

एफएओ की रिपोर्ट में जंगलों और कृषि के बीच तालमेल की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। जंगल तापमान नियंत्रित करते हैं, बारिश बनाए रखते हैं और जल चक्र को नियमित करते हैं, जो कृषि के लिए आवश्यक हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जंगलों का संरक्षण न केवल पर्यावरण बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।
रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि जंगलों को काटे जाने का असर तुरंत दिखाई देता है। इससे स्थानीय तापमान बढ़ता है, बारिश कम होती है और खेतों के लिए जोखिम बढ़ जाता है।
दुनिया के 155 देशों में कृषि को मिलने वाली बारिश का करीब 40 फीसदी हिस्सा सीमापार के जंगलों पर निर्भर है। यानी जंगलों का संरक्षण महज पर्यावरण ही नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा भी है
रिपोर्ट यह भी याद दिलाती है कि जंगल परागण, प्राकृतिक कीट नियंत्रण, पोषण चक्र, मिट्टी के कटाव को रोकने जैसी सेवाएं भी देते हैं जिन्हें हम अक्सर महसूस ही नहीं करते लेकिन कृषि इनके बिना असंभव है।
जलवायु संकट से बचने के लिए ब्राजील के बेलेम शहर में चल रहे अंतराष्ट्रीय सम्मेलन कोप-30 में भले ही जंगल चर्चा के केंद्र में हैं, लेकिन इस बात पर बहुत कम बात हुई है यह जंगल कृषि की रीढ़ भी हैं। इस बारे में बैठक के दौरान जारी एक नई रिपोर्ट “क्लाइमेट एंड इकोसिस्टम सर्विस बेनिफिट्स ऑफ फॉरेस्ट्स एंड ट्रीज फॉर एग्रीकल्चर” के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के इस दौर में पर्यावरण अनुकूल कृषि और खाद्य प्रणाली तैयार करने के लिए जंगलों और कृषि के बीच तालमेल बेहद जरूरी है।
यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), स्टॉकहोम एनवायरमेंट इंस्टीट्यूट, कंजरवेशन इंटरनेशनल और नेचर कंजरवेंसी ने मिलकर जारी की है। रिपोर्ट बताती है कि जंगल और पेड़ तापमान को नियंत्रित करने, बारिश बनाए रखने और जल चक्र को नियमित करने जैसे अहम काम करते हैं और यही सेवाएं फसल उत्पादन की नींव हैं।
जंगल महज पेड़ों का झुंड नहीं बल्कि कृषि की जीवनरेखा भी हैं। लेकिन जिस तरह से जंगलों का विनाश हो रहा है, उससे तापमान बढ़ रहा है, बारिश घट रही है और दुनिया में कृषि के साथ-साथ खेतों में काम करने वाले किसानों, मजदूरों की सेहत पर भी खतरा मंडरा रहा है।
जंगलों के कटने से बढ़ा तापमान, गड़बड़ाया संतुलन
रिपोर्ट के मुताबिक जंगल और पेड़ों की वे सेवाएं, जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं, हमारी कृषि और खाद्य प्रणाली को मजबूत बना सकती हैं। हालांकि इन फायदों को जमीनी हकीकत में बदलने के लिए बेहतर नीतियों, निवेश और समझदार प्रबंधन की जरूरत है।
रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि जंगलों को काटे जाने का असर तुरंत दिखाई देता है। इससे स्थानीय तापमान बढ़ता है, बारिश कम होती है और खेतों के लिए जोखिम बढ़ जाता है। रिपोर्ट में ब्राजील का उदाहरण देते हुए लिखा है कि वहां उष्णकटिबंधीय जंगलों को खेतों में बदलने से वाष्पीकरण 30 फीसदी तक घटा है, जिससे तापमान बढ़ रहा है और बारिश का पैटर्न गड़बड़ा गया है।
रिपोर्ट में एक अन्य अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि दुनिया के 155 देशों में कृषि को मिलने वाली बारिश का करीब 40 फीसदी हिस्सा सीमापार के जंगलों पर निर्भर है। यानी जंगलों का संरक्षण महज पर्यावरण ही नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा भी है।
इसी तरह जंगल केवल मौसम ही नहीं, बल्कि लोगों की सेहत को भी बचाते हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि जंगलों को काटने से जमीन का तापमान अक्सर कई डिग्री तक बढ़ जाता है। इससे खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी कहीं ज्यादा बढ़ने लगती है।
रिपोर्ट में शामिल एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जंगल कटने से बढ़ी गर्मी ने 2001 से 2020 के बीच हर साल करीब 28,000 लोगों की जिंदगियां छीन ली हैं। इसके अलावा, 2003 से 2018 के बीच जिन क्षेत्रों में जंगल काटे गए, वहां तापमान बढ़ने से करीब 28 लाख मजदूरों के सुरक्षित कामकाज के घंटे कम हो गए हैं।
इसके उलट, खड़े जंगल खेतों और ग्रामीण इलाकों को ठंडक देते हैं, फसलों और मजदूरों को गर्मी से बचाते हैं। इससे ग्रामीण मजदूरों पर गर्मी का दबाव कम होता है, स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है और उत्पादकता भी बढ़ती है।
'कृषि बनाम जंगल' नहीं, दोनों में तालमेल की है जरूरत
रिपोर्ट में समाधान पर भी प्रकाश डाला है, अगर दुनिया भर में खोए उष्णकटिबंधीय जंगलों का महज आधा हिस्सा भी बहाल कर दिया जाए, तो धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है। इससे बारिश, जल चक्र और स्थानीय जलवायु फिर से संतुलित हो सकती है, जो कृषि और जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
रिपोर्ट यह भी याद दिलाती है कि जंगल परागण, प्राकृतिक कीट नियंत्रण, पोषण चक्र, मिट्टी के कटाव को रोकने जैसी सेवाएं भी देते हैं जिन्हें हम अक्सर महसूस ही नहीं करते लेकिन कृषि इनके बिना असंभव है।
इसी तरह कृषि भूमि में जंगल के हिस्सों जैसे शेल्टर बेल्ट, नदी किनारों की हरित पट्टियां और छोटे वन-पैच को शामिल करना जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से बचाव का प्रभावी तरीका है।
एफएओ के वानिकी निदेशक झीमिन वू का कहना है, “अक्सर जंगल और पेड़ों को कृषि की जमीन के लिए प्रतिस्पर्धी या कृषि से अलग माना जाता है, लेकिन सच यह है कि जंगलों का संरक्षण और बहाली कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है।“
अंत में, रिपोर्ट यह स्पष्ट संदेश देती है कि अब समय आ गया है कि जैव विविधता, पर्यावरण संरक्षण, कृषि, जल संसाधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को अलग-अलग मुद्दों की तरह नहीं देखना चाहिए। इन सभी को साथ जोड़कर ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो जंगल और कृषि के गहरे संबंध को समझें, ताकि किसान समुदाय समृद्ध रहें और वे जिन प्राकृतिक प्रणालियों पर निर्भर हैं, वे भी स्वस्थ बनी रहें। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जंगलों के बिना कृषि कमजोर है, और खेती के बिना ग्रामीण जीवन खतरे में पड़ जाएगा।