जहरीली हवा और गर्मी के मेल ने भारत में तीन दशकों में निगली 142,765 जिंदगियां: स्टडी

स्टडी से पता चला है कि गर्मी और वायु प्रदूषण का मेल इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। दुनिया में इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ रहा है
गर्मी, प्रदूषण के बीच यात्रा करते भारतीय; फोटो: आईस्टॉक
गर्मी, प्रदूषण के बीच यात्रा करते भारतीय; फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं कि जहरीली हवा और गर्मी के मेल ने पिछले तीन दशकों के दौरान भारत में करीब 142,765 जिंदगियां निगली हैं। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन मौजूदा समय की दो ऐसी कड़वी सच्चाई हैं, जिन्हें चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता। यह दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं।

हवा में मौजूद प्रदूषण के बेहद महीन कण, जिन्हें पीएम2.5 कहा जाता है, सांस, दिल और दिमाग से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ा देते हैं। इनकी वजह से याददाश्त कमजोर होने जैसी दिक्कतों भी पैदा हो सकती हैं।

वहीं लू की घटनाएं जो जलवायु परिवर्तन की वजह से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। यह हीटस्ट्रोक की वजह बन सकती है। साथ ही इनकी वजह से अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों की स्थिति और बिगड़ सकती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब गर्मी और प्रदूषण का कहर एक साथ शरीर पर टूटता है तो वो किस कदर खतरनाक हो सकता है।

इस बारे में की एक नई स्टडी से पता चला है कि इन दोनों का मेल इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है, जिसका सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ रहा है।

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गौरतलब है कि अब तक गर्मी और प्रदूषण के संयुक्त असर पर की गई ज्यादातर रिसर्च शहरों या स्थानीय इलाकों पर केंद्रित थीं, ऐसे में वैश्विक रूप से इसकी सही तस्वीर सामने नहीं आती थी।

इस गैप को भरने के लिए अपने नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 1990 से 2019 के बीच दुनियाभर में वैश्विक जलवायु और प्रदूषण (पीएम2.5) के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इस अध्ययन का मकसद यह समझना था कि प्रदूषण और गर्मी के मले से असमय होने वाली मौतों पर क्या प्रभाव पड़ा है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जियोहेल्थ में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन में क्या कुछ आया है सामने

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट से मिले तापमान और प्रदूषण (पीएम2.5) के आंकड़ों का उपयोग किया। इसके लिए MERRA-2 डेटा सेट का उपयोग किया गया, जिसमें हर घंटे के हिसाब से पीएम2.5 प्रदूषण (जैसे धूल, समुद्री नमक, ब्लैक कार्बन, ऑर्गेनिक कार्बन और सल्फेट कण) की जानकारी शामिल थी। वहीं, हर दिन अधिकतम तापमान के आंकड़े ईआरएसैटेलाइट सिस्टम से लिए गए, जोकि यूरोप की मौसम एजेंसी का आधुनिक विश्लेषण सिस्टम है।

साथ ही स्वास्थ्य संबंधी पिछले शोधों का विश्लेषण कर अनुमान लगाया कि गर्मी और प्रदूषण के समय में पीएम2.5 की वजह से कितने लोगों को असमय अपनी जान गंवानी पड़ी है।

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अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि पिछले तीन दशकों में न केवल गर्मी और प्रदूषण की घटनाएं पहले से अधिक बार हुई हैं। साथ ही इनके दौरान पीएम2.5 का स्तर भी काफी बढ़ा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 1990 से 2019 के बीच गर्मी और प्रदूषण भरे दौर में पीएम2.5 के संपर्क में आने से 694,440 लोगों की असमय मृत्यु हुई है। चिंता की बात है कि इनमें से 80 फीसदी मौतें ग्लोबल साउथ के देशों में हुईं थी।

आंकड़े दर्शाते हैं कि गर्मी और प्रदूषण से जुड़ी इन मौतों के मामले में भारत सबसे आगे रहा, जहां करीब 1.42 लाख लोगों को इसकी वजह से अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। मरने वालों का यह आंकड़ा चीन और नाइजीरिया में इस वजह से हुई कुल मौतों से भी ज्यादा है।

उत्तर के अमीर देशों में अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित रहा, जहां गर्मी और प्रदूषण के खतरनाक मेल ने करीब 32,227 लोगों की जान ली है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि उत्तर के देशों में गर्मी और प्रदूषण के एपिसोड (एचपीई) के दौरान पीएम2.5 के स्तर में लगातार वृद्धि हुई है। यह तब है जब वहां पिछले कई वर्षों से उत्सर्जन को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हैरानी की बात है कि 2010 से ग्लोबल नॉर्थ में ऐसे खतरनाक एपिसोड की आवृत्ति दक्षिण के देशों से भी ज्यादा हो गई है।

अध्ययन में यह साफ तौर पर सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण का संयुक्त असर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। ऐसे में यह अध्ययन दुनियाभर के देशों के बीच सहयोग और सख्त जलवायु नीतियों को लागू करने की जरूरत को उजागर करता है ताकि पर्यावरणीय असमानताओं को दूर किया जा सके।

भारत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता यह खतरा

स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्मेंटल मेडिसिन द्वारा किए एक अन्य अध्ययन में भी सामने आया है कि भीषण गर्मी और वायु प्रदूषण का मेल भारत में मृत्यु के जोखिम को नाटकीय रूप से बढ़ा सकता है। मतलब कि भारतीय शहरों में उन दिनों में मृत्यु का जोखिम तेजी से बढ़ जाता है, जब वायु प्रदूषण और भीषण गर्मी दोनों ही चरम पर होते हैं।

करीब 36 लाख मौतों का विश्लेषण करके इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि जब तापमान बेहद अधिक था, तो प्रदूषण के महीन कणों (पीएम2.5) और मौतों के बीच सम्बन्ध बहुत मजबूत था।

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इस रिसर्च से पता चला है कि अत्यधिक गर्म दिनों में, यदि पीएम2.5 का स्तर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बढ़ता है, तो इसके साथ ही रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा भी 4.6 फीसदी बढ़ जाता है। यह सामान्य गर्म दिनों में देखी गई 0.8 फीसदी की वृद्धि से कहीं अधिक है।

वहीं क्लाईमेट ट्रेंड्स ने अपने अध्ययन में पाया कि दिल्ली, पटना, लखनऊ. मुंबई और कोलकाता में बढ़े तापमान के कारण पीएम 2.5 में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।

अध्ययन में कहा गया है कि अधिक तापमान का सीधा असर पीएम 2.5 पर पड़ता है और इस स्थिति में रासायनिक प्रतिक्रिया और बढ़े हुए वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स (वीओसी) के कारण प्रदूषकों का निर्माण होता है, जो हवा को दूषित कर खतरनाक बनाते हैं। मतलब की कहीं न कहीं इनका मेल स्वास्थ्य के लिए कहीं घातक साबित हो रहा है।

भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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