20 वर्षों में 120 फीसदी बढ़ा स्टील और सीमेंट जैसी सामग्री के उत्पादन से होने वाला उत्सर्जन

1995 में सामग्री उत्पादन से 500 करोड़ मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ था, जोकि 2015 में बढ़कर 1,100 करोड़ मीट्रिक टन पर पहुंच गया था
20 वर्षों में 120 फीसदी बढ़ा स्टील और सीमेंट जैसी सामग्री के उत्पादन से होने वाला उत्सर्जन
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1995 से 2015 के बीच सामग्री उत्पादन के कारण होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 120 फीसदी का इजाफा हुआ है। शोध के अनुसार 1995 में जहां सामग्री उत्पादन से 500 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ था, वो 2015 में बढ़कर 1,100 करोड़ मीट्रिक टन पर पहुंच गया था। यदि सामग्री निर्माण की वैश्विक उत्सर्जन में हिस्सेदारी देखें तो वो इस अवधि में 15 से बढ़कर 23 फीसदी पर पहुंच गई है। शोध के अनुसार उत्सर्जन में हो रही इस वृद्धि के लिए काफी हद तक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं जैसे चीन जिम्मेवार हैं।

बढ़ती आबादी और इंसानी विकास के साथ-साथ दुनिया भर में कच्चे माल की जरुरत भी बढ़ती जा रही है। जिसका असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। स्टील और सीमेंट जैसी सामग्री के बढ़ते उत्पादन से जलवायु पर भी असर पड़ रहा है। हाल ही में नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि 1995 से 2015 के बीच जो सामग्री उत्पादन में वृद्धि हुए है, उसके चलते ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी दोगुना हो गया है। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है।

इस उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी लोहा और स्टील उत्पादन की थी। जिसके चलते करीब 360 करोड़ मीट्रिक मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ था, जोकि सामग्री उत्पादन से होने वाले कुल उत्सर्जन का करीब 31 फीसदी था। इसके बाद सीमेंट, चूना और प्लास्टर उत्पादन से होने वाला उत्सर्जन था जिससे करीब 24 फीसदी उत्सर्जन हुआ था।

वहीं रबर और प्लास्टिक से करीब 13 फीसदी उत्सर्जन, गैर लोहा युक्त धातुओं से 10 फीसदी, गैर-धात्विक खनिज उत्पादन से 14 फीसदी, जिसमे अकेले ग्लास से 4 फीसदी उतसर्जन हुआ था। वहीं यदि भूमि उपयोग सम्बन्धी उत्सर्जन को अलग कर दें तो वनों की कटाई, लुगदी, कागज और लकड़ी के उत्पादन से करीब 9 फीसदी (60 करोड़ मीट्रिक मीट्रिक टन) उत्सर्जन हुआ था। 

कौन है इस बढ़ते उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार

शोध के अनुसार 2015 में सामग्री उत्पादन से जो उत्सर्जन हुआ था उसका आधे से कुछ ज्यादा चीन में हुआ था। 1995 से 2015 के बीच चीन में सामग्री उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन में चार गुना वृद्धि हुई है जबकि भारत और ब्राजील में भी उत्सर्जन तीन गुना बढ़ गया है। वहीं इसके विपरीत विकसित देशों की बात करें तो कनाडा, यूरोपियन यूनियन, रूस और अमेरिका में सामग्री उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन में एक-चौथाई तक की गिरावट दर्ज की गई है।

हालांकि यह पूरा सच नहीं है। यह तो सही है कि अमेरिका, कनाडा, यूरोपियन यूनियन और रूस में सामग्री उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन में कमी आई है। पर वो अपनी जरुरत के लिए इस सामग्री को चीन जैसे देशों से आयात कर रहे हैं। जिस वजह से उनके देश के उत्सर्जन में कमी दिख रही है। पर यदि इस सामग्री की खपत के आधार पर उत्सर्जन को देखें तो केवल रूस के ही उत्सर्जन में पर्याप्त कमी आई है, जबकि यूरोपियन यूनियन के उत्सर्जन में भी 4 फीसदी की गिरावट देखी गई है। वहीं इसके विपरीत कनाडा के उत्सर्जन में 30 फीसदी और अमेरिका के उत्सर्जन में 9 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।

केवल निर्यात ही नहीं इन भारत और चीन जैसे देशों में तेजी से होता शहरीकरण भी इसके लिए जिम्मेवार है। जिस तरह से इन देशों में घरों, बिल्डिंगों, रोड, ब्रिज, पोर्ट और फैक्ट्रियों का निर्माण हो रहा है और कंक्रीट का जंगल बढ़ रहा है, वो भी काफी हद तक इस बढ़ते उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। 

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