
हिमालय बर्बादी की ओर बढ़ रहा है। यूं तो यह सिलसिला पूर साल चलता है, लेकिन मॉनसून के सीजन में इस बर्बादी की तीव्रता बढ़ जाती है। पूरे हिमालय के शिखरों और घाटियों में तबाही के निशान बिखरे पड़े हैं, मगर पश्चिमी हिमालय के राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में यह तबाही सबसे ज्यादा गहरे और विध्वंसक निशान छोड़ रही है।
यहां साल 2025 का मॉनसून सीजन इस कदर कहर बरपा रहा है कि आशंका है मॉनसून बीतते-बीतते नुकसान के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट जाएं। इन राज्यों में इस साल मॉनसून समय से पहले पहुंचा और उसके साथ ही शुरू हो गया यहां बर्बादी का सिलसिला।
डाउन टू अर्थ का विश्लेषण बताता है कि हिमालयी राज्यों में हर दिन एक आपदा आई। 1 जनवरी 2025 से लेकर 18 अगस्त 2025 के बीच लोग 632 लोग काल के ग्रास में समा गए, जबकि अभी यह सिलसिला अनवरत जारी है।
हिमालयी राज्यों की त्रासदी की कई वजह हैं, लेकिन एक जो नई वजह इस साल सामने आई है, वह है कि उन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लगातार बारिश बढ़ रही है, जहां पहले नाम मात्र की बारिश होती हैं। वहां ग्लेशियरों का मलबा है, जिसे हिमोढ़ या मोरैन कहते हैं।
जब वहां बारिश हो रही है तो मोरैन में जल संतृप्तता (सेचुरेशन) की स्थिति बनने पर जलधारा एक खड़ी व संकरी घाटी में बहने लगती है और जैसे ही एक बार जब एक स्थान पर भूस्खलन शुरु हुआ तो फिर भूस्खलनों का सिलसिला बढ़ता चला जाता है, जो आगे जाकर आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) का रूप ले लेता है। उत्तराखंड के धराली में प्रारंभिक जांच में इस कारण का पता चला है।
वहीं हिमाचल के मंडी में हुई त्रासदी की वजह भी लगभग ऐसी ही है। समुद्र तल से लगभग 3,300 मीटर ऊंचाई पर स्थित शिकारी माता मंदिर के आसपास इतनी अधिक बारिश हुई कि फ्लैश फ्लड में कई गांव व बाजार बह गए। ऐसे में इस त्रासदी से बचने का फौरी तरीका यह है कि फ्लैश फ्लड यानी आकस्मिक बाढ़ के रास्तों की पहचान की जाए और इन रास्तों को खाली किया जाए।