भारत में आवाजाही: अहमदाबाद में आने-जाने का साधन न होने से रोजगार गंवा रहे हैं लोग

साबरमती रिवर फ्रंट से बेदखल लोगों को 15 किलोमीटर दूर बसा दिया गया, जहां से शहर आने के लिए लोगों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है
रोजगार प्रभावित होने के कारण बबली के पति रमेश ने आत्महत्या कर ली। फोटो: राजू सजवान
रोजगार प्रभावित होने के कारण बबली के पति रमेश ने आत्महत्या कर ली। फोटो: राजू सजवान
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“मैं और मेरे पति सब्जी बेचने का काम करते थे। सुबह चार बजे उठ कर पास की सब्जी मंडी से ताजा सब्जी लेकर आसपास की कॉलोनियों में रेहड़ी लेकर निकल जाते थे। दोपहर तक सब्जी बेचकर घर पहुंच जाते। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन फिर एक दिन वहां से उजाड़ दिया गया। यह बात साल 2010 की है। हमारी बस्ती साबरमती नदी के किनारे थी। हमें बताया गया कि यहां रिवर फ्रंट बनेगा, इसलिए हमें मात्र पांच किलोमीटर के दायरे में पक्के मकान दिए जाएंगे। उस दिन लगा कि जीवन और बेहतर होने वाला है। लेकिन जब यहां (ओडाव ) मकान मिले तो सपना टूट गया। हमें शहर से 15 किलोमीटर दूर फेंक दिया गया। लगभग 15 साल बीतने के बाद भी यहां आवाजाही के साधन नहीं हैं। हमें कमाने तो वहीं जाना था। पहले-पहल पति-पत्नी दोनों तीन बजे उठ जाते और पैदल लगभग डेढ़ किलोमीटर चल कर हाइवे पर पहुंचते। वहां से जब कोई ऑटो रिक्शा मिलता तो जमालपुर सब्जी मंडी पहुंचते। सब्जी मंडी से सब्जी लेते ओर फिर बेचने निकल जाते। लेकिन साधन न मिलने के कारण अकसर लेट हो जाते तो मंडी में सब्जी खत्म हो जाती, तब खाली हाथ वापस लौटना पड़ता, क्योंकि सब्जी मंडी में चार बजे के आसपास ही सारी सब्जी बिक जाती है। कभी-कभार तो सुबह ऑटो रिक्शा न मिलने के कारण मंडी जाने का इरादा ही छोड़ना पड़ता। उधर, बच्चों का स्कूल भी छूट गया। दिन भर बच्चे घर में रहते तो उनकी देखरेख के लिए मैंने काम छोड़ दिया। काम ढंग से नहीं चलने के कारण पति पर कर्जा बढ़ने लगा। पति परेशान रहने लगे। इसी परेशानी में लगभग चार साल पहले पति ने फिनयाल पीकर जान दे दी।” 

लगभग 50 वर्षीय बबली की यह कहानी बताती है कि कार्यस्थल से घर की दूरी कितनी दुखदायी हो सकती है?  बबली अपने पति रमेश सोलंकी के साथ अहमदाबाद में साबरमती के निकट बसी कॉलोनी में रहती थी। साबरमती के सौंदर्यीकरण के लिए रिवर फ्रंट बनाने का काम शुरू हुआ तो उन्हें बेसिक सर्विसज ऑफ अर्बन पुअर योजना के तहत ओडाब में बने चार मंजिला फ्लैटों में मकान दे दिया गया, लेकिन आवाजाही का इंतजाम नहीं किया गया। 

पति की मौत के बाद बबली एक अदालत में जमानत देने का काम करती हैं। हालांकि वहां से आना-जाना भी कम पीड़ादायक नहीं है। बबली के साथ काम करने वाली ललिता बेन बताती हैं कि अदालत लगभग 17 किलोमीटर दूर है। वे तीन ऑटो रिक्शा बदल कर वहां पहुंचती हैं। इस पर उनका एक तरफ का 70 रुपए खर्च हो जाता है। साथ ही, वहां तक पहुंचने में डेढ़ से दो घंटे लग जाते हैं।हैं। उनकी पूरी कोशिश होती है कि शाम होने तक घर पहुंच जाएं, क्योंकि रात आठ बजे के बाद वहां आने का कोई साधन नहीं मिलता। 

सुनील चौहान को मजबूरन दोपहिया खरीदना पड़ा। फोटो: राजू सजवान
सुनील चौहान को मजबूरन दोपहिया खरीदना पड़ा। फोटो: राजू सजवान

कॉलोनी के युवा सुनील चव्हाण बताते हैं कि यहां ज्यादातर सब्जी का काम करने वाले लोग आए थे, लेकिन जब आने-जाने की दिक्कत होने लगी तो लोगों ने काम बदलना शुरू कर दिया या किसी तरह मासिक किस्त (ईएमआई) पर दोपहिया वाहन खरीद लिया। ऐसे में उनकी पहली चिंता रोजाना पेट्रोल डलाना होती है। वह बताते हैं कि यहां एएमटीएस (अहमदाबाद म्युनिस्पिल ट्रांसपोर्ट सर्विस) की सिटी बस सुबह व शाम ही आती है। वे यहीं से भर जाती है और बस का समय भी निर्धारित नहीं है, इसलिए उस बस का कोई फायदा नहीं है। चव्हाल कहते हैं कि उनके इलाके में बसों की संख्या और फेरे बढ़ाए जाने चाहिए, जिससे आवागमन में सहूलियत होगी। 

देश के सबसे बड़े दस शहरों में शुमार अहमदाबाद के लिए एएमटीएस की बसें बहुत मायने रखती हैं। एएमटीएस का इतिहास देश की राजधानी दिल्ली की दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) से भी पुराना है। अहमदाबाद म्युनिसिपल ट्रांसपोर्ट सर्विस (एएमटीएस) की स्थापना 1940 में की गई थी, जिसका उद्देश्य अहमदाबाद में सस्ती सार्वजनिक परिवहन सेवा प्रदान करना था। शहर की बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक विकास के कारण एक विशेष समिति का गठन किया गया, जिसे ऋण प्राप्त करने और बस रूट्स के निर्धारण का काम सौंपा गया। 

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इसका मुख्य उद्देश्य शहर में भीड़-भाड़ को कम करना और बाहरी इलाकों जैसे नारोदा, वासना और साबरमती को परिवहन सुविधा प्रदान करना था। लेकिन इस काम में देरी के बावजूद 1946 में एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसके तहत 25 लाख रुपए का ऋण और बसों का न्यूनतम किराया तय किया गया। 1949 तक, सार्वजनिक समर्थन और विशेषज्ञ मार्गदर्शन से सरकार पर दबाव बनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप एएमटीएस को अहमदाबाद में प्रमुख सार्वजनिक परिवहन सेवा के रूप में स्थापित किया गया।

एएमटीएस की बसों पर लगभग चार लाख लोग सफर करते हैं। फोटो: राजू सजवान
एएमटीएस की बसों पर लगभग चार लाख लोग सफर करते हैं। फोटो: राजू सजवान

इसे अब अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा संचालित किया जाता है। यह भारत की सबसे बड़ी नगरपालिका परिवहन सेवाओं में से एक है। अहमदाबाद नगर निगम के बजट डॉक्यूमेंट 2023-24 में एएमटीएस बसों की संख्या 800 से अधिक है। जिनमें औसतन चार लाख से अधिक लोग सफर करते हैं।

शहर में एक बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) भी है, जिसे 'जनमार्ग' कहा जाता है, जो 2009 से अहमदाबाद जनमार्ग लिमिटेड द्वारा संचालित किया जा रहा है, जो कंपनी अधिनियम के तहत गठित एक विशेष उद्देश्य वाली कंपनी (एसपीवी) है। 

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