ध्रुवीय क्षेत्रों में बदलती जलवायु का दुनिया भर में स्वास्थ्य पर पड़ रहा है गहरा असर: शोध

ध्रुवीय क्षेत्रों का तेजी से गर्म होना और इसके कारण उत्पन्न वैश्विक स्वास्थ्य खतरे: बीमारियां, पोषण, मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है गहरा असर
वैश्विक स्वास्थ्य पर असर: ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ पिघलना, समुद्र स्तर बढ़ना और बदलते मौसम से बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य और गर्भावस्था जटिलताएं बढ़ रही हैं।
वैश्विक स्वास्थ्य पर असर: ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ पिघलना, समुद्र स्तर बढ़ना और बदलते मौसम से बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य और गर्भावस्था जटिलताएं बढ़ रही हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • ध्रुवीय गर्मी तेजी से बढ़ रही है: आर्कटिक और अंटार्कटिका का तापमान वैश्विक औसत से अधिक बढ़ रहा है।

  • वैश्विक स्वास्थ्य पर असर: बर्फ पिघलना, समुद्र स्तर बढ़ना और बदलते मौसम से बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य और गर्भावस्था जटिलताएं बढ़ रही हैं।

  • उभरती बीमारियां: डेंगू, लाइम रोग, हैजा और टाइफाइड जैसी रोगों का फैलाव नए क्षेत्रों में हो रहा है।

  • कृषि और पोषण पर प्रभाव: बदलते मौसम पैटर्न से फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है, जिससे कुपोषण और संबंधित रोग बढ़ सकते हैं।

  • आवश्यक वैश्विक सहयोग: स्वास्थ्य और जलवायु विशेषज्ञों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नीति निर्माण जरूरी है।

हाल के वर्षों में ध्रुवीय क्षेत्रों – आर्कटिक और अंटार्कटिका में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन ने वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ एग्जेटर के शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए अध्ययन ने दिखाया है कि ध्रुवीय क्षेत्रों में हो रहे बदलाव केवल स्थानीय समस्या नहीं हैं, बल्कि उनका असर पूरी दुनिया के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है

ध्रुवीय बदलाव: एक वैश्विक संकट

ध्रुवीय इलाके पृथ्वी के सबसे तेजी से गर्म हो रहे हिस्सों में शामिल हैं। वहां बर्फ पिघल रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और मौसम पैटर्न बदल रहे हैं। ये बदलाव सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। शोध में पाया गया है कि वर्तमान मॉडल इन प्रभावों का सही आकलन नहीं कर रहे हैं। इससे पुरानी बीमारियों, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और गर्भावस्था संबंधित जटिलताओं का खतरा बढ़ सकता है।

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एम्बियो नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि ध्रुवीय बदलाव कोई दूर का संकट नहीं है। बर्फ के पिघलने, समुद्र स्तर बढ़ने और मौसम बदलने के जटिल प्रभाव पूरी दुनिया में भोजन सुरक्षा, बीमारियों और स्वास्थ्य ढांचे को प्रभावित कर रहे हैं। यह केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति है।

ध्रुवीय गर्मी और स्वास्थ्य को खतरे

ध्रुवीय क्षेत्रों के गर्म होने से कई प्रकार की “फीडबैक लूप” और “टिपिंग पॉइंट” बन रहे हैं। उदाहरण के लिए, बढ़ते तापमान से जेट स्ट्रीम कमजोर हो रही है और महासागरीय धाराएं बदल रही हैं। इसका सीधा असर मौसम पर पड़ता है, जिससे अधिक संख्या में आपदाएं और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ रही हैं।

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इसके अलावा आर्कटिक में बर्फ के बिना रहने वाली परिस्थितियां एल नीनो जैसी घटनाओं की तीव्रता बढ़ा सकती हैं। तापमान वृद्धि के कारण किडनी और हृदय संबंधी रोगों में वृद्धि होने की आशंका है। समुद्र स्तर बढ़ने से भूजल में खारा पानी मिल सकता है, जिससे प्रीक्लेम्पसिया, शिशु मृत्यु और कुछ प्रकार के कैंसर बढ़ सकते हैं।

कृषि और पोषण पर असर

ध्रुवीय इलाकों में बदलाव का असर सीधे कृषि पर भी पड़ रहा है। बारिश और तापमान के पैटर्न बदलने से फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है, जिससे कुपोषण और उससे जुड़ी बीमारियां बढ़ सकती हैं। यह समस्या खासकर उन देशों में गंभीर हो सकती है, जो पहले से ही पोषण और स्वास्थ्य के मामलों में संवेदनशील हैं।

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उभरती हुई बीमारियां और आर्कटिक समुदाय

गर्म होने वाले जलवायु के कारण कीट और जानवरों से फैलने वाली बीमारियां, जैसे कि डेंगू, लाइम रोग और वाइब्रोसिस, उन क्षेत्रों में फैल रही हैं जो पहले इन रोगों से अछूते थे। बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि से जलजनित रोग, जैसे कॉलरा और टाइफाइड, फैल रहे हैं।

आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट और समुद्र की बर्फ पिघलने से बुनियादी ढांचे को खतरा है। साथ ही, पुराने प्रदूषक और प्राचीन रोगजनक जैसे 1918 के इन्फ्लूएंजा वायरस के निकलने का खतरा भी बढ़ रहा है। महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव से पारंपरिक खाद्य स्रोतों पर असर पड़ रहा है, जिससे स्थानीय समुदायों में कुपोषण, गर्भपात, किडनी और हृदय रोगों की दर बढ़ रही है।

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वैश्विक सहयोग और कार्रवाई की आवश्यकता

शोध में यह स्पष्ट किया गया है कि ध्रुवीय बदलाव के स्वास्थ्य पर प्रभाव को स्वास्थ्य योजना और नीति में शामिल करना आवश्यक है। शोध में कहा गया है कि बीमारियों और मृत्यु के इन कारणों की अनदेखी नहीं की जा सकती।

इसके लिए जलवायु वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और आंकड़े विशेषज्ञों के बीच मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है ताकि हम भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकें।

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ध्रुवीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन केवल स्थानीय समस्या नहीं है। इसके प्रभाव पूरी दुनिया में महसूस किए जा रहे हैं और ये मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न कर रहे हैं। बढ़ते तापमान, बर्फ के पिघलने, समुद्र स्तर वृद्धि और मौसम परिवर्तन सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से बीमारियों, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, पोषण और स्वास्थ्य ढांचे को प्रभावित कर रहे हैं।

इसलिए, ध्रुवीय बदलाव को केवल पर्यावरणीय मुद्दा मानने की बजाय इसे वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में स्वीकार करना होगा। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वैज्ञानिक शोध और स्वास्थ्य नीतियों को एक साथ जोड़ना जरूरी है।

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