केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल अपने जवाब में कहा है कि हाल ही में लैंसेट द्वारा जारी अध्ययन पूरी तरह सटीक नहीं है और इसकी कुछ सीमाएं हैं।
गौरतलब है कि अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट में प्रकशित अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया था था कि दस प्रमुख भारतीय शहरों में खराब वायु गुणवत्ता लोगों के स्वास्थ्य और मृत्यु दर को कैसे प्रभावित कर रही है।
चार नवंबर, 2024 को दिए अपने जवाब में सीपीसीबी ने कहा है कि इस अध्ययन में पीएम 2.5 के स्तर को मापने के लिए ग्राउंड-आधारित मॉनिटर और सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है, जो एक सामान्य मॉडल पर आधारित है। हालांकि यह जरूरी नहीं की प्रदूषण का अनुमान लगाने के लिए उपग्रह से प्राप्त आंकड़े और मॉडलिंग तकनीकें भारत में वास्तविक स्थिति को सटीक रूप से दिखा सकती हैं।
इससे जुड़ा एक और मुद्दा यह था कि अध्ययन में प्रत्येक शहर के नगर निगम से मृत्यु दर के रिकॉर्ड को प्राप्त किया गया। हालांकि अधिकांश शहरों में हुई मृत्यु के कारणों की विस्तृत जानकारी रिकॉर्ड में नहीं थी। इस जानकारी के बिना, अध्ययन को कई अनुमान लगाने पड़े। इसका मतलब है कि यह कहना मुश्किल है कि ये मौतें केवल वायु प्रदूषण के कारण हुई थीं, ऐसे में अध्ययन में सटीक तरीके से तुलना नहीं की जा सकती है।
गौरतलब है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे और वाराणसी सहित 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 130 शहरों की पहचान की है, जहां वायु गुणवत्ता आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करती है।
बता दें कि भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की शुरूआत की गई थी। इसका मुख्य लक्ष्य इन 130 शहरों में पीएम10 के स्तर को 2019-20 की तुलना में 2025-26 तक 40 फीसदी तक कम करना और 2009 में निर्धारित वार्षिक वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करना है।
सालाना 33,627 मौतों के लिए जिम्मेवार है वायु प्रदूषण
सीपीसीबी के मुताबिक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) और अन्य नीतियों की मदद से 130 चिन्हित शहरों में से 95 में 2017-18 की तुलना में 2023-24 के दौरान पीएम10 के स्तर में गिरावट आई है। इनमें अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे और वाराणसी जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं। शिमला में भी इसी तरह की कमी दर्ज की गई है।
गौरतलब है कि यह पूरा मामला जर्नल लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन से जुड़ा है। इस अध्ययन में इस बात को उजागर किया गया है कि किस तरह खराब वायु गुणवत्ता दस प्रमुख भारतीय शहरों में मृत्यु दर को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है।
अध्ययन से पता चला है देश के इन शहरों में सालाना होने वाली 33,627 मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेवार है, जो डब्ल्यूएचओ द्वारा तय मानकों से कहीं ज्यादा है।
अध्ययन किए गए शहरों में अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी शामिल हैं। आरोप है कि इस प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से वाहनों से होता उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियां और निर्माण संबंधी धूल जिम्मेवार है।
भारत में वायु प्रदूषण के बारे में ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।