रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एएमआर एक ऐसी 'मूक महामारी', है जो न केवल इंसान और मवेशियों के स्वास्थ्य बल्कि खाद्य सुरक्षा और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। आज जिस तरह से वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक्स दवाओं का बेतहाशा उपयोग हो रहा है, वो चिंता का विषय है।
सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) लम्बे समय से रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते खतरे को लेकर चेताता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय बैठक में इस दिशा में एक बड़ा फैसला लिया गया है। बैठक में न केवल वैश्विक नेताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर निर्णायक कार्रवाई का संकल्प लिया। साथ ही एक राजनैतिक घोषणा-पत्र भी पारित किया है। यह घोषणा पत्र एएमआर से निपटने के तरीके में बड़े बदलाव को दर्शाता है।
इस घोषणा पत्र में कृषि खाद्य प्रणालियों में बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। बता दें कि सीएसई लम्बे समय से इस मुद्दे पर काम कर रहा है और कृषि खाद्य प्रणालियों में बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने की मांग करता रहा है। ऐसे में सीएसई ने वैश्विक नेताओं के इस फैसले को कृषि-खाद्य प्रणालियों में बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध की रोकथाम की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बताया है।
बता दें कि इस घोषणा-पत्र में रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह से होने वाली मौतों में 2030 तक दस फीसदी की कमी करने की बात कही गई है। इस बैठक को संबोधित करने वाले वैश्विक नेताओं में सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण भी शामिल थी, जिन्होंने इस घोषणापत्र को एक बड़ा सकारात्मक कदम बताया है।
इस बारे में जानकारी देते हुए सीएसई ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि घोषणा पत्र दर्शाता है कि देश कृषि-खाद्य प्रणालियों में एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते दुरूपयोग की 'रोकथाम' पर जोर देने के इच्छुक हैं। देखा जाए तो मवेशियों को स्वस्थ रखना और बीमारियों की रोकथाम पर ध्यान देना अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। पशुओं की उचित देखभाल और निवारक उपायों की मदद से हम एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता को कम कर सकते हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक और एएमआर ग्लोबल लीडर्स ग्रुप (जीएलजी) की सदस्य सुनीता नारायण का कहना है, "यह प्रसन्नता की बात है कि दुनिया का ध्यान अब कृषि और मवेशियों के स्वास्थ्य पर केंद्रित है। यह इस बात को भी उजागर करता है कि जानवरों में बीमारियों की रोकथाम के उपाय कितने महत्वपूर्ण है। खासकर उन देशों के लिए जिनके पास इस तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए बहुत ज्यादा साधन नहीं है और जो इन बीमारियों का खर्च नहीं उठा सकते, उनके लिए यह बेहद मायने रखता है।"
बता दें कि ग्लोबल लीडर्स ग्रुप (जीएलजी) वैश्विक नेताओं का एक समूह है जो एंटीबायोटिक प्रतिरोध के खिलाफ कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है।
कृषि-खाद्य प्रणालियों में एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते दुरूपयोग को रोकना अहम
उनका आगे कहना है कि, "2016 की तुलना में यह नई घोषणा एक बड़े सकारात्मक बदलाव को दर्शाती है। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि वैश्विक नेता कृषि और खाद्य प्रणालियों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने को लेकर कितना गंभीर हैं। यह बड़ा कदम है और साबित करता है कि इस समस्या से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।"
एंटीबायोटिक प्रतिरोध (एएमआर) वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बनता जा रहा है, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है। हालात यह है कि कई एंटीबायोटिक्स अब उतने कारगर नहीं रहे। वहीं नए एंटीबायोटिक की पाइपलाइन करीब सूख चुकी है। इतना ही नहीं नए और पुराने दोनों एंटीबायोटिक्स तक पहुंच और उपलब्धता भी एक बड़ी चिंता का विषय है।
सीएसई ने प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा पत्र पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि कृषि और मवेशियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए संक्रमण की रोकथाम और एंटीबायोटिक दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग करने की जरूरत है। इसी तरह घोषणा पत्र में वित्त पोषण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसमें बेहतर कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और पशुओं की उचित देखभाल करना शामिल है।
घोषणा पत्र में उन प्रमुख कारणों को भी रेखांकित किया गया है जो पशुओं और पौधों में रोगाणुरोधी दवाओं के दुरूपयोग का कारण बनते हैं। यह इन दवाओं के सावधानीपूर्वक और जिम्मेदारी से उपयोग को भी प्रोत्साहित करता है। इसमें देशों की परिस्थितियों और समस्या को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
सीएसई में सतत खाद्य प्रणाली कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना का कहना है कि, "यह पहला मौका है जब घोषणापत्र में बीमारियों की रोकथाम के लिए रोगाणुरोधी दवाओं के विवेकपूर्ण जिम्मेवार उपयोग के महत्व को मान्यता दी गई है।"
उनका आगे कहना है कि, "भले ही यह एक बड़ी समस्या है, लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं के गैर-चिकित्सीय उपयोग और केमिकल पर अब तक दुनिया भर में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। हम कहानी में आए इस बदलाव को देखकर खुश हैं।"
उनके मुताबिक घोषणा में यह भी स्वीकार किया गया है कि पशुओं के विकास में मदद के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल से उन रोगाणुओं से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जो अब दवाओं से प्रभावित नहीं होते। ऐसे में हमें इस उद्देश्य के लिए महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद कर देना चाहिए।"
सीएसई में सतत खाद्य प्रणाली कार्यक्रम की प्रोग्राम मैनेजर राजेश्वरी सिन्हा ने बताया कि, "ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं को बचाने के महत्व पर सहमत है, कम से कम पशुओं के विकास में इनका उपयोग की अनुमति न देकर।"
इस घोषणा पत्र में 2030 तक वैश्विक स्तर पर कृषि और खाद्य प्रणालियों में रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग को महत्वपूर्ण रूप से कम करने का वादा किया है। इसमें प्रत्येक देश की स्थिति पर भी विचार किया जाएगा और मवेशियों और पौधों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
इसका उद्देश्य बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियों में निवेश करके और विकल्पों को बढ़ावा देकर एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता और दुरुपयोग को कम करना है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में वैश्विक समुदाय को संबोधित करते हुए नारायण ने कहा कि, 'रोगाणुरोधी प्रतिरोध की समस्या से निपटने के लिए हमें कृषि और पर्यावरण प्रबंधन के तरीकों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। इसके लिए संरक्षण, विकास और रोकथाम से जुड़ी हमारी योजनाओं को एक साथ लाना होगा।"
उनका कहना है कि, "जब तक सभी सुरक्षित नहीं हो जाते, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। यह विचार उस राजनैतिक घोषणा का आधार है, जिसका हम हिस्सा हैं। इसपर अब हमें कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यह मूक महामारी एक ऐसी लड़ाई है जिसे हमें जीतना ही होगा।"