यदि आप भी दिल्ली या आसपास के शहरों में रहते हैं तो बढ़ते प्रदूषण के लिए कहीं न कहीं आप भी जिम्मेवार हैं। एक नए अध्ययन के हवाले से पता चला है कि दिल्ली को गैस चैंबर बनाने में आसपास के इलाकों में जलाई जा रही पराली की जगह वाहनों का बहुत बड़ा हाथ है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा छह नवंबर, 2024 को जारी इस अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत सड़कों पर फर्राटा भरते वाहन हैं।
देखा जाए तो यह बेहद हैरान कर देने वाला है क्योंकि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसके तहत सार्वजनिक और व्यावसायिक परिवहन के लिए अब तक का सबसे बड़े सीएनजी कार्यक्रम को अपनाया गया है।
राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में दस साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कों से हटा दिया गया है। इतना ही नहीं शहर से गुजरने वाले ट्रक जो मानकों का पालन नहीं कर रहे उनपर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
प्रदूषण की रोकथाम के लिए भारत स्टेज VI उत्सर्जन मानकों को लागू किया गया है और इलेक्ट्रिक बसों का उपयोग शुरू हो चुका है।
सीएसई ने अपने इस अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर, द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट और सफर (भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान) द्वारा किए शोधों का भी हवाला दिया है। इन सभी अध्ययनों से पता चला है कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का मुख्य कारण वाहन हैं।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी से बढ़ रही है निजी वाहनों पर निर्भरता
इन अध्ययनों के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 के करीब 40 फीसदी उत्सर्जन और नाइट्रोजन ऑक्साइड के 81 फीसदी उत्सर्जन के लिए सड़कों पर दौड़ते वाहन जिम्मेवार हैं। विश्लेषण में आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि दिल्ली अपने वाहनों के चलते प्रदूषण से त्रस्त है, जो हवा में जहरीला धुआं उगल रहे हैं।
सीएसई के मुताबिक दिल्ली में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसमें सालाना 15.6 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है। इनमें से ज्यादातर दोपहिया वाहन और कारें हैं। बता दें कि दिल्ली में हर दिन 1,100 से अधिक दोपहिया वाहन और 500 निजी कारें पंजीकृत होती हैं।
देखा जाए तो दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अपने यात्रियों के लिए पर्याप्त नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक प्रति लाख लोगों के लिए सिर्फ 45 बसें हैं, जो मानकों से बेहद कम हैं।
बता दें कि प्रति लाख लोगों पर कम से कम 60 बसों की आवश्यकता होती है। ऐसे में लोगों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के प्रति लगाव घट रहा है और वो निजी वाहनों को खरीदने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इसकी वजह से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है।