भारत में आवाजाही: अहमदाबाद में हर दूसरे व्यक्ति के पास है अपना वाहन

अहमदाबाद की सिटी बस और बीआरटीएस के बावजूद लास्ट माइल कनेक्टिविटी न होने के कारण लोगों को निजी वाहन लेना ही पड़ता है
फोटो : आईस्टॉक
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पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि साबरमती रिवर फ्रंट से हटाई गई बस्तियों के कुछ लोगों को ओडाब में बसाया गया और वहां वे शहर से लगभग 15 किलोमीटर अलग-थलग पड़ गए है।

ओडाब की की तरह बटवा में भी रिवर फ्रंट से हटाए गए झुग्गी बस्तियों में रह रहे लोगों को बसाया गया है। हालांकि यहां ओडाब की तरह केवल 150 परिवार नही रह रहे, बल्कि यहां  रहने वाले आबादी 10 हजार से अधिक है, लेकिन यहां भी अहमदाबाद म्युनिट एएमटीएस बस का इंतजाम नहीं किया गया है। 

आबादी अधिक होने के कारण यहां से शेयरिंग ऑटो हर समय मिल जाते हैं। लेकिन सबीना जैसी महिलाओं की मुसीबतें भी बबली जैसी ही हैं। वह जमालपुर के पास घरों में काम करती थी, अभी भी काम करने वहीं आती है, लेकिन उसे एक तरफ का किराया 80 रुपए देना पड़ता है।

वह बटवा से लाल दरवाजा तक शेयरिंग ऑटो से जाती है, जिसका किराया 30 रुपए है और वहां से दूसरा ऑटो करना पड़ता है, जो 50 रुपए लेता है। इतना ही नहीं, आने-जाने में उसके तीन घंटे खर्च हो जाते हैं। पगार अभी भी पहले जितनी ही है।

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आवाजाही की दिक्कतों की वजह से सबीना व हमीदा के कामकाज पर गहरा असर पड़ा है। फोटो: राजू सजवान

सबीना की पड़ोसन हमीदा ने तो आने-जाने की परेशानी को देखते हुए अब काम करना ही छोड़ दिया है। हमीदा कहती हैं कि शहर से इतना दूर होने का सबसे बड़ा नुकसान महिलाओं को ही हुआ है। या तो उन्हें काम छोड़ना पड़ा है, या दो से तीन घंटे का समय घर आने-जाने में लग जाता है। पहले इतना समय महिलाएं अपने घर-परिवार को देती थी।

बटवा में एक बस सुबह और एक शाम आती है, लेकिन आबादी को देखते हुए वह नाकाफी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इतनी आबादी पर तो एक डिपो बनाया जा सकता है। यहां रह रहे लोग शेयरिंग ऑटो रिक्शा पर निर्भर हैं, लेकिन शेयरिंग ऑटो में समय काफी लग जाता है, इसलिए लोग किस्तों पर दोपहिया वाहन ले रहे हैं।  

यह स्थिति शहर के बाहर के इलाकों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, लेकिन अहमदाबाद शहर के भीतर सबसे बड़ी समस्या लोगों के लिए लास्ट माइल कनेक्टिविटी यानी मुख्य सड़क से घर तक का साधन न मिलना है। सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीईपीटी) विश्वविद्यालय के अध्ययन  "अहमदाबाद: मल्टीमॉडल इंटिग्रेशन एंड लास्ट माइल कनेक्टिविटी" के मुताबिक अहमदाबाद में लोग सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन अंतिम छोर तक यानी 'लास्ट माइल' कनेक्टिविटी की कमी एक प्रमुख समस्या बनी हुई है।

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फोटो: राजू सजवान

अध्ययन में यह बात सामने आई कि लोग मेट्रो, बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) और एएमटीएस (अहमदाबाद म्यूनिसिपल ट्रांसपोर्ट सर्विस) जैसी सार्वजनिक सेवाओं का उपयोग करना चाहते हैं, लेकिन अंतिम गंतव्य तक आसानी से पहुंचने का साधन न होने के कारण वे निजी वाहनों का सहारा लेने को मजबूर हो जाते हैं।

अध्ययन के अनुसार, अहमदाबाद के कई हिस्सों में सार्वजनिक परिवहन स्टेशन तक पहुंचने या वहां से घर/कार्यालय तक जाने के लिए पर्याप्त और सुरक्षित साधन नहीं हैं। इससे न केवल यात्रियों की सुविधा पर असर पड़ता है बल्कि यह सार्वजनिक परिवहन के व्यापक उपयोग में भी बाधा उत्पन्न करता है।

सीईपीटी के इस अध्ययन में पाया गया कि अहमदाबाद में सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने वालों में से लगभग 67 प्रतिशत को 'लास्ट माइल कनेक्टिविटी' की कमी के कारण अपनी यात्रा के दौरान परिवहन का माध्यम बदलना पड़ता है, जिससे सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कम हो जाता है। ऐसे में कुल यात्रा समय का 50 फीसदी समय 'पहले और अंतिम मील' में खर्च होता है, जिसमें औसतन 10 मिनट की प्रतीक्षा शामिल है। जबकि सार्वजनिक परिवहन की लागत निजी परिवहन की तुलना में आधी है, लेकिन इसमें दोगुना समय लगता है।

साल 2024 में सेंटर फॉर डेवलपमेंट द्वारा प्रकाशित एक सर्वे में कहा गया कि अहमदाबाद में जहां लगभग 49 फीसदी पुरुष काम के लिए यात्रा करते हैं, वहीं महिलाओं कीसंख्या भी कम नहीं है। लगभग 43 प्रतिशत महिलाएं रोजाना काम के लिए सफर करती हैं।

जहां तक खरीदारी के लिए आवाजाही की बात है तो महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले थोड़ी ज्यादा है। 34 फीसदी महिलाएं शॉपिंग के लिए यात्रा करती हैं, जबकि 29 फीसदी पुरुष शॉपिंग के लिए यात्रा करते हैं। इसके बाद शिक्षा के लिए अहमदाबाद में रोजाना का सफर होता है।

हालांकि यहां भी महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। जहां 22 फीसदी महिलाएं रोजाना शिक्षा के लिए सफर करती है तो 18 फीसदी पुरुष शिक्षा के लिए रोज का आना जाना करते हं। अगर फ्रीक्वेंसी की बात करें तो 77 फीसदी पुरुष कम से कम दो बार आवाजाही करते हैं, वही ऐसी महिलओं की संख्या 70 फीसदी है। लगभग 13 फीसदी पुरुष तीन बार आवाजाही करते हैं।

विभिन्न प्रकार की बस्तियों में रहने वाले लोगों की यात्रा लागतें अलग-अलग होती हैं। एक अध्ययन में यह देखा गया कि घरों द्वारा मासिक परिवहन खर्च उनकी औसत मासिक आय के प्रतिशत के रूप में कितना होता है। उच्च आय वर्ग के लोग अपनी मासिक आय का सबसे कम हिस्सा परिवहन पर खर्च करते हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), झुग्गी बस्तियों और निम्न आय वर्ग (एलआईजी) के लोग अपनी आय का लगभग 40 प्रतिशत तक परिवहन पर खर्च करते हैं। यह दर्शाता है कि शहरी गरीब लोग परिवहन की लागत से असमान रूप से प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनके पास निजी परिवहन के साधन नहीं होते और उन्हें रिक्शा जैसे साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है।

लगभग आधा अहमदाबाद औटो रिक्शा पर या तो प्राइवेट या शटल के माध्यम से सफर करता है। जैसा कि सर्वे बताता है कि लगभग 70 फीसदी महिलाएं आवाजाही के लिए ऑटो रिक्शा का इस्तेमाल करती हैं, वहीं 47 फीसदी पुरुष भी ऑटो रिक्शा से ही सफर करते हैं। अनुमान है कि शहर में दो लाख से अधिक ऑटो चलते हैं, इनमें से लगभग 80 फीसदी ऑटो शटल के तौर पर चलते हैं।

पुरुषों की पसंदीदा सवारी दोपहिया वाहन ही है। 35 फीसदी पुरुष व 11 फीसदी महिलाएं दोपहियाा इस्तेमाल करते हैं। हैरानी की बात है कि मात्र सात फीसदी पुरुष व पांच फीसदी महिलाएं सार्वजनिक परिवहन पर चलते हैं। जबकि आठ फीसदी पुरुष व 12 फीसदी महिलाएं पैदल- पैदल अपने गंतव्य तक जाते हैं। 

डाउन टू अर्थ ने जब अहमदाबाद का दौरा किया तो एक बात अचरज भरी लगी। दूसरे बड़े शहरों की तरह पूरे अहमदाबाद में बेटरी रिक्शा नहीं हैं, ऐसे में लोग मुख्य सड़क तक आने के लिए पैदल चलते हैं। यही वजह है कि शहर के लगभग हर घर में दोपहिया वाहन जरूर है। शायद यही वजह है कि सीईपीटी के शोधकर्ताओं ने अपने सुझाव में कहा है कि सरकार और नगर निगम को 'लास्ट माइल कनेक्टिविटी' मजबूत करने के लिए ई-रिक्शा के साथ-साथ फुटपाथ, साइकिल ट्रैक व शेयर ऑटो को बढ़ावा देना चाहिए। इससे शहर की ट्रैफिक समस्या भी कम हो सकती है और पर्यावरण को भी फायदा होगा।

हवा में जहर 

हालांकि अहमदाबाद में वायु प्रदूषण की स्थिति बहुत खराब नहीं है, लेकिन अच्छी भी नहीं है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर द्वारा जनवरी 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट ट्रेसिंग दी हेजी एयर 2025 प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑन नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के मुताबिक देश के 253 शहरों में से अहमदाबाद पीएम10 के मामले में 106वें नंबर पर था, लेकिन पीएम2.5 के मामले में 65वें स्थान पर रहा। वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2024 में अहमदाबाद शहर ने सात माह से अधिक समय तक प्रदूषित हवा में सांस ली। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में अहमदाबाद ने 231 दिनों तक 'मध्यम' या उससे अधिक स्तर के प्रदूषित वायु गुणवत्ता के साथ सांस ली। यह आंकड़ा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संसद में प्रस्तुत किया गया था। 

इसके अलावा गुजरात एनवायरमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन में अहमदाबाद में वायु प्रदूषण के कारणों की पड़ताल करते हुए कहा गया है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण गतिविधियां  और सड़क की धूल की वजह से अहमदाबाद में प्रदूषण बढ़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर में पंजीकृत मोटर वाहनों की वार्षिक वृद्धि दर, शहर की जनसंख्या वृद्धि दर से पांच गुना अधिक है। जब वाहन पक्की सड़क या पार्किंग स्थल पर चलते हैं, तो कणीय  (पार्टिकुलेट ) प्रदूषण उत्पन्न होता है। पक्की सड़कों से निकलने वाले कणीय प्रदूषण का मुख्य स्रोत वाहनों से होने वाले सीधे उत्सर्जन होते हैं—जैसे एग्जॉस्ट (धुआं), ब्रेक घिसाव और टायर घिसाव—साथ ही सड़क की सतह पर मौजूद धूल का दोबारा उड़ना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। 

तेजी से बढ़ रहे हैं निजी वाहन 

आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में अहमदाबाद में पंजीकृत वाहनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जुलाई 2023 में प्रकाशित अहमदाबाद क्लाइमेट रेसिलेंट सिटी एक्शन प्लान टूअर्ड्स ए नेट जीरो फ्यूचर के मुताबिक  वर्ष 2009-10 में जहाँ यह संख्या 23.8 लाख थी, वहीं 2021-22 में बढ़कर 39 लाख हो गई, जो एक दशक में 65% की वृद्धि है। पंजीकृत वाहनों में सबसे अधिक संख्या दोपहिया वाहनों की है (75 प्रतिशत), इसके बाद चार पहिया वाहन (18 प्रतिशत), तीन पहिया वाहन (4 प्रतिशत) और अन्य वाहन (3 प्रतिशत) हैं। 2011 से 2021 के बीच चार पहिया वाहनों की संख्या तीन गुना और दोपहिया वाहनों की संख्या दो गुना हो गई। ऑटो-रिक्शा की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई, जो 2011 में 40,944 थी और 2021 में बढ़कर 1.7 लाख हो गई। 

कम नहीं हो रहे हैं डीजल वाहन

अहमदाबाद की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक जिले की कुल आबादी लगभग 74 लाख है, जबकि अहमदाबाद के तीन आरटीओ में दर्ज पंजीकृत वाहनों की संख्या 43.91 लाख से अधिक है। इसका मतलब है कि अहमदाबाद के हर दूसरे व्यक्ति के पास कोई न कोई वाहन है। यहां वाहन ईंधन की श्रेणियों में पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं।

सीएनजी वाहनों का उपयोग तेजी से बढ़ा है, लेकिन डीजल से चलने वाले वाहनों में खास कमी नहीं आई है। पिछले पांच साल के पंजीकृत वाहनों का विश्लेषण बताता है कि हर साल सीएनजी वाहनों की संख्या बढ़ रही है।

साल 2021 में जहां 6966 सीएनजी वाहन पंजीकृत हुए वहीं 2024 में 20854 वाहन (लगभग 200 प्रतिशत अधिक) पंजीकृत हुए। जबकि 2021 में डीजल चलित 19601 वाहन पंजीकृत हुए, जबकि 2024 में 34726 वाहन पंजीकृत हुए, जो 2021 के मुकाबले लगभग 77 फीसदी अधिक है। इससे पहले 2023 में 32617 डीजल चलित वाहन पंजीकृत हुए थे।

साल 2025 में 31 मई तक के आंकड़े बताते हैं कि डीजल चलित वाहनों की संख्या तेजी बरकरार रहेगी, क्योंकि अब तक 13691 वाहन पंजीकृत हो चुके हैं। अच्छी बात यह है कि पेट्रोल चलित वाहनों की संख्या कम हो रही है। 2021 में 174832 पेट्रोल चलित वाहन पंजीकृत हुए थे, जबकि 2024 में 108186 वाहन (38 फीसदी कम) पंजीकृत हुए। जानकार इसकी वजह पेट्रोल की कीमतों में आई उछाल को बताते हैं। 

बिजली से चलने वाले (इलेक्ट्रिक व्हीकल) को लेकर पिछले दो सालों में अहमदाबाद में रूझान बढ़ा है। हालांकि बैटरी ऑपरेटेड इलेक्ट्रिक व्हीकल का चलन साल 2021 से ही था। साल 2021 में 2127 बैटरी ऑपरेटेड व्हीकल (वीओवी) रजिस्टर्ड हुए थे। 2023 में वीओवी 20615 पंजीकृत हुए, 2024 में इनकी संख्या खासी कमी आई और केवल 12374 वाहन ही पंजीकृत हुए। हालांकि 2024 में 6467 प्योर ईवी पहली बार पंजीकृत हुए, 2025 में मई के अंत तक 5510 प्योर ईवी रजिस्टर्ड हो चुके हैं। 

बीआरटी कितना सफल 

अहमदाबाद उन शहरों में से एक है, जहां सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए बस रेपिड ट्रांजिट सिस्टम शुरुआती सालों में किया गया था। पुणे में साल 2006 में सबसे पहला बीआरटी बनाया गया था, उसके बाद 2009 में अहमदाबाद में बीआरटीएस लागू किया गया। हालांकि साल 2008 में दिल्ली में भी इसकी शुरुआत की गई थी, लेकिन विरोध के चलते इसे समाप्त कर दिया गया। बीआरटीएस मतलब एक ऐसी सड़क जहां केवल बसों को प्राथमिकता दी जाए। सीईपीटी के शोधकर्ताओं ने एक अन्य अध्ययन अहमदाबाद की जनमार्ग (बीआरटीएस) बस सेवा पर किया।

अध्ययन के मुताबिक इसमें आधुनिक बसें और अलग लेन की व्यवस्था तो की गई, लेकिन यह गरीब और निम्न-आय वर्ग के लोगों के लिए सुलभ नहीं बन सकी। खासकर महिलाएं और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोग अभी भी इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इसका किराया एएमटीएस और शेयिरंग ऑटो से महंगा है। पैदल और साइकिल चलाने वालों के लिए भी कोई खास सुविधा नहीं दी गई, जबकि परियोजना में यह वादा किया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि बीआरटी को तकनीकी समाधान माना गया, लेकिन सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को नजरअंदाज किया गया।

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