सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: एक हफ्ते में बताएं कैसे रोका जाएगा दिल्ली में वायु प्रदूषण?

सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वो हलफनामा दाखिल कर बताए कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता को और खराब या ‘गंभीर’ होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: एक हफ्ते में बताएं कैसे रोका जाएगा दिल्ली में वायु प्रदूषण?
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सारांश
  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर सख्त रुख अपनाते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और सीपीसीबी को एक हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

  • अदालत ने दिवाली के दौरान वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों के बंद रहने पर चिंता जताई है और प्रदूषण रोकने के उपायों की जानकारी मांगी है।

  • वहीं एक अन्य मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने काठा नदी में बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता जताई है और संबंधित अधिकारियों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

  • आरोप है कि नदी में लगातार बिना उपचार के गंदा पानी और औद्योगिक अपशिष्ट छोड़ा जा रहा है।

  • साथ ही, नदी के किनारों पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे भी तेजी से बढ़ रहे हैं। याचिकाकर्ता ने अपने दावों के समर्थन में तस्वीरें भी पेश की हैं।

दिल्ली-एनसीआर की बिगड़ती हवा पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। अदालत ने तीन नवंबर 2025 को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया है कि वे एक हफ्ते के भीतर हलफनामा दाखिल करें।

इस हलफनामे में यह बताया जाए कि हवा की गुणवत्ता को और खराब या ‘गंभीर’ होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने यह आदेश तब दिया, जब अदालत को बताया गया कि दिवाली के दौरान राजधानी के अधिकांश वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र बंद रहे। गौरतलब है कि ऐसे समय में जब प्रदूषण अपने चरम पर होता है, निगरानी स्टेशनों का बंद रहना बेहद चिंताजनक है।

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काठा नदी में प्रदूषण और अवैध कब्जों पर एनजीटी की नजर, कई सरकारी एजेंसियों को भेजा नोटिस

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 3 नवंबर 2025 को काठा नदी में बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता जताई है और संबंधित अधिकारियों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि काठा, यमुना नदी की एक सहायक धारा है।

इस मामले में ट्रिब्यूनल ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा, केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उत्तर प्रदेश भूजल विभाग सहित कई संस्थाओं को नोटिस जारी किया है। इस मामले में अगली सुनवाई तीन फरवरी 2026 को होगी।

याचिकाकर्ता अमित कुमार ने अदालत को जानकारी दी कि काठा नदी सहारनपुर जिले से निकलती है, और शामली से होकर बहती हुई यमुना नदी में मिल जाती है। उनका आरोप है कि नदी में लगातार बिना उपचार के गंदा पानी और औद्योगिक अपशिष्ट छोड़ा जा रहा है।

साथ ही, नदी के किनारों पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे भी तेजी से बढ़ रहे हैं। याचिकाकर्ता ने अपने दावों के समर्थन में तस्वीरें भी पेश की हैं।

अरावली वन भूमि पर खनन संबंधी विवाद? मंत्रालय ने कहा न मंजूरी दी, न कोई प्रस्ताव मिला

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को बताया है कि हरियाणा सरकार से अरावली की वन भूमि को गैर-वन कार्यों के लिए उपयोग करने संबंधी कोई प्रस्ताव मंत्रालय को प्राप्त नहीं हुआ है, न ही ऐसी किसी योजना को मंत्रालय से मंजूरी दी गई है।

साथ ही पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी 30 अक्टूबर 2025 को सबमिट रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत वन सम्बन्धी गतिविधियों को छोड़कर किसी भी अन्य गतिविधि के लिए पहले से अनुमति लेना अनिवार्य है।

मामले की सच्चाई और तथ्यों की पुष्टि के लिए मंत्रालय ने हरियाणा सरकार से कहा है कि वह इस विषय में विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट और दस्तावेजी सबूतों सहित जवाब दाखिल करे ताकि यह पता चल सके कि कहीं वन अधिनियम, 1980 का उल्लंघन तो नहीं हुआ है। फिलहाल राज्य सरकार की रिपोर्ट का इंतजार है।

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गौरतलब है कि इस मामले में 15 सितंबर 2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर के आधार पर ट्रिब्यूनल ने स्वतः संज्ञान लिया है।

इस खबर के मुताबिक 20 जुलाई 2023 को हरियाणा वन विभाग ने अरावली क्षेत्र में राजावास गांव की 506 एकड़ भूमि को वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के तहत संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया था।

इसी दिन, खनन विभाग ने इस भूमि के 119.5 एकड़ हिस्से की ई-नीलामी की, जिसमें एक निजी कंपनी ने बोली जीत ली और 4 अगस्त 2023 को उसे 10 साल की लीज दे दी गई ताकि वह पत्थर खनन और तीन क्रशर यूनिट चला सके, जिनकी वार्षिक क्षमता 1.4 लाख मीट्रिक टन तय की गई थी।

खबर में यह भी कहा गया है कि वन विभाग ने इस परियोजना के लिए कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी नहीं किया है।

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