गर्मी का कहर: 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ, भीषण गर्मी की चपेट में होंगें 60 करोड़ भारतीय

बढ़ता तापमान न केवल स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है, बल्कि यह बौद्धिक क्षमता, कृषि और श्रम उत्पादकता में गिरावट का कारण भी बन रहा है
कड़ी गर्मी में गेहूं की फसल काटती महिला किसान; फोटो: आईस्टॉक
कड़ी गर्मी में गेहूं की फसल काटती महिला किसान; फोटो: आईस्टॉक
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दुनिया भर में बढ़ता तापमान अपने साथ-साथ नए खतरे भी लेकर आ रहा है। उनमें से एक खतरा बढ़ती गर्मी और लू से जुड़ा है। इस बारे में एक नए अध्ययन से पता चला है कि यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो इसका सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर होगा।

इस बारे में पता चला है कि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 60 करोड़ से ज्यादा भारतीय बढ़ती गर्मी और लू का प्रकोप झेलने को मजबूर होंगें। हालांकि अनुमान है कि यदि बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर लिया जाता है तो यह आंकड़ा छह गुना घटकर केवल नौ करोड़ रह जाएगा।

रिसर्च के मुताबिक भीषण गर्मी का कहर तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ नाटकीय रूप से बढ़ना शुरू हो जाएगा। अनुमान है कि अब से बढ़ते तापमान में हर 0.1 डिग्री की वृद्धि के साथ 14 करोड़ लोग भीषण गर्मी की चपेट में होंगें।

यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो अभी भी दुनिया में करीब छह करोड़ लोग ऐसी जगह रह रहे हैं जहां औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है। वहीं जिस तेजी से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है इस बात का अंदेशा है कि सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में होती वृद्धि बढ़कर 2.7 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाएगी।

22 फीसदी आबादी होगी बढ़ते तापमान से प्रभावित

नतीजन आने वाले भविष्य में दुनिया की करीब 22 फीसदी आबादी यानी 200 करोड़ लोग भीषण गर्मी, लू और उससे पैदा हुई समस्याओं को झेलने को मजबूर होंगें। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भारत में रह रहे लोगों को भुगतना होगा। जो जानलेवा गर्मी के लिए पहले ही एक हॉटस्पॉट हैं।

यह जानकारी एक्सेटर विश्वविद्यालय के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट, अर्थ कमीशन और नानजिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक वैश्विक तापमान में होती वृद्धि पहले ही एक डिग्री सेल्सियस के पार जा चुकी है। इसका नतीजा है कि पहले ही दुनिया भर में करीब छह करोड़ लोग भीषण गर्मी और लू की चपेट में हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां भीषण गर्मी में जीने को मजबूर लोगों से तात्पर्य उन लोगों से है जो ऐसे स्थानों पर रह रहे हैं, जहां का औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर पहुंच चुका है।

रिसर्च के अनुसार भारत के बाद नाइजीरिया दूसरा देश हैं जहां तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ सबसे ज्यादा आबादी भीषण गर्मी की चपेट में होगी। अनुमान है कि इस वृद्धि के साथ नाइजीरिया में भीषण गर्मी से प्रभावित लोगों का आंकड़ा 30 करोड़ पर पहुंच जाएगा। हालांकि यदि इस बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर लिए जाए तो यह खतरा केवल चार करोड़ लोगों को अपना निशाना बनाएगा।

इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बढ़ते तापमान के साथ बढ़ते खतरों के साथ-साथ जलवायु नीतियों की विशाल क्षमता पर भी प्रकाश डाला है। जो इंसानों को जलवायु परिवर्तन की चुकानी पड़ रही कीमत और असमानताओं को सीमित करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।

पता चला है कि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने से बढ़ती गर्मी का कहर केवल पांच फीसदी लोगों को ही अपना निशाना बना पाएगा। ऐसे में 2.7 डिग्री सेल्सियस की तुलना में मानवता के छठे हिस्से को भीषण गर्मी के कहर से बचाया जा सकेगा।

हालांकि वैज्ञानिकों ने इसके साथ-साथ सबसे बुरे हालात का भी जिक्र किया है जिसके अनुसार यदि तापमान में होती वृद्धि बढ़कर 3.6 डिग्री सेल्सियस से 4.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगी तो दुनिया की करीब-करीब आधी आबादी के जीवन पर खतरा मंडराने लगेगा।

वरदान साबित हो सकता है 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य

इस बारे में ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर टिम लेंटन का कहना है कि यह कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए समस्या के पैमाने और निर्णायक कार्रवाई के महत्व दोनों को प्रकट करता है।" उनके अनुसार बढ़ते तापमान को 2.7 डिग्री सेल्सियस के बजाय 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का मतलब है कि सदी का अंत तक पांच गुणा कम लोग जानलेवा गर्मी के संपर्क में आएंगें।

ऐतिहासिक रूप से देखें तो दुनिया में ज्यादातर आबादी उन क्षेत्रों में बसी है जहां औसत तापमान 13 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच था। लेकिन जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते बढ़ता तापमान इनमें से कई स्थानों को जीवन के लिए मुश्किल बना देगा।

इसकी वजह से न केवल स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा बढ़ जाएगा। साथ ही इस बढ़ते तापमान का असर भारत, नाइजीरिया जैसे देशों में लोगों की श्रम उत्पादकता, बौद्धिक क्षमता, मातृत्व सम्बन्धी जोखिम, कृषि उत्पादकता में गिरावट, बढ़ते संघर्ष और संक्रामक बीमारियों के बढ़ते खतरे के रूप में भी सामने आएगा।

रिसर्च के मुताबिक यदि तापमान में होती वृद्धि 2.7 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाती है तो बुर्किना फासो और माली सहित कुछ देशों में बढ़ती गर्मी करीब-करीब सारी आबादी के लिए खतरा बन जाएगी। वहीं इस तापमान पर दुनिया में ब्राजील का सबसे ज्यादा बड़ा क्षेत्र इस बढ़ती गर्मी की चपेट में होगा। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया और भारत का भी बड़ा हिस्सा बढ़ते तापमान की वजह इंसानों के लिए रहने योग्य नहीं होगा।

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