जलवायु संकट: वातावरण में नाइट्रोजन चक्र की भूमिका के लिए मॉडलिंग की सख्त जरूरत

नाइट्रोजन चक्र का सटीक मॉडलिंग जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, कृषि उत्पादकता और मानव स्वास्थ्य की बेहतर समझ और संरक्षण के लिए आवश्यक है।
सतत नाइट्रोजन प्रबंधन: कोलंबो घोषणा का लक्ष्य 2030 तक नाइट्रोजन बर्बादी को आधा करना है, जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होगा।
सतत नाइट्रोजन प्रबंधन: कोलंबो घोषणा का लक्ष्य 2030 तक नाइट्रोजन बर्बादी को आधा करना है, जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होगा।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • नाइट्रोजन का व्यापक प्रभाव: नाइट्रोजन केवल पौधों की वृद्धि ही नहीं, बल्कि जलवायु, वायु गुणवत्ता और महासागरीय पारिस्थितिकी को भी प्रभावित करता है।

  • मॉडलों में कमी: वर्तमान पृथ्वी प्रणाली मॉडल नाइट्रोजन चक्र को पूर्ण रूप से शामिल नहीं करते, जिससे भविष्यवाणियां अधूरी रह जाती हैं।

  • ग्रीनहाउस गैस और प्रदूषण: नाइट्रस ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण दोनों में योगदान देती हैं।

  • अनुसंधान और अवलोकन की आवश्यकता: सटीक मॉडलिंग के लिए अधिक क्षेत्रीय आंकड़े, प्रयोगात्मक अध्ययन और अवलोकनों की जरूरत है।

  • सतत नाइट्रोजन प्रबंधन: कोलंबो घोषणा का लक्ष्य 2030 तक नाइट्रोजन बर्बादी को आधा करना है, जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होगा।

नाइट्रोजन पृथ्वी के पर्यावरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है। यह न केवल कृषि उत्पादन और पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, मानव स्वास्थ्य और जैव विविधता पर भी गहरा प्रभाव डालता है।

हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू किया है कि नाइट्रोजन का वैश्विक चक्र पृथ्वी की संपूर्ण प्रणाली को किस प्रकार प्रभावित करता है। फिर भी, पृथ्वी प्रणाली मॉडल, जिनका उपयोग जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तनों की भविष्यवाणी के लिए किया जाता है, उनमें नाइट्रोजन चक्र को पूरी तरह शामिल नहीं किया गया है।

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यह अध्ययन जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: बायोजियो साइंसेज में प्रकाशित हुआ है। शोध में इस बात पर जोर दिया है कि पृथ्वी प्रणाली मॉडल में एक पूर्ण और अंतःक्रियात्मक नाइट्रोजन चक्र को शामिल किया जाना चाहिए। ऐसा करने से यह समझना संभव होगा कि नाइट्रोजन भूमि, महासागरों और वायुमंडल के बीच किस प्रकार चलता है और यह विभिन्न पर्यावरणीय प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित करता है।

नाइट्रोजन की बहुआयामी भूमिका

नाइट्रोजन को अक्सर केवल पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व के रूप में देखा जाता है, परंतु इसकी भूमिका इससे कहीं अधिक व्यापक है।

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ग्रीनहाउस गैस के रूप में योगदान

नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कई गुना अधिक तापीय प्रभाव डालती है। इस गैस का बढ़ना जलवायु परिवर्तन को और तेज कर सकता है।

वायुमंडलीय रसायन में योगदान

नाइट्रोजन ऑक्साइड (नॉक्स) वायुमंडल में ओजोन (ओ3) बनने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाते हैं। यह ओजोन जब धरातल के समीप बनता है तो प्रदूषण और सांस की बीमारियों का कारण बनता है।

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एयरोसॉल और धूलकण निर्माण

नाइट्रोजन यौगिक वायुमंडल में छोटे-छोटे कणों के निर्माण में मदद करते हैं, जो न केवल वायु गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं बल्कि बादल बनने और बारिश के पैटर्न को भी बदल सकते हैं।

भूमि और महासागर के बीच संबंध

भूमि से बहकर जाने वाला नाइट्रोजन जब नदियों के माध्यम से महासागरों में पहुंचता है, तो वहां यह यूट्रोफिकेशन नामक प्रक्रिया को जन्म देता है। इससे समुद्री जल में अत्यधिक पोषक तत्व जमा हो जाते हैं, जिससे हानिकारक शैवाल तेजी से बढ़ते हैं और मछलियों तथा अन्य समुद्री जीवों के लिए खतरा बन जाते हैं।

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जंगल की आग और प्रदूषण

जब जंगलों में आग लगती है, तो नाइट्रोजन ऑक्साइड और अमोनिया वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं। ये गैसें धूल के कणों और स्मॉग का हिस्सा बन जाती हैं, जिससे प्रदूषण और जलवायु पर असर पड़ता है।

पृथ्वी प्रणाली मॉडल में नाइट्रोजन की कमी

आज के अधिकांश पृथ्वी प्रणाली मॉडल्स में नाइट्रोजन को केवल एक "सीमित पोषक तत्व" के रूप में शामिल किया गया है, यानी यह सिर्फ पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। लेकिन नाइट्रोजन चक्र की जटिल अंतःक्रियाएं, जैसे वायुमंडलीय रसायन, महासागरीय जैव-भू-रासायनिक प्रक्रियाएं , और मानवजनित उत्सर्जन अक्सर इन मॉडलों में शामिल नहीं की जातीं।

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इसका परिणाम यह होता है कि जलवायु और पारिस्थितिक तंत्रों के बीच की वास्तविक प्रतिक्रियाएं सही तरह से प्रदर्शित नहीं हो पातीं। उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में नाइट्रोजन की अधिकता होती है, तो वहां पौधों की वृद्धि बढ़ सकती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण भी बढ़ेगा।

लेकिन साथ ही, नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ सकता है, जो एक ग्रीनहाउस गैस है, इस प्रकार कुल प्रभाव जटिल हो जाता है।

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आगे की दिशा

कौ-गिसब्रेक्ट का सुझाव है कि हमें पृथ्वी प्रणाली मॉडल्स में पूर्ण रूप से अंतःक्रियात्मक नाइट्रोजन मॉड्यूल्स जोड़ने चाहिए, ताकि भूमि, महासागर और वायुमंडल के बीच नाइट्रोजन के आदान-प्रदान को सटीक रूप से समझा जा सके। इसके लिए आवश्यक है:

  • अधिक क्षेत्रीय और वैश्विक अवलोकन : ताकि यह पता लगाया जा सके कि नाइट्रोजन कहां, किस रूप में और कितनी मात्रा में परिवर्तित हो रहा है।

  • प्रयोगात्मक अध्ययन और मापन: विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में नाइट्रोजन की भूमिका को प्रयोगों के माध्यम से समझने की आवश्यकता है।

  • आंकड़े और मॉडल का बेहतर मेल: प्रयोगात्मक आंकड़ों के आधार पर मॉडल्स को परिष्कृत किया जा सकता है, जिससे भविष्य की भविष्यवाणियां अधिक सटीक हों।

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वैश्विक नीति और लक्ष्य

संयुक्त राष्ट्र समर्थित कोलंबो घोषणा ने 2030 तक नाइट्रोजन की बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य रखा है। यदि यह लक्ष्य प्राप्त किया जाए, तो यह न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करेगा बल्कि लगभग 100 अरब डॉलर सालाना बचत भी कर सकता है। साथ ही, इससे खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और जैव विविधता में भी सुधार होगा।

नाइट्रोजन पृथ्वी की जैव-भू-रासायनिक प्रणालियों का एक प्रमुख घटक है, जो जीवन, जलवायु और पर्यावरण को गहराई से प्रभावित करता है। फिर भी, इसे हमारे जलवायु मॉडल्स में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है। अब समय आ गया है कि हम नाइट्रोजन चक्र को पृथ्वी प्रणाली मॉडल्स में पूरी तरह से समाहित करें, ताकि हम पृथ्वी के भविष्य को अधिक सटीकता से समझ सकें और एक संतुलित, सतत पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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