सीमेंट-स्टील का जाल: 2050 तक दोगुणा हो सकता है निर्माण क्षेत्र का कार्बन पदचिह्न
एक नए अध्ययन के अनुसार, अगर निर्माण क्षेत्र की वर्तमान गति जारी रही, तो 2050 तक इसका कार्बन उत्सर्जन दोगुना हो सकता है।
सीमेंट और स्टील के बढ़ते उपयोग से जलवायु लक्ष्यों को खतरा है।
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इस रुझान के चलते पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है।
अध्ययन में सामने आया है कि 2022 में निर्माण क्षेत्र से होने वाले 55 फीसदी उत्सर्जन के लिए सीमेंट, ईंट और लोहा आदि धातुएं जिम्मेवार थी।
वहीं कांच, प्लास्टिक, केमिकल और जैव-आधारित सामग्रियों से करीब 6 फीसदी उत्सर्जन हुआ, और बाकी 37 फीसदी उत्सर्जन परिवहन, मशीनों, सेवाओं और साइट पर होने वाली गतिविधियों से जुड़ा था।
समय के साथ दुनिया भर में कंक्रीट के जंगल तेजी से पैर पसार रहे हैं। हालात यह हैं कि दुनिया में तेजी से होता निर्माण जलवायु लक्ष्यों के लिए भी चुनौती पैदा कर रहा है।
इस विषय पर किए एक नए अंतराष्ट्रीय अध्ययन ने चेताया है कि अगर निर्माण क्षेत्र की यह रफ्तार नहीं थमी, तो 2050 तक इसका कार्बन उत्सर्जन दोगुना हो जाएगा और दुनिया अपने ही बनाए सीमेंट और स्टील के जाल में फंस जाएगी। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि यदि ऐसा होता है तो पेरिस समझौते के तहत जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिशें पटरी से उतर सकती हैं।
अध्ययन में सामने आया है कि 2022 में निर्माण क्षेत्र से होने वाले 55 फीसदी उत्सर्जन के लिए सीमेंट, ईंट और लोहा आदि धातुएं जिम्मेवार थी। वहीं कांच, प्लास्टिक, केमिकल और जैव-आधारित सामग्रियों से करीब 6 फीसदी उत्सर्जन हुआ, और बाकी 37 फीसदी उत्सर्जन परिवहन, मशीनों, सेवाओं और साइट पर होने वाली गतिविधियों से जुड़ा था।
बीजिंग विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता चाओहुई ली के मुताबिक, अब दुनिया के कुल कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन के करीब एक-तिहाई के लिए निर्माण क्षेत्र जिम्मेवार है, जबकि 1995 में यह आंकड़ा महज 20 फीसदी था।
उन्होंने आशंका जताई है कि अगर यह रुझान जारी रहा तो 2040 तक यह क्षेत्र अकेले ही दो डिग्री सेल्सियस की सीमा के लिए तय कार्बन बजट को पार कर जाएगा।
अध्ययन में सामने आए चिंताजनक आंकड़े
जर्नल कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरमेंट में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पिछले आंकड़ों के आधार पर भविष्य के कई अनुमान भी तैयार किए हैं। इनमें पाया गया है कि अगर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा, तो सिर्फ निर्माण क्षेत्र का उत्सर्जन ही अगले दो दशकों में 1.5 और दो डिग्री सेल्सियस तापमान के लिए तय वार्षिक कार्बन बजट को पार कर जाएगा।
यह अध्ययन 1995 से 2022 के बीच 49 देशों और 163 सेक्टरों के आंकड़ों का सबसे व्यापक विश्लेषण है। इसके नतीजे साफ हैं अगर दुनिया ने निर्माण के तौर-तरीके नहीं बदले, तो यही क्षेत्र जलवायु संकट की नई ईंट बन जाएगा।
अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि 2023 से 2050 के बीच इमारतों, सड़कों आदि के निर्माण से 440 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित होगी। यह उत्सर्जन इतना ज्यादा है कि इससे धरती को डेढ़ डिग्री सेल्सियस गर्म होने से बचाने के लिए रखा 'कार्बन बजट' खत्म हो जाएगा।
मतलब कि यदि निर्माण ऐसा ही चलता रहा तो धरती डेढ़ डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म हो सकती है, जिससे मौसम और खराब हो जाएंगे। इसकी वजह से बहुत ज्यादा गर्मी, लू, बाढ़, सूखा जैसी आपदाएं बेहद आम हो जाएंगी।
विकसित से विकासशील देशों की ओर शिफ्ट
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि निर्माण क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन अब विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर शिफ्ट हो रहा है। 1995 में निर्माण क्षेत्र से होने वाले आधे उत्सर्जन के लिए समृद्ध देश जिम्मेदार थे, लेकिन 2022 तक वहां उत्सर्जन स्थिर हो गया।
वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों में निर्माण तेजी से बढ़ा है। इस दौरान खासकर सीमेंट, स्टील और बहुत ज्यादा उत्सर्जन करने वाले पदार्थों पर निर्भरता बढ़ी है। दूसरी ओर लकड़ी जैसी प्राकृतिक और कम-प्रदूषण करने वाली चीजों का इस्तेमाल कम हो गया है, यह धरती को बचाने का एक बड़ा मौका खो देना है।
ऐसे में अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक वैश्विक 'सामग्री क्रांति' की अपील की है, यानी ऐसी इमारतें बनाना, जिनमें पारंपरिक निर्माण सामग्री सीमेंट, ईंट और लोहा जैसी ज्यादा कार्बन छोड़ने वाली चीजों की जगह लकड़ी, बांस और रीसायकल मटेरियल्स जैसे कम उत्सर्जन करने वाले पदार्थों के साथ प्राकृतिक विकल्पों का इस्तेमाल हो।
अध्ययन के मुताबिक सिर्फ सीमेंट, ईंट और धातुएं ही निर्माण क्षेत्र के आधे से ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार हैं, इसलिए अब वक्त आ गया है कि दुनिया अपने निर्माण के तौर-तरीकों में बदलाव करे।
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता जुर्गन क्रॉप का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, निर्माण क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन को कम करने की चुनौतियां और समाधान हर देश में अलग-अलग हैं। लेकिन बड़ा बदलाव लाने के लिए हमें ईंट, सीमेंट और स्टील जैसी पारंपरिक सामग्रियों पर निर्भरता घटानी होगी और नए, बेहतर पर्यावरण अनुकूल विकल्पों की खोज करनी होगी।”
विकसित देश दिखाएं राह, विकासशील देशों को मिले सहयोग
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके लिए समृद्ध देशों को नवाचार, 'सर्कुलर डिजाइन' और सख्त नियमों के जरिए सतत निर्माण की राह दिखानी चाहिए। वहीं विकासशील देशों में जहां सबसे ज्यादा नई इमारतें बन रही हैं, उन्हें वित्तीय और तकनीकी मदद दी जानी चाहिए ताकि वे भी सतत निर्माण की राह पर आगे बढ़ सकें।
अध्ययन ने चेताया है कि अगर ऐसा बदलाव नहीं हुआ, तो अगले दो दशकों में सिर्फ निर्माण क्षेत्र ही धरती का पूरा डेढ़ डिग्री सेल्सियस वाला कार्बन बजट खत्म कर देगा।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएसए) के निदेशक हांस जोआखिम शेल्नह्यूबर का कहना है, “मानवता ने खुद को सीमेंट और स्टील की दीवार में कैद कर लिया है। अगर हमें पेरिस समझौते के लक्ष्य पूरे करने हैं, तो हमें उन सामग्रियों को ही फिर से गढ़ना होगा जिनसे हमारे शहर बने हैं।“
उनके अनुसार अगर दुनिया पुनः उपयोग, नवाचार और सहयोग पर आधारित एक वैश्विक ‘सामग्री क्रांति’ लाती है, तो निर्माण क्षेत्र को जलवायु समस्या से मजबूत, टिकाऊ भविष्य की नींव में बदला जा सकता है।“

