भारत में भूमि गुणवत्ता में आती गिरावट से कृषि उत्पादकता को हर वर्ष औसतन 3,654 रुपए प्रति हेक्टेयर का नुकसान हो रहा है। बता दें कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के शोधकर्ताओं द्वारा नुकसान की यह गणना 2011-12 की कीमतों के आधार पर की गई है।
वहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि भू-क्षरण में एक फीसदी की वृद्धि के चलते कृषि उत्पादकता को होने वाला यह नुकसान प्रति हेक्टेयर औसतन 104 रुपए बढ़ जाएगा। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी जानकारी दी है कि भूमि क्षरण में 10 फीसदी की गिरावट से उत्पादकता को होने वाला नुकसान घटकर 3,145 रुपए प्रति हेक्टेयर रह जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल लैंड डिग्रडेशन एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुए हैं।
नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए) के हालिया अनुमान के मुताबिक देश में करीब 9.64 करोड़ हेक्टेयर जमीन यानी देश का करीब 29.3 फीसदी हिस्सा भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट से जूझ रहा है। वहीं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के मुताबिक देश में करीब 12 करोड़ हेक्टेयर जमीन गुणवत्ता में आती गिरावट का शिकार है।
देखा जाए तो 21वीं सदी में भू-क्षरण भारतीय कृषि के लिए एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है। एक तरफ जहां इस दौरान कृषि में आधुनिकरण का समावेश हुआ है, जिसके चलते नई तकनीकों और कृषि पद्धतियों ने पैदावार को बढ़ाने में मदद की है वहीं दूसरी तरफ इस दौरान भू-क्षरण और भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट ने नई चुनौतियां भी पैदा की हैं।
उत्तर प्रदेश के किसानों को हो रहा है सबसे ज्यादा नुकसान
वहीं राज्य-स्तरीय आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि राज्यों में भू-क्षरण के कारण सालाना होने वाले आर्थिक नुकसान में काफी विभिन्नताएं हैं। उदाहरण के लिए जहां उत्तरप्रदेश में भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट से प्रति हेक्टेयर 15,212 रुपए का नुकसान हो रहा है। वहीं केरल में यह नुकसान 7,489 रुपए प्रति हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 5,856 रुपए, कर्नाटक में 5,843 रुपए, असम में 5,168, महाराष्ट्र में 4,902, आंध्र प्रदेश में 4,741 जबकि दिल्ली 3,940 रुपए प्रति हेक्टेयर आंका गया है।
यह सभी वो राज्य या केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट से कृषि उत्पादकता को होने वाला नुकसान राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। वहीं इसके विपरीत अरुणाचल प्रदेश में इसकी वजह से प्रति हेक्टेयर 51 रुपए जबकि सिक्किम में 72 रुपए का नुकसान हो रहा है। इसी तरह जम्मू कश्मीर में 105, मिजोरम में 283, पंजाब में 653 और मेघालय में 901 जबकि मणिपुर में 953 और उत्तराखंड में प्रति हेक्टेयर 968 रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है।
भूमि की गुणवत्ता में आती यह गिरावट केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। वैश्विक स्तर पर भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट के जो आंकड़े यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) ने साझा किए हैं उनके मुताबिक 2015 से करीब मध्य एशिया के बराबर 42 करोड़ हेक्टयर उपजाऊ जमीन भू-क्षरण की भेंट चढ़ चुकी है। इसकी वजह से दुनिया भर में दाने-पानी की समस्या पैदा हो गई है, जो सीधे तौर पर 130 करोड़ लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही है।
यूएनसीसीडी की मानें तो हर साल कम से कम 10 करोड़ हेक्टेयर स्वस्थ्य और उत्पादक जमीन अपनी गुणवत्ता खो रही है। यूएनसीसीडी ने अपने एक बयान में कहा है कि, "यदि भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट का यह रुझान जारी रहता है तो इससे निपटने के लिए 2030 तक 150 करोड़ हेक्टेयर भूमि को बहाल करने की आवश्यकता होगी।"
एक अन्य अध्ययन के मुताबिक भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट विकासशील देशों में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को दूर करने के राह में एक बड़ी चुनौती है। अनुमान है कि यह दुनिया भर में करीब 300 करोड़ लोगों की जीविका को प्रभावित कर रही है। विशेष रूप से छोटी जोत वाली किसान भू-क्षरण के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील है।
शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष में यह भी कहा है कि भूमि और जल संरक्षण संबंधी उपायों को लागू करने से भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट और उससे होने वाले आर्थिक नुकसान को सीमित किया जा सकता है। इससे न केवल नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी साथ ही पैदावार में भी इजाफा किया जा सकेगा।
भारत सरकार ने भी 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि को बचाने का लक्ष्य रखा है | देखा जाए तो यह गुणवत्ता में गिरावट से जूझ रही जमीन को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए किया गया एक सार्थक प्रयास है।