साल-दर-साल अक्टूबर से नवंबर के बीच दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण का बढ़ना आम होता जा रहा है। मौसम में बदलाव के साथ शहरी प्रदूषण, पटाखों की धमक और ऊपर से आसपास के राज्यों में जलाई जा रही पराली भी बढ़ते प्रदूषण में बड़े पैमाने पर योगदान देती है।
पंजाब-हरियाणा में जलाई जा रही पराली को लेकर क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक नया विश्लेषण किया है, जिससे पता चला है कि पिछले साल की तुलना में इस साल एक अक्टूबर से पांच नवंबर के बीच पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 48 फीसदी की कमी आई है। वहीं हरियाणा में भी खेतों में जलाई जा रही आग में 38 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि इसके बावजूद पंजाब-हरियाणा से आने वाली हवाओं के साथ दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण भी बढ़ रहा है।
इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक पंजाब में इन घटनाओं में सबसे ज्यादा गिरावट संगरूर में दर्ज की गई है। जहां एक अक्टूबर से पांच नवंबर 2022 और 2023 में समान अवधि के दौरान खेतों में जल रही आग की घटनाओं में करीब 46 फीसदी की गिरावट देखी गई है। बता दें कि जहां एक अक्टूबर से पांच नवंबर 2022 के बीच संगरूर में पराली जलने की 4,287 घटनाएं दर्ज की गई थी जो एक अक्टूबर से पांच नवंबर 2023 के बीच घटकर 2,295 रह गई।
इस विश्लेषण में खेतों में जल रही आग की घटनाओं की जानकारी के लिए शोधकर्ताओं ने नासा के विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सुइट (वीआईआईआरएस) उपकरण की मदद ली है। वहीं तापमान और हवा की जानकारी के लिए सीपीसीबी के आंकड़ों का उपयोग किया गया है।
इसी तरह इस अवधि के दौरान जहां रूपनगर में पराली जलने की घटनाओं में 76 फीसदी की गिरावट देखी गई है। वहीं मुक्तसर में 68.4 फीसदी, होशियारपुर में 68 फीसदी, बरनाला में 67.8 फीसदी, बठिंडा-गुरदासपुर में 65 फीसदी और पटियाला में 57.5 फीसदी की गिरावट देखी गई है।
इस बीच हरियाणा में भी खेतों में जल रही आग की घटनाओं में 38 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान एक अक्टूबर से पांच नवंबर 2022 के बीच कैथल के खेतों में जल रही आग की 591 घटनाएं दर्ज की गई जो एक अक्टूबर से पांच नवंबर 2023 के बीच 68 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 189 रह गई थी। इसी तरह फतेहाबाद में खेतों में जलती आग की घटनाएं 496 से घटकर 312 रह गई थी। वहीं करनाल में इन घटनाओं में 69 फीसदी की, जबकि कुरूक्षेत्र में 56.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
इस अध्ययन में पंजाब और हरियाणा से बहने वाली हवाओं और दिल्ली में प्रदूषण के स्तर के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध को भी उजागर किया गया है। यह भी सामने आया है कि अक्टूबर 2023 में पंजाब और हरियाणा से आने वाली हवाएं 81 फीसदी मामलों में दिल्ली के प्रदूषण में इजाफा करती हैं।
हरियाणा में फसल अवशेषों को जलाने की घटनाओं में दर्ज 38 फीसदी की गिरावट
इस बारे में क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला का कहना है कि, "दिल्ली में वायु प्रदूषण एक बार फिर से खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 के पार है।" उनके मुताबिक हवा की रफ्तार के साथ साल भर होता प्रदूषण और जलाई जा रही पराली इस साल दर साल होने वाली समस्या में योगदान देती है। उनका कहना है कि, “इस दौरान दिल्ली में करीब 81 फीसदी हवाएं पंजाब और हरियाणा से होकर आती है। हालांकि अक्टूबर 2022 की तुलना में इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 48 फीसदी और हरियाणा में 38 फीसदी की गिरावट आई है। लेकिन साथ ही उस ओर से आने वाली हवा बहुत ज्यादा होती है जो अपने साथ प्रदूषण भी लेकर आती है, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है।“
उनके अनुसार यातायात और उद्योगों से होते प्रदूषण के साथ निर्माण के कारण पैदा हुई धूल जैसे स्थानीय कारकों के साथ-साथ हवा की गति और मौसम भी इस प्रदूषण को प्रभावित करती है।
उनका यह भी कहना है कि फसलों के अवशेषों को जलाने के साथ-साथ त्योहारों जैसे कारकों के चलते भी दिल्ली में अक्टूबर और नवंबर के दौरान वायु प्रदूषण बढ़ जाता है।" हालांकि उनके मुताबिक हमें वास्तविक अंतर का पता लगाने के लिए बिजली संयंत्रों, उद्योगों, यातायात और निर्माण जैसे स्रोतों से होते प्रदूषण पर ध्यान देना जरूरी है। इसके साथ ही बारिश, तापमान और हवा की गति जैसे कारक भी इस क्षेत्र में काफी हद तक प्रदूषण को प्रभावित करते हैं। ऐसे में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए सही समय पर मौसमी प्रभाव को कम करते हुए मानवीय गतिविधियों के चलते होते प्रदूषण को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है।
एक तरफ वाहनों, फैक्ट्रियों, डीजल जेनरेटरों, बिजली संयंत्रों, सड़क की धूल, निर्माण और घरों से उत्पन्न होने वाला उत्सर्जन दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण में इजाफा करता है। वहीं दूसरी तरफ जब किसान अपने खेतों को अगले सीजन में बुआई के लिए साफ करते हैं तो वे फसल अवशेषों जैसे पराली को जलाते हैं, जो हवा के साथ जहरीले प्रदूषकों को भी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में लाते हैं। ऐसे में यदि मौसम इसके प्रतिकूल हो तो प्रदूषण का स्तर बढ़ता है और हवा कहीं ज्यादा घातक हो जाती है। ऐसा ही कुछ इस समय भी हो रहा है जब दिल्ली में सांस लेना दुश्वार हो चुका है।
दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में अक्टूबर-नवंबर के दौरान बढ़ने वाला प्रदूषण कोई नया नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से साल दर साल यह सिलसिला चला आ रहा है। ऐसे में अक्टूबर-नवंबर के बीच मीडिया में खबरों के साथ-साथ राजनैतिक गलियारों में भी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है। जो एक दूसरे पर आरोप लगाकर अपनी जिम्मेवारी से बचने की कोशिश करते नजर आते हैं।
आम लोग भी तभी जागरूक होते हैं जब समस्या उनके दरवाजे तक पहुंचती है, इससे पहले तो न सड़कों से गाड़ियों कम होती है, न अन्य स्रोतों से बढ़ता प्रदूषण। लेकिन सच यही है कि यदि प्रदूषण को रोकने के लिए पहले से पुख्ता उपाय किए जाते तो स्थिति कुछ और होती और इन क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर इस तरह गंभीर खतरा न मंडराता।