भारत में आवाजाही: ऋषिकेश, योग नगरी नहीं जाम की नगरी बोलिए!

ऋषिकेश में सिटी बस जैसी कोई व्यवस्था नहीं है, और लाखों पर्यटकों का आवागमन सिर्फ ऑटो, विक्रम या निजी वाहनों पर निर्भर है
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उत्तराखंड की तीर्थ नगरी ऋषिकेश में एक जगह से दूसरी जगह जाना बेहद परेशानी भरा है। फोटो: वर्षा सिंह
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गंगा किनारे और हिमालय की तलहटी में बसा ऋषिकेश अपनी 'योग की वैश्विक राजधानी' की पहचान और रोमांचक पर्यटन के लिए दुनिया भर में मशहूर है। हर साल यहां स्थानीय आबादी से तीन गुना ज़्यादा पर्यटक आते हैं, जिससे इस छोटे पहाड़ी शहर की हवा, सड़कें और सार्वजनिक सुविधाएं, खासकर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। शहर में सिटी बस जैसी कोई व्यवस्था नहीं है, और लाखों पर्यटकों का आवागमन सिर्फ ऑटो, विक्रम या निजी वाहनों पर निर्भर है।

ऋषिकेश के निवासी पवन शर्मा कहते हैं, “शनिवार और रविवार को तो हम ऋषिकेशवासियों ने घरों से निकलना छोड़ दिया है। हाल ही में मुझे जरूरी काम से नटराज चौक से तपोवन जाना था। करीब 5 किलोमीटर की दूरी तय करने में साढ़े तीन घंटे लग गए। एक वक़्त तो ऐसा लग रहा था कि गाड़ी से ही कूद जाऊं। पीछे से लगातार ट्रैफिक आ रहा था। आगे बढ़ना संभव नहीं था।”

इस समय चारधाम यात्रा चल रही है। गर्मियों की वजह से राफ्टिंग का सीजन भी जोरों पर हैं। दिल्ली, देहरादून से आने वाले ट्रैफिक और जाम से निपटने के लिए पुलिस ने वैकल्पिक लंबा रूट भी निर्धारित किया है, जिससे रोज के दिनों में शहर के भीतर फिर भी कुछ राहत रहती है। वरना शहर की संकरी सड़कों पर कई बार ट्रैफिक हिलता ही नहीं।

आबादी तीन लाख, वाहन दो लाख, पर्यटक बेहिसाब

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ऋषिकेश तहसील की आबादी 2.60 लाख थी, जो 2025 तक बढ़कर लगभग 3 लाख होने का अनुमान है। वहीं, पर्यटन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि ऋषिकेश में हर साल स्थानीय आबादी से कई गुना अधिक पर्यटक आते हैं। वर्ष 2021 में कोविड के बावजूद करीब 3 लाख पर्यटक पहुंचे, जो स्थानीय आबादी के बराबर थे। लेकिन इसके बाद संख्या तेजी से बढ़ी। वर्ष 2022 में 7.6 लाख, 2023 में 10.4 लाख और 2024 में 9.7 लाख पर्यटक आए। यानी हाल के वर्षों में ऋषिकेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या यहां की स्थानीय आबादी से तीन गुना से भी अधिक हो चुकी है।

ऋषिकेश में कोई जगह ऐसी नहीं, जहां जाम न लगे। फोटो: वर्षा सिंह
ऋषिकेश में कोई जगह ऐसी नहीं, जहां जाम न लगे। फोटो: वर्षा सिंह

गंगा नदी के किनारे बसे छोटे से पहाड़ी शहर की सड़कों पर आबादी और पर्यटकों के साथ वाहनों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। हालांकि सार्वजनिक परिवहन की स्थिति बहुत अच्छी नहीं। परिवहन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मई-2025 तक ऋषिकेश में 2 लाख से अधिक वाहन रजिस्टर्ड हैं।

शहर के भीतर आवाजाही के लिए एक भी सिटी बस नहीं है। 3 से 13 सीटों वाले ऑटो, विक्रम या मैक्सी कैब पर ही यातायात का सारा दारोमदार है। ऋषिकेश में सार्वजनिक परिवहन के लिए 8,246 वाहन रजिस्टर्ड हैं। इनमें 1483 ई-रिक्शा, 2,997 मैक्सी कैब, 3,722 मोटर कैब और 44 ओमनी बस हैं।

सार्वजनिक परिवहन के लिए 2,252 बसें रजिस्टर्ड हैं। जो ऋषिकेश को देहरादून समेत अन्य जिलों से जोड़ती हैं। वहीं निजी वाहनों में 1.46 लाख दो पहिया वाहन और 22,740 कारों के साथ कुल 1.68 लाख वाहन रजिस्टर्ड हैं।

देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार में मेट्रो ट्रेन को लेकर कार्य कर रहे उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन की रिपोर्ट के मुताबिक आवाजाही के लिए सार्वजनिक वाहन का शेयर मात्र 7 प्रतिशत है। तकरीबन 58 प्रतिशत लोग आवाजाही के लिए दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल करते हैं।

ऋषिकेश-देहरादून के बीच शाम की बसों की दिक्कत

ऋषिकेश से हर दिन बड़ी संख्या में लोग पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में लगभग 44 किलोमीटर दूर देहरादून का सफर तय करते हैं। उन्हीं में से एक हैं संगीता भट्ट, जो देहरादून के एक कपड़ों के शोरूम में काम करती हैं। वह बताती हैं, “देहरादून के एक छोर से दूसरे छोर जाने में जितना समय लगता है, उतना ही वक्त ऋषिकेश से देहरादून पहुंचने में लग जाता है। लेकिन असली दिक्कत तब होती है जब शाम को कॉलेज और दफ्तरों से छुट्टी होती है।”

उनका कहना है, “शहरी विकास योजना के तहत चलने वाली अनुबंधित बसों का देहरादून और ऋषिकेश के बीच केवल चार फेरे तय हैं। ड्राइवर और कंडक्टर दिन में ही चार फेरे पूरे कर लेते हैं, चाहे बसें खाली क्यों न जा रही हों। शाम को जब सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, तब बस ही नहीं मिलती,” वह शिकायत करती हैं।

स्थानीय लोगों ने शनिवार व रविवार को घर से बाहर निकलना लगभग बंद कर दिया है। फोटो: वर्षा सिंह
स्थानीय लोगों ने शनिवार व रविवार को घर से बाहर निकलना लगभग बंद कर दिया है। फोटो: वर्षा सिंह

बस से उतरकर टैंपो या ई-रिक्शा के जरिये घर तक पहुंचने वाली संगीता कहती हैं कि ऋषिकेश के शहर और गांव अब एक हो चुके हैं। अब हमारे शहर को भी कम से कम दो सिटी बसों की जरूरत है। ऋषिकेश की भौगोलिक स्थिति बेहद विशिष्ट है। यहां दो ही मुख्य सड़कें हैं—एक हाईवे और दूसरी बायपास रोड—जो शहर की सेंट्रल लाइन के तौर पर काम करते हैं। शहर की सड़कें संकरी हैं इसलिए सिटी बस सेवा के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।

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करीब एक महीना पहले ऋषिकेश से रुद्रपुर ट्रांसफर हुए सहायक क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी मोहित कोठारी कहते हैं कि विक्रम, ऑटो और ई-रिक्शा शहर की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त हैं और लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए बेहतर हैं।

कोठारी कहते हैं कि ऋषिकेस से देहरादून या हरिद्वार दोनों ही जगहों के लिए बसों की अच्छी उपलब्धता है। उनके मुताबिक शहर में इन्फ्रास्ट्रक्चर का समस्या ज्यादा बड़ी है, “ऋषिकेश में असली समस्या वाहनों की संख्या नहीं, बल्कि सीमित इंफ्रास्ट्रक्चर है। शहर का मुख्य भाग धार्मिक, साहसिक पर्यटन, मनोरंजन समेत हर तरह की गतिविधियों का केंद्र है। साथ पहाड़ों और चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार होने के काण क्षेत्र पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है। इसलिए हम मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर को किस तरह बेहतर बना सकते हैं, इसके लिए कुछ नया सोचने और करने की जरूरत है।”

वायु प्रदूषण से जूझती ‘योग नगरी’

हिमालयी शहर की आबोहवा भी वाहनों से निकलने वाले धुएं से खराब हो रही है।

 ऋषिकेश के नगर निगम कार्यालय, एसपीएस अस्पताल और नटराज होटल जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार मानकों से अधिक बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, इन इलाकों में पीएम-10 और पीएम-2.5 का स्तर लगातार तय मानकों से अधिक मॉडरेट श्रेणी में बना रहता है। इस साल मार्च में पीएम10 का स्तर 150 से 170 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के बीच था, जबकि PM2.5 का स्तर 70 से 86 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के बीच था। फरवरी में भी यही स्थिति रही और पीएम-10 का स्तर 133 से 157 और पीएम-2.5 का स्तर 60 से 80 के बीच रिकॉर्ड किया गया।

वायु प्रदूषण का असर स्वास्थ्य पर भी है। राजकीय अस्पताल में श्वास रोग विभाग में रहे डॉक्टर अभिज्ञान बहुगुणा बताते हैं कि इस क्षेत्र में टीबी, निमोनिया और सीने में संक्रमण जैसी बीमारियों के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं।

वह कहते हैं, "ऋषिकेश एक सीमित भूभाग में बसा हुआ शहर है। यहां आबादी और पर्यटकों का दबाव बहुत ज़्यादा है। ऐसी जगहों पर जब हवा में प्रदूषण के कण अधिक होते हैं, टीबी जैसे रोगों के बैक्टीरिया लंबे समय तक हवा में टिके रहते हैं। ये छोटे-छोटे कणों यानी एयरोसॉल्स के साथ चिपककर देर तक हवा में बने रहते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।"

विक्रम पर सारा दारोमदार, सिटी बसों की मांग

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) के तहत ऋषिकेश में बीते 6 वर्षों से हवा की गुणवत्ता में सुधार से जुड़ा कार्य चल रहा है। ऋषिकेश क्लीन एयर एक्शन प्लान के मुताबिक यहां हवा की गुणवत्ता पीएम-10 की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित है। इसकी मुख्य वजह सड़कों की धूल और वाहनों से निकलने वाला धुआं है। प्लान में 15 वर्ष से पुराने डीज़ल वाहनों को सड़कों से हटाने के साथ ही सीएनजी/एलपीजी ईधन वाले वाहनों पर शिफ्ट होने का सुझाव दिया गया है।

इसके बावजूद पहाड़ी शहर में आवाजाही का सारा दारोमदार इन्हीं डीजल से चलने वाले विक्रम पर है। नगर आयुक्त शैलेंद्र नेगी कहते हैं, “हमें शहर से विक्रम हटाकर स्वच्छ ईधन से चलने वाले वाहन पर आने की सख्त जरूरत है। ई-रिक्शा तो शहर में बहुत हो गए हैं लेकिन उनकी धीमी रफ्तार के चलते दुर्घटना की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए इन्हें मुख्य सड़कों से हटाने की मांग रहती है।

नगर आयुक्त बताते हैं, “एनकैप के तहत इस साल के सालाना एक्शन प्लान में हमने 4 इलेक्ट्रिक सिटी बसों का प्रस्ताव भेजा है। जो ऋषिकेश के बाहरी इलाकों को शहर के साथ जोड़ें”।

विक्रम, ऑटो, दो पहिया और चार पहिया वाहनों का शोर सड़क पर पैदल चलने वालों को भी परेशान करता है। ऋषिकेश बाज़ार के पास रहने वाली आईटीआई छात्रा संजोगिता 2 किमी. से अधिक पैदल चललकर अपने संस्थान पहुंचती हैं। वह कहती हैं, “मैं मुख्य सड़क की जगह गलियों से पैदल जाना पसंद करती हूं। संकरी सड़कों पर फुटपाथ पर भी ऑटो और लोडिंग वाले वाहन खड़े रहते हैं। हवा में प्रदूषण के साथ ही गाड़ियों के हॉर्न का शोर भी बहुत ज्यादा होता है”। संजोगिता उम्मीद जताती हैं कि यदि आरामदेह इलेक्ट्रिक बसें शहर को मिलें तो शायद लोग अपनी कारों को छोड़कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को इस्तेमाल करना पसंद करेंगे।

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