जलवायु संकट: भारत में गायों पर गर्मी की मार, प्रति दिन चार फीसदी तक घट सकता है दूध उत्पादन

अध्ययन से पता चला है कि बढ़ती गर्मी और नमी से गायों में हीट स्ट्रेस बढ़ रहा है, जिससे भारत जैसे देशों में दूध उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है
जलवायु संकट: भारत में गायों पर गर्मी की मार, प्रति दिन चार फीसदी तक घट सकता है दूध उत्पादन
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जलवायु परिवर्तन के चलते जैसे-जैसे दुनिया में तपिश बढ़ रही है, वैसे-वैसे गर्मी का असर सिर्फ इंसानों पर ही नहीं, बल्कि गायों पर भी साफ तौर पर दिखने लगा है। देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों का असर अब पिघलते ग्लेशियरों, समुद्र के बढ़ते जल स्तर और फसलों तक सीमित नहीं है। अब इसका सीधा असर गायों के दूध उत्पादन पर भी पड़ रहा है।

एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने चेताया है कि भीषण गर्मी से महज एक दिन में ही गायों के दूध उत्पादन में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। इतना ही नहीं यह असर 10 से ज्यादा दिनों तक बना रह सकता है। इस गिरावट का सबसे बड़ा असर दुनियाभर के उन 15 करोड़ परिवारों पर पड़ेगा, जो अपनी आजीविका के लिए दूध उत्पादन पर निर्भर हैं।

शोध से पता चला है कि अगले 10 वर्षों में दुनिया में दूध उत्पादन में होने वाली आधी से ज्यादा बढ़ोतरी दक्षिण एशिया में होने की संभावना है, जहां हीटवेव और गर्म व नमी भरी जलवायु और भी ज्यादा गंभीर रूप ले सकती है। भारत जैसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश, जहां पहले ही गर्म और उमस भरा मौसम आम है, इस खतरे की सीधी चपेट में हैं।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं। इसमें इजराइल की डेयरी व्यवस्था को आधार बनाकर यह आकलन किया है कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन दूध उत्पादन को कैसे प्रभावित कर सकता है।

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शोधकर्ताओं ने पाया है कि अगर कूलिंग तकनीकों जैसे वेंटिलेशन और पानी का छिड़काव का उपयोग न किया जाए, तो अगले कुछ दशकों में दुनिया के शीर्ष 10 दूध उत्पादक देशों में प्रति दिन दूध उत्पादन में औसतन 4 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। चिंता की बात है कि इससे भारत, पाकिस्तान और ब्राजील सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जहां प्रति गाय हर दिन दूध उत्पादन में 3.5 से 4 फीसदी तक की कमी आने की आशंका है।

यह आंकड़ा इजराइल जैसे विकसित डेयरी सिस्टम वाले देश से कहीं अधिक है। हालांकि अध्ययन में यह भी कहा गया है कि यह देश कूलिंग तकनीकों का सबसे अधिक लाभ भी उठा सकते हैं।

शोध में यह भी सामने आया है कि गर्म और नम दिनों में, जब 'वेट-बल्ब तापमान' 26 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, तब गायें गंभीर हीट स्ट्रेस का शिकार होती हैं। ऐसी स्थिति में उनके शरीर से पर्याप्त गर्मी नहीं निकल पाती, जिससे दूध उत्पादन तेजी से घट जाता है। बता दें कि 'वेट-बल्ब तापमान' नमी और गर्मी की संयुक्त माप है।

गर्मी के साथ घट रहा दूध

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 12 वर्षों के दौरान इजराइल की 130,000 लाख से अधिक गायों पर मौसम और तापमान के असर का अध्ययन किया है। इसके साथ ही 300 से अधिक डेयरी किसानों से जुड़े आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया। अध्ययन के मुताबिक यहां करीब-करीब सभी डेयरी फार्मों ने मवेशियों को ठंडक देने के लिए तकनीकों की मदद ली है, लेकिन ये उपाय सिर्फ 40 से 50 फीसदी तक ही नुकसान की भरपाई कर पाते हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, यह तकनीकें कम प्रभावी रह जाती हैं।

हालांकि, फिर ही शोधकर्ताओं का मानना है कि इन उपायों में निवेश फायदे का सौदा है, क्योंकि किसान एक से डेढ़ साल में ही उपकरण की लागत वसूल सकते हैं।

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भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, जहां आज भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा डेयरी पर निर्भर है। लेकिन बदलते मौसम और बढ़ते तापमान के चलते गायों पर हीट स्ट्रेस बढ़ रहा है, जिससे देश की दुग्ध सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। 2023 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उस साल भारत में करीब 23.9 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ था।

देखा जाए तो भारत जैसे देश, जहां पहले से ही गर्म जलवायु और संसाधनों की कमी है, वहां यह खतरा आने वाले दशकों में कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले सकता है। डेयरी उद्योग देश की अर्थव्यवस्था और पोषण का एक बड़ा हिस्सा है।

ऐसे में वैज्ञानिकों ने सरकारों और नीति-निर्माताओं को सलाह दी है कि केवल तकनीकी उपाय ही काफी नहीं हैं। गायों को कम तनाव वाले वातावरण में रखना, जैसे कि बछड़ों से अलगाव कम करना और उन्हें खुली जगह देना, भी जरूरी है। ये बदलाव गायों को गर्मी के प्रति अधिक सहनशील बना सकते हैं।

भारत में दूध पोषण के साथ-साथ करोड़ों लोगों की जीविका और अर्थव्यवस्था की भी जीवनरेखा है। ऐसे में यदि हमने अभी से ठोस तैयारी नहीं की, तो आने वाले वर्षों में दूध की हर बूंद पर जलवायु परिवर्तन की मार पड़ेगी, जिसके लिए हमें अभी से तैयार रहना होगा।

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