बायोमास और जीवाश्म ईंधन का अधूरा दहन दे रहा है दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण में योगदान

दिल्ली-एनसीआर में 3,256 पेट्रोल पंपों पर वाष्प रिकवरी सिस्टम (वीआरएस) लगाए गए हैं, ताकि वाष्प उत्सर्जन को कम किया जा सके
फसल अवशेषों को जलाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से भी प्रदूषण बढ़ता है; फोटो: आईस्टॉक
फसल अवशेषों को जलाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से भी प्रदूषण बढ़ता है; फोटो: आईस्टॉक
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पंजाब, हरियाणा में पराली पर आधारित आठ पेलेटाइजेशन या टॉरफिकेशन प्लांट चल रहे हैं और इन सभी को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से एकमुश्त वित्तीय सहायता मिली है। सीपीसीबी ने इन्हें वित्तीय सहायता देने के लिए दिशा-निर्देश भी तैयार किए हैं, ताकि आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी समस्याओं को दूर किया जा सके।

उम्मीद है कि इससे उत्तरी क्षेत्रों में खुले में जलाई जा रही पराली की समस्या को भी कम करने में मदद मिलेगी। सीपीसीबी ने 18 सितंबर, 2024 को कोर्ट में सबमिट अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया है।

रिपोर्ट में सीपीसीबी ने प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों पर की गई कार्रवाई की जानकारी दी है। अदालत को दी गई जानकारी से पता चला है कि दिल्ली-एनसीआर में 3,256 पेट्रोल पंपों पर वाष्प रिकवरी सिस्टम (वीआरएस) लगाए गए हैं, ताकि वाष्प उत्सर्जन को कम किया जा सके और सेकेंडरी कार्बनिक एरोसोल को बनने से रोका जा सके। इसके अलावा, दिल्ली-एनसीआर में 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों और 10 साल से पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।

वहीं बायोमास जलाने पर रोकथाम के लिए, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली में फसल अवशेषों के प्रबंधन से जुड़ी मशीनें खरीदने और कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित करने के लिए सब्सिडी दे रहा है। इस योजना में मशीनरी और उपकरणों की लागत का कुछ हिस्सा कवर किया जाता है, ताकि फसल अवशेष या पराली की आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने के लिए वित्तीय सहायता दी जा सके।

सीपीसीबी की इस रिपोर्ट के मुताबिक वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में मौजूद थर्मल पावर प्लांट को कोयले के साथ-साथ पांच से दस फीसदी बायोमास जलाने का भी निर्देश दिया है। सीपीसीबी की इस रिपोर्ट के अनुसार, एनसीआर में कैप्टिव पावर प्लांट वाली औद्योगिक इकाइयों को भी ऐसा ही करना होगा।

सारंडा जंगल में चल रहा अवैध पत्थर खनन, एनजीटी ने झारखण्ड सरकार से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 18 सितंबर, 2024 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) से एक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला झारखंड के सारंडा जंगल में पत्थरों के अवैध खनन की शिकायत से जुड़ा है। इस मामले में अदालत ने झारखंड सरकार के साथ-साथ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।

इस बारे में 31 मई, 2024 को लगातार में एक खबर प्रकाशित हुई थी, जिसके आधार पर अदालत ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है। इस खबर में झारखंड के सारंडा जंगल में चल रहे पत्थरों के अवैध खनन का जिक्र किया गया है।

खबर के मुताबिक सारंडा जंगल में, विशेष रूप से उसरुइया और पोंगा गांवों के बीच, दुलई नदी पर एक पुल और गार्ड दीवार के निर्माण के लिए पत्थरों का अवैध खनन चल रहा है। यह भी पता चला है कि सारंडा वन विभाग ने छापेमारी कर अवैध खनन किए गए पत्थरों से लदे एक ट्रैक्टर को जब्त कर लिया है।

टीम को जंगल में अवैध पत्थरों का एक बड़ा भंडार भी मिला है। खबर में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि पलामू के एक ठेकेदार पर जंगल से अवैध रूप से पत्थर लाने का आरोप है, जिससे ग्रामीणों में चिंता बढ़ गई है। ठेकेदार पर हतनाबुरू-पोंगा सड़क पर एक सुरक्षा दीवार को बनाने के लिए अवैध रूप से खनन किए गए पत्थरों का उपयोग करने का भी आरोप है।

कथित तौर पर वन विभाग ने ठेकेदार के प्रभाव के चलते ग्रामीणों की शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया। यह भी आरोप है कि इस अवैध गतिविधि से न केवल वन के पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ा है। साथ ही पुल निर्माण परियोजना में भी देरी हुई है। इतना ही नहीं इसने भ्रष्टाचार को भी जन्म दिया है।

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