
पंजाब भारत के उन प्रमुख राज्यों में से एक है, जहां भारी मात्रा में पराली जलाई जाती है। हालांकि अधिकांश लोग जानते हैं कि ऐसा करना स्वास्थ्य और पर्यवारण के दृष्टिकोण से खतरनाक है, फिर भी यह प्रथा बेहद आम है।
इसके साथ ही यह घरेलू खर्च में भी इजाफे की वजह बन रही है।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और मिड स्वीडन यूनिवर्सिटी में स्वास्थ्य विभाग के प्रोफेसर कौस्तुव दलाल ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि “अध्ययन में जो एक महत्वपूर्ण बात सामने आई वो यह है कि प्रवासी मजूदर जो केवल बुवाई के दौरान आते हैं, उनका स्वास्थ्य उन क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय लोगों की तुलना में कहीं बेहतर था, जहां पराली जलाई जाती है।“
इससे पता चलता है कि पराली जलाने से स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान हो सकता है। यह जानकारी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़ और मिड स्वीडन विश्वविद्यालय द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है। इस रिपोर्ट में पंजाब में पराली जलाने के सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभावों की पड़ताल की गई है।
प्रोफेसर दलाल के मुताबिक पंजाब में जलती पराली वायु गुणवत्ता और लोगों के जीवन पर कई तरह से असर डाल रही है। उनका आगे कहना है कि अध्ययन से पता चला है कि इस क्षेत्र में स्थिति इतनी खराब है कि स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को बेहतर बनाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है।
शोधकर्ताओं ने अपने इस अध्ययन में पंजाब के चार जिलों में पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन के साथ-साथ पानी और मिट्टी पर पड़ते इसके प्रभावों का विश्लेषण किया है। इसके साथ ही अध्ययन के तहत स्थानीय निवासियों के साक्षात्कार भी लिए गए हैं, जिसके दौरान स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति, जागरूकता और विचारों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक पराली जलाने से खांसी, सांस लेने में दिक्कत, एलर्जी, कैंसर और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वहां रहने वाले छात्रों का कहना है कि इससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो रही है। जो इलाके इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, वहां प्रजनन क्षमता में भी गिरावट देखी गई है।
रिपोर्ट में स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों के साथ-साथ परिवर्तन पर बढ़ते आर्थिक दबाव को भी उजागर किया गया है। यहां रहने वाले अधिकांश परिवार अपने घरेलू खर्च का करीब दस फीसदी से अधिक हिस्सा स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करते हैं, जो उनके ऊपर पड़ रहे भारी वित्तीय बोझ को रेखांकित करता है।
कैसे लगाई जा सकती है पराली जलाने पर लगाम
ऐसे में प्रोफेसर दलाल का कहना है कि, पंजाब में नीति निर्माताओं और समुदायों के लिए पराली जलाने को रोकने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है।
इसकी रोकथाम के लिए अध्ययन वैकल्पिक तरीकों की संभावना की ओर इशारा करता है, जैसे कि किफायती मशीनरी उपलब्ध कराना, कच्चे माल के रूप में पराली के लिए बाजारों का विकास, फसलों की विविधता पर ध्यान देना और विशेष रूप से बासमती चावल की खेती को प्रोत्साहित करना।
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह रिपोर्ट सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करेगी और पंजाब के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों में पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों को कम करने में मददगार होगी।
प्रोफेसर दलाल के मुताबिक तकनीकी समाधानों को सामाजिक जागरूकता के साथ जोड़कर हम भावी पीढ़ियों के लिए साफ हवा और बेहतर स्वास्थ्य की दिशा में काम कर सकते हैं। जलती पराली एक वैश्विक मुद्दा बनती जा रही है, जिससे कहीं ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित हो रही हैं।
भारत में वायु गुणवत्ता से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।