खेती में फास्फोरस व नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग से फूल वाले पौधों की 45 प्रतिशत प्रजातियों को खतरा

शोध से पता चलता है कि खेती में 21:1 के अनुपात में नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरूरत पड़ती है, अतिरिक्त मात्रा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं
फास्फोरस की मात्रा को कम करने से फसल उत्पादन पर असर डाले बिना जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में काफी सुधार हो सकता है।
फास्फोरस की मात्रा को कम करने से फसल उत्पादन पर असर डाले बिना जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में काफी सुधार हो सकता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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दुनिया भर में फास्फोरस के जरूरत से ज्यादा उपयोग के कारण इसकी भारी मात्रा बर्बाद हो रही है, इस बात का खुलासा लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी और रॉयल बोटेनिक गार्डन के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

शोध में कहा गया है कि वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं के पौधों पर अध्ययन किया गया जिसके मुताबिक, गेहूं नाइट्रोजन और फास्फोरस उर्वरकों का उपयोग 21 नाइट्रोजन परमाणुओं और फास्फोरस के एक परमाणु के अनुपात में करता है। इस अनुपात से बाहर नाइट्रोजन और फास्फोरस दोनों बर्बाद हो जाते हैं।

शोध के इन निष्कर्षों से पता चलता है कि फास्फोरस के उपयोग को कम करने से फसल की पैदावार पर असर नहीं पड़ेगा, बल्कि जैव विविधता की रक्षा होगी, इस पर लगने वाले खर्च में कटौती होगी, इस महत्वपूर्ण संसाधन का संरक्षण होगा और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार होगा।

दुनिया भर में खाई जाने वाली फसलों में गेहूं का अहम स्थान है, जो मनुष्य के पोषण का 20 फीसदी तक का योगदान करती है। वैज्ञानिकों द्वारा गमलों में उगाए गए गेहूं के पौधों पर किए गए शोध से पता चलता है कि उन्हें 21:1 के अनुपात में नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरूरत पड़ती है। अतिरिक्त नाइट्रोजन या फास्फोरस बर्बाद हो जाता है क्योंकि यह गेहूं की उपज में वृद्धि नहीं करता है। शोध में कहा गया है कि इस तरह के पैटर्न सभी फसलों पर लागू हो सकते हैं।

शोध के मुताबिक, वर्तमान में, दुनिया भर में उर्वरकों के उपयोग में नाइट्रोजन और फास्फोरस का अनुपात लगभग 2.1:1 से 4.3:1 के बीच है, जो जरूरत से कहीं अधिक है। बचा हुआ उर्वरक मिट्टी और जल निकायों में जमा हो जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और किसानों और उपभोक्ताओं के लिए इसकी लागत बढ़ जाती है।

नाइट्रोजन के विपरीत, फास्फोरस एक सीमित संसाधन है जो बढ़ती आबादी के भोजन की मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक है। यदि ये निष्कर्ष खेती में भी लागू होते हैं, तो फास्फोरस के उपयोग में होने वाली भारी कटौती से किसानों, पर्यावरण और समाज को फायदा पहुंचा सकता है, वो भी पैदावार से समझौता किए बिना।

लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, उर्वरक की बढ़ती खपत खाद्य की कीमतों को बढ़ा रही है। शोध से पता चलता है कि हम फास्फोरस की तुलना में बहुत अधिक नाइट्रोजन का उपयोग कर रहे हैं, जिससे बर्बादी, प्रदूषण और बहुत अधिक धन खर्च हो रहा है।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, उर्वरकों का बहना हमारे पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। फास्फोरस की मात्रा को कम करने से फसल उत्पादन पर असर डाले बिना जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में काफी सुधार हो सकता है।

शोधकर्ता ने यह भी कहा कि फूलों वाले पौधों की 45 प्रतिशत प्रजातियां खतरे में हैं। इसके पीछे उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग एक अहम कारण है। यह अध्ययन किसानों को उर्वरकों का उपयोग कम करने, पैसे और पर्यावरण बचाने में मदद कर सकता है। यह शोध फूड एंड एनर्जी सिक्योरिटी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

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