जलवायु संकट: सदी के अंत तक मध्य हिमालय में 84 फीसदी तक बढ़ सकता है बाढ़ का खतरा

वैज्ञानिकों के मुताबिक मध्य हिमालय का घनी आबादी वाला क्षेत्र पहले ही बाढ़ के प्रति संवेदनशील है। आशंका है कि बढ़ते उत्सर्जन के साथ बाढ़ की चरम घटनाएं और ज्यादा ताकतवर होती जाएंगी।
नेपाल में बाढ़ से अस्त-व्यस्त जिंदगियां; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
नेपाल में बाढ़ से अस्त-व्यस्त जिंदगियां; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • नई स्टडी के अनुसार, इस सदी के अंत तक मध्य हिमालय में भीषण बाढ़ का खतरा 84 फीसदी तक बढ़ सकता है। ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

  • यह स्थिति भारत और नेपाल के लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है।

  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर उत्सर्जन नहीं रुका, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।

  • अध्ययन में सामने आया है कि जिन भीषण बाढ़ों के किसी भी साल में आने की आशंका महज एक फीसदी होती है, उनका आकार 2020 से 2059 के बीच 22 से 26 फीसदी तक बढ़ सकता है।

  • बाढ़ में यह वृद्धि 1975 से 2014 के बीच इस क्षेत्र में दर्ज बाढ़ों के पैमाने की तुलना पर आधारित है। यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन मध्यम स्तर पर रहता है तो 2060 से 2099 तक यह बढ़ोतरी 43 फीसदी तक पहुंच सकती है।

नई स्टडी से पता चला है कि इस सदी के अंत तक मध्य हिमालय में आने वाली भीषण बाढ़ों का आकार 84 फीसदी तक बढ़ सकता है। इसका असर भारत-नेपाल में रहने वाले लोगों पर पड़ सकता है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को जिम्मेवार माना है।

यह चेतावनी ब्रिटेन के डरहम विश्वविद्यालय के भूगोलविदों ने दी है, जिन्होंने नेपाल, चीन में बहने वाली कर्णाली नदी पर भविष्य के बाढ़ जोखिम का विस्तृत मॉडल तैयार किया है। यह नदी आगे चलकर भारत के तराई क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है। गौरतलब है कि कर्णाली नदी तिब्बत के मापचाचुंगो ग्लेशियर से निकलती है।

नेपाल में कर्णाली कही जाने वाली इस नदी को भारत में घाघरा के नाम से जाना जाता है, जो आगे चलकर गंगा में मिल जाती है।

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नेपाल में बाढ़ से अस्त-व्यस्त जिंदगियां; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

अध्ययन में सामने आया है कि जिन भीषण बाढ़ों के किसी भी साल में आने की आशंका महज एक फीसदी होती है, उनका आकार 2020 से 2059 के बीच 22 से 26 फीसदी तक बढ़ सकता है। बाढ़ में यह संभावित वृद्धि 1975 से 2014 के बीच इस क्षेत्र में दर्ज बाढ़ों के पैमाने की तुलना पर आधारित है। यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन मध्यम स्तर पर रहता है तो 2060 से 2099 तक यह बढ़ोतरी 43 फीसदी तक पहुंच सकती है।

चिंता की बात है कि यदि उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा, तो इस अवधि में भीषण बाढ़ का आकार 84 फीसदी तक बढ़ सकता है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं, जो स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि आने वाले दशकों में मध्य हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगी किस तरह प्रभावित हो सकती हैं।

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हर साल बढ़ रहा बाढ़ का कहर

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि मध्य हिमालय की नदी घाटियां दुनिया की सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित जगहों में से एक है। उदाहरण के लिए सितंबर 2024 में बाढ़ की ऐसी ही एक घटना ने 236 जिंदगियां निगल ली थी।

इतना ही नहीं इसकी वजह से 8,400 लोग अपने घरों से बेघर हो गए। इस बाढ़ से नेपाल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को एक फीसदी का नुकसान हुआ। अनुमान है कि 2050 तक बाढ़ से होने वाला नुकसान नेपाल के वार्षिक जीडीपी के 2.2 फीसदी तक पहुंच सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस अध्ययन के नतीजे इस क्षेत्र में स्थानीय बाढ़ प्रबंधन में मदद कर सकते हैं।

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बाढ़ सिर्फ घर और सड़कें ही नहीं बहाती, यह खाद्य संकट, साफ पानी की कमी और महामारियों के फैलने का भी कारण बनती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन नहीं थमा तो ये संकट और गहराता जाएगा।

डरहम विश्वविद्यालय के डॉक्टर इवो पिंक का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “मध्य हिमालय का घनी आबादी वाला इलाका पहले ही बाढ़ के प्रति संवेदनशील है। अध्ययन से पता चलता है कि बढ़ते उत्सर्जन के साथ बाढ़ की चरम घटनाएं और ज्यादा ताकतवर होती जाएंगी।"

उनका अंदेशा है कि सदी के अंत तक बाढ़ की ऐसी घटनाएं हर पांच से दस साल में देखने को मिल सकती हैं। वे कहते हैं कि भले ही आज उत्सर्जन रोक दिया जाए, तो भी बाढ़ का खतरा कई दशकों तक बढ़ता रहेगा। ऐसे में अभी कदम उठाना बेहद जरूरी है।

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क्यों बढ़ेगा बाढ़ का खतरा?

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के विभिन्न शोध केंद्रों से प्राप्त जलवायु अनुमान को हाइड्रोलॉजिकल सिमुलेशन और सांख्यिकीय विश्लेषण के साथ जोड़ा है। इस विश्लेषण के नतीजे दर्शाते हैं कि बाढ़ के पानी में सबसे बड़ा हिस्सा बारिश में वृद्धि से आएगा, वहीं बर्फ और ग्लेशियर के पिघलने की भूमिका अपेक्षाकृत कम होगी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक भीषण बाढ़ जैसी चरम घटनाएं कम होती हैं, इसलिए इनके बदलाव की सटीक भविष्यवाणी के लिए कई जलवायु मॉडलों का उपयोग करना जरूरी है, ताकि भविष्य का सही अनुमान मिल सके।

इस अध्ययन ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य का खतरा नहीं, बल्कि मौजूदा समय की हकीकत बन चुका है। यह त्रासदी हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। ऐसे में यदि मध्य हिमालय के लाखों लोगों के भविष्य को बचाना है तो वैश्विक उत्सर्जन में जल्द से जल्द कटौती ही एकमात्र रास्ता है।

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