

कृषि मंत्रालय ने धान की किस्मों में नाइट्रोजन दक्षता के अंतर पर चिंता जताई है।
मंत्रालय ने एनजीटी में दायर हलफनामे में कहा कि आईसीएआर नई किस्मों के विकास पर काम कर रहा है जो नाइट्रोजन का कम उपयोग करें।
सरकार उर्वरकों के संतुलित उपयोग और मृदा स्वास्थ्य सुधार के लिए योजनाएं चला रही है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि भारत में धान की लोकप्रिय किस्मों में नाइट्रोजन उपयोग की क्षमता को लेकर जो अंतर हैं, वे वास्तविक चिंता का विषय हैं। गौरतलब है कि मंत्रालय ने कहा कि द हिन्दू की नई रिपोर्ट में उठाई गई समस्याएं पूरी तरह वाजिब हैं।
यह जवाबी हलफनामा मंत्रालय द्वारा 14 अक्टूबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर किया गया है।
मंत्रालय ने जानकारी दी है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का काम प्रमुख खाद्य और व्यावसायिक फसलों की ऐसी नई किस्मों का विकास करना है, जो नाइट्रोजन का कम से कम उपयोग करें और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से सुरक्षित रहें। आईसीएआर धान की विभिन्न किस्मों का विभिन्न स्थानों पर परीक्षण के बाद इन्हें किसानों तक पहुंचाने का कार्य भी करता है।
भारत सरकार राज्य सरकारों के प्रयासों का समर्थन कर रही है ताकि उर्वरकों का संतुलित उपयोग हो और मृदा स्वास्थ्य में सुधार आ सके। इसके तहत कई योजनाएं भी चलाई गई हैं। इनमें प्रमुख है मृदा स्वास्थ्य कार्ड/मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना। इस योजना के तहत किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिए जाते हैं।
इन कार्डों में किसानों की जमीन में मौजूद पोषक तत्वों की स्थिति के आधार पर सलाह और विभिन्न पोषक तत्वों की उचित मात्रा की सिफारिशें दी जाती हैं।
एक और योजना है फसल विविधीकरण कार्यक्रम। यह योजना पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे पारंपरिक ग्रीन रिवॉल्यूशन राज्यों में लागू की जा रही है। इसका उद्देश्य पानी की ज्यादा खपत करने वाले धान की जगह दलहन, तिलहन, पोषक अनाज, कपास और कृषि वनोपज उगाने को बढ़ावा देना है, ताकि मिट्टी की उर्वरता और भूजल की रक्षा हो सके।
इसके साथ ही परंपरागत कृषि विकास योजना और मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट – उत्तर पूर्वी क्षेत्र का उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देकर यूरिया समेत नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के जरुरत से ज्यादा हो रहे उपयोग को सीमित किया जा रहा है।
संवेदनशील क्षेत्रों में लगाई गई सुरक्षित आग, देहरादून-ऋषिकेश हाईवे पर वन विभाग की कार्रवाई
देहरादून-ऋषिकेश सड़क के बड़कॉट वन क्षेत्र में सूखी पत्तियों को उत्तराखंड वन विभाग के एक अधिकारी की निगरानी में सुरक्षित और नियंत्रित तरीके से जलाया गया था।यह जानकारी भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) विभाग ने 16 अक्टूबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल अपनी रिपोर्ट में दी है।
यह रिपोर्ट ट्रिब्यूनल द्वारा 21 अक्टूबर 2024 और 10 सितंबर 2025 को दिए आदेशों के जवाब में अदालत में सबमिट की गई है।
11 नवंबर 2024 को भारतीय वन सर्वेक्षण ने उत्तराखंड वन विभाग के प्रधान मुख्य संरक्षक और प्रमुख अधिकारी से इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी।
इसके बाद 24 दिसंबर 2024 को उत्तराखंड वन विभाग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में बताया गया कि कार्य योजना के अनुसार, देहरादून-ऋषिकेश हाईवे को महत्वपूर्ण अग्नि रेखा के रूप में चिन्हित किया गया है। हाईवे के संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा और सावधानी बरतते हुए नियंत्रित आग लगाई गई।
लद्दाख के पक्षियों की सुरक्षा पर केंद्र सक्रिय: संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन के नए दिशानिर्देश जल्द
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय देश के संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की प्रक्रिया में है। मंत्रालय ने 9 अक्टूबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को बताया कि इस संबंध में अन्य मंत्रालयों से परामर्श चल रहा है।
यह रिपोर्ट एनजीटी द्वारा 18 जुलाई 2025 को दिए आदेश पर सौंपी गई है।
मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को अपने क्षेत्र में पक्षियों पर वैज्ञानिक अध्ययन करने का पूरा अधिकार है।
एनजीटी ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। यह कार्रवाई 16 नवंबर 2024 को ईटीवी भारत में प्रकाशित खबर के आधार पर की गई है।