एक अधिक सटीक तरीका प्रदान करते हैं, जो विशेष रूप से मध्य पूर्व जैसे शुष्क क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के तहत बहुत महत्वपूर्ण है।

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कैसे किया गया अध्ययन?

इस अध्ययन में उच्च-आवृत्ति वाले उपकरणों का उपयोग किया गया। प्रोटॉन स्थानांतरण प्रतिक्रिया-उड़ान का समय-द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमेट्री (पीटीआर-टीओएफ-एमएस) की मदद से पौधों के ऊपर गैस की मात्रा को मापा गया और इसे मौसम संबंधी आंकड़ों और जलवायु मॉडलों के साथ जोड़ा गया। इस तरीके से यह स्पष्ट हुआ कि मौसम में तेज बदलाव पौधों की रासायनिक प्रतिक्रिया को तुरंत प्रभावित करते हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है?

जलवायु और वायु गुणवत्ता के मॉडल सुधार: वैश्विक जलवायु और वायु गुणवत्ता के पूर्वानुमान में अब इन आंकड़ों को शामिल किया जा सकता है, जिससे तेजी से बदलते मौसम की स्थिति में बीओवीओसी उत्सर्जन की सही भविष्यवाणी की जा सकेगी।

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नीति और योजना निर्माण: यह जानकारी विशेष रूप से सूखे और शुष्क क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अचानक वायु प्रदूषण की घटनाओं की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकती है।

वैज्ञानिक समझ में वृद्धि: यह अध्ययन दिखाता है कि पारिस्थितिकी तंत्र सिर्फ स्थिर परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि यह तुरंत मौसम की बदलती परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया करता है।

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यह शोध यह स्पष्ट करता है कि पौधों से गैस उत्सर्जन पर तेजी से बदलते मौसम का प्रभाव स्थायी तापमान या नमी से अधिक महत्वपूर्ण है। यह खोज न केवल वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समझ को बेहतर बनाती है, बल्कि भविष्य में पर्यावरणीय मॉडलों को अधिक सटीक बनाने में मदद करेगी।

शोध में कहा गया है कि जंगल केवल सूखा महसूस नहीं करता, वह हवा की रासायनिक संरचना में भी बदलाव महसूस करता है। ऐसे अध्ययन भविष्य में हमारे लिए प्रकृति और जलवायु के बीच जटिल संबंधों को समझने के नए रास्ते खोलते हैं।

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