पेरिस समझौते के बाद से दुनिया में जीवाश्म ईंधन की वजह से हुए 80 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के तार 57 कंपनियों और उत्पादकों से जुड़े हैं। यह नामी-गिरामी कंपनियां दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन और सीमेंट उत्पादन से जुड़ी हैं।
इस उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार शीर्ष तीन कंपनियों में भारत की कोल इंडिया भी शामिल है, जो 2016 से 2022 के बीच वैश्विक स्तर पर हुए तीन फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार थी। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान कोल इंडिया ने 850.9 करोड़ टन सीओ2 के बराबर उत्सर्जन किया था।
यह जानकरी लंदन स्थित थिंक टैंक इन्फ्लुएंस मैप द्वारा जारी नए विश्लेषण में सामने आई है। इन्फ्लुएंस मैप द्वारा जारी कार्बन मेजर्स डेटाबेस के मुताबिक इन शीर्ष उत्सर्जकों में पहले स्थान पर सऊदी अरब की राष्ट्रीय तेल कंपनी सऊदी अरामको रही, जोकि राज्य स्वामित्व वाली एक पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस कंपनी है। सऊदी अरामको 2016 से 2022 के बीच वैश्विक स्तर पर हुए कुल सीओ2 उत्सर्जन के 4.8 फीसदी के लिए जिम्मेवार थी, जो करीब 1,325.6 करोड़ टन सीओ2 के बराबर दर्ज किया गया।
गैजप्रॉम इस मामले में दूसरे स्थान पर रही, जोकि रूस की राज्य स्वामित्व वाली एक अग्रणी ऊर्जा कंपनी है। गैजप्रॉम इस दौरान वैश्विक स्तर पर हुए 3.3 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार रही। जो 1,012.7 करोड़ टन सीओ2 के बराबर है।
गौरतलब है कि 2015 में वैश्विक स्तर पर बढ़ते उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए पेरिस समझौते को अपनाया गया था, जिसके तहत बढ़ते तापमान को औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था।
हालांकि उत्सर्जन में कटौती को लेकर किए इस समझौते के बावजूद कंपनियों द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन में वृद्धि जारी थी। विश्लेषण से पता है कि अधिकांश मेगा-उत्पादकों ने उस जलवायु समझौते के बाद के सात वर्षों में जीवाश्म ईंधन उत्पादन और संबंधित उत्सर्जन में पिछले सात वर्षों की तुलना में वृद्धि की है। आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि के दौरान 100 में से 58 कंपनियों के उत्सर्जन में वृद्धि दर्ज की गई।
यह वृद्धि एशिया में विशेष रूप से उल्लेखनीय रही, जहां मूल्यांकन की गई 15 में से 13 कंपनियां ने 2009 से 2015 की तुलना में 2016 से 2022 के बीच कहीं ज्यादा उत्सर्जन किया था।
भारत की भी चार कंपनियों को शीर्ष उत्सर्जकों में किया गया है शामिल
बता दें कि कार्बन मेजर्स दुनिया में तेल, गैस, कोयला और सीमेंट उत्पादन से जुड़ी सबसे बड़ी कंपनियों का एक डेटाबेस है जो, जीवाश्म ईंधन और सीमेंट उत्पादन और उत्पादों के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन को मापने में मदद करता है। इस डेटाबेस में 1854 से 2022 के बीच इन प्रमुख औद्योगिक उत्पादकों से जुड़े 142,100 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन को ट्रैक किया गया है।
इन जीवाश्म ईंधन और सीमेंट उत्पादकों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें पहला वर्ग उन कंपनियों का है जिन्हें निवेशक चलाते हैं, जबकि दूसरा वर्ग राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों का है। वहीं तीसरी वो कंपनियां है जो राज्य और देश दोनों के आधीन हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक जो 142,100 करोड़ मीट्रिक टन सीओ2 उत्सर्जन को ट्रैक किया गया है। उसके 31 फीसदी (44,000 करोड़ मीट्रिक टन) के लिए निवेशकों द्वारा चलाई जा रही कंपनियां जिम्मेवार हैं। इन कंपनियों में शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल और बीपी प्रमुख हैं। वहीं 33 फीसदी (46,500 करोड़ मीट्रिक टन) उत्सर्जन के तार राज्य के आधीन आने वाली कंपनियों से जुड़े हैं।
इन कंपनियों में सऊदी अरामको, गैजप्रॉम, कोल इंडिया और नेशनल ईरानी ऑयल कंपनी प्रमुख हैं। वहीं शेष 36 फीसदी (51,600 करोड़ टन) उत्सर्जन के लिए राष्ट्र और राज्य के आधीन कंपनियां जिम्मेवार हैं। इनमें चीन में होता कोयला उत्पादन और रूस प्रमुख हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 1854 से 2022 के बीच जीवाश्म ईंधन के चलते सीओ2 उत्सर्जन में योगदान देने वाले दुनिया के 122 प्रमुख तेल, गैस, कोयला और सीमेंट उत्पादकों की लिस्ट में भारत की चार कंपनियों को भी शामिल किया गया है।
इसमें कोल इंडिया को दसवें स्थान पर रखा गया है। जो इस दौरान हुए वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन में 1.49 फीसदी (2,939.1 करोड़ मीट्रिक टन) के लिए जिम्मेवार है। वहीं ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) को 46वें स्थान पर रखा गया है। ओएनजीसी ने इस दौरान वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन में 591.7 करोड़ मीट्रिक टन का योगदान दिया, जो कुल वैश्विक उत्सर्जन के 0.3 फीसदी के लिए जिम्मेवार है। इसी तरह सिंगरेनी कोलियरीज 61वें और अदाणी एंटरप्राइजेज 118वें पायदान पर है।
गौरतलब है कि एक तरफ जहां दुनिया अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है वहीं दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और उसके कारण होते उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है। इसका खुलासा इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने अपनी रिपोर्ट 'नेट जीरो बाय 2050' में भी किया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक जीवाश्म ईंधन और उससे होते उत्सर्जन को तत्काल सीमित करने से डेढ़ डिग्री सेल्सियस की उम्मीदों को जीवित रखा जा सकता है। इसके बावजूद 2022 में जीवाश्म ईंधन की वजह से होता उत्सर्जन बढ़कर 3,710 करोड़ टन पर पहुंच गया था, जो 2015 की तुलना में करीब पांच फीसदी अधिक है। इसी तरह वैश्विक स्तर पर कोयले की खपत 2015 से 2022 के बीच करीब आठ फीसदी बढ़ गई, जो 2022 में 830 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी।