पहाड़ों पर खतरे की घंटी: ग्लोबल वार्मिंग के सामने कमजोर साबित हो रहे पहाड़ी पौधे

अध्ययन से पता चला है कि जलवायु में जिस तेजी से बदलाव आ रहा है पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़-पौधे उनके साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं
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हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला दुर्लभ और पवित्र फूल ब्रह्म कमल; फोटो: आईस्टॉक
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ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे के बीच वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने चेताया है कि पहाड़ों में पाए जाने वाले कई पेड़-पौधे बढ़ते तापमान के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे। ऐसे में यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो उनके लिए अस्तित्व को बचाए रखना कठिन हो जाएगा।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, डेविडसन कॉलेज और रॉकी माउंटेन बायोलॉजिकल लैब के वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष नौ साल लंबे अध्ययन के बाद निकाला है। इस अध्ययन के निष्कर्ष अंतराष्ट्रीय जर्नल 'साइंस' में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने "ड्रमंड्स रॉकक्रेस" नामक पौधे पर ध्यान केंद्रित किया है। यह फूलों वाला पौधा उत्तरी अमेरिका के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है। अपने अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने इस पौधे के एक लाख से अधिक नमूने अलग-अलग ऊंचाइयों पर लगाए।

इस दौरान कुछ क्षेत्रों में बर्फ की मात्रा में बदलाव करके कृत्रिम रूप से तापमान बढ़ाया गया और यह समझने का प्रयास किया गया कि ये पौधे बढ़ती गर्मी का सामना कैसे करते हैं।

अपने अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने यह समझने के लिए अलग-अलग जगहों के पौधों का जेनेटिक (आनुवंशिक) विश्लेषण भी किया कि क्या बढ़ते तापमान से बचने के लिए उनमें कोई बदलाव हो रहा है।

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हालांकि अध्ययन के नतीजे निराशाजनक रहे। पौधे न तो खुद को गर्म तापमान के अनुसार बदल पाए और न ही पहाड़ की ऊंचाई पर तेजी से फैल पाए, ताकि वे गर्मी से बच सके।

वैज्ञानिकों के मुताबिक भले ही यह अध्ययन एक ही प्रजाति पर केंद्रित था, लेकिन इसके नतीजे दूसरे पहाड़ी पौधों के लिए भी चेतावनी हैं—खासकर उन पौधों के लिए जो छोटे, सीमित क्षेत्रों में उगते हैं।

पिछले शोधों से भी पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के साथ पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों को उसके अनुकूल होने में कठिनाई होगी और आशंका है कि वे प्रजातियां समय के साथ विलुप्त हो जाएंगी।

इस बारे में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय की संरक्षण वैज्ञानिक सैली ऐटकन ने अपने काम की रुपरेखा प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि कुछ प्रजातियों को शायद इंसानों की मदद से बचाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए समर्पित प्रयासों की जरूरत होगी।

यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पेड़-पौधों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन पेड़ों की कई प्रजातियों को उनके भौगोलिक क्षेत्र के ठंडे और नम क्षेत्रों की ओर धकेल रहा है। रिसर्च में सामने आया है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है, उसके साथ-साथ पेड़ों की कई प्रजातियां ज्यादा अनुकूल क्षेत्रों की ओर रुख कर सकती हैं।

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इसी तरह चीन की साउदर्न यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि पर्वतीय ट्री लाइन औसतन हर साल चार फीट (1.2 मीटर) की दर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों की ओर शिफ्ट हो रही हैं।

मतलब कि ऊंचे पहाड़ों पर भी पौधे जलवायु परिवर्तन की मार से सुरक्षित नहीं हैं। बढ़ते तापमान के साथ पहाड़ों पर मौजूद पेड़ अब पहले से अधिक ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रहे हैं।

यदि हिमालय की बात करें तो वो जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील है। दुनिया के अन्य पर्वत श्रृंखलाओं की तुलना में यहां ट्री लाइन कुछ ज्यादा 3400-4900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि पूर्वी हिमालय में खासकर सर्दियों और वसंत के दौरान तापमान बढ़ रहा है। इसका एक परिणाम यह है कि वहां वृक्षरेखा अधिक ऊंचाई की ओर स्थानांतरित हो रही है। यह परिवर्तन बुग्याल यानी अल्पाइन घास के मैदानों को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि यदि वृक्षरेखा पहाड़ के ऊपर चली जाती है, तो बुग्यालों का अस्तित्व खतरा में पड़ सकता है।

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हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र पर की गई एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि बढ़ते तापमान के साथ देवदार के पेड़ों में 38 फीसदी तक की गिरावट आई है। अध्ययन के मुताबिक हिंदुकुश हिमालय वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। शोधकर्तों के मुताबिक मानसूनी क्षेत्र में उगने वाले हिमालय देवदार में बढ़ते तापमान के साथ गिरावट आ जाएगी और ऐसा भविष्य में गर्म होती सर्दियों और बसंत में बदलती जलवायु के कारण होगा।

देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों से भारत में भी पेड़ पौधे सुरक्षित नहीं हैं। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक दिसंबर के तीसरे सप्ताह से ही तेलंगाना और ओडिशा में आम के पेड़ों में बौरों का आना शुरू हो गया था, जो इसके सामान्य समय से कम से कम एक महीना पहले है।

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विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए बेमौसम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्म होती सर्दियों जिम्मेवार हो सकती है। देखा जाए तो बेमौसम बारिश और गर्म होती सर्दियां दोनों ही जलवायु में आते बदलावों के निशान हैं।

ऐसा ही कुछ सेबों के मामले में भी देखने को मिल रहा है। पहाड़ों पर बर्फबारी के घटने से इसकी पैदावार पर असर पड़ रहा है। 

क्लाइमेट सेंट्रल ने अपने एक अध्ययन में उत्तराखंड में मौसम के बदलते पैटर्न के बागवानी पर पड़ते प्रभावों को उजागर किया है। अध्ययन के मुताबिक गर्म होता मौसम फलों की कई प्रजातियों के उत्पादन में आती गिरावट की वजह बन रहा है। इसकी वजह से बागवान उष्णकटिबंधीय फलों की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि ये फल बदलती जलवायु परिस्थितियों का सामना करने में कहीं ज्यादा सक्षम हैं।

देखा जाए तो यह उदाहरण इस बात का पुख्ता सबूत हैं कि पहाड़ों पर भी पेड़ पौधे जलवायु में आते बदलावों की मार से सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में यदि समय रहते इनपर ध्यान न दिया गया तो भविष्य में पहाड़ी पौधों की कई प्रजातियां दुनिया से ओझल हो जाएंगी।

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